जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में यह बहुत कठिन दौर है. अभी राज्य सरकार के साढ़े चार साल का कार्यकाल बचा हुआ है, ऐसे में लीडरशिरप का अभाव एक मुश्किल घड़ी है. पहली नजर में जयललिता के उत्तराधिकारी के तौर पर उनकी करीबी शशिकला का दावा मज़बूत नज़र आता है लेकिन यथार्थ के धरातल पर शशिकला को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
दरअसल, 1987 में जब एआईएडीएमके संस्थापक एमजीआर का निधन हुआ था तब भी तमिलनाडु की राजनीति में इसी किस्म का नेतृत्व अभाव सामने आया था और बाद में खूब रस्साकशी हुई थी. उस समय एमजीआर की पत्नी जानकी केवल 24 दिन सीएम रह पाईं थी. इसके अगले दो साल में ही एआईएडीएमके के कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह आभास हो गया कि जानकी में राजनीतिक कुशलता और नेतृत्व का अभाव है. जयललिता ने जानकी की तमाम कमजोरियों का फायदा उठाते हुए अपने आप को सशक्त नेता के तौर पर पेश किया. इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में जयललिता का जलवा साफ नजर आया. जयललिता विधानसभा चुनाव जीतीं तो वहीं जानकी चुनाव हार गई.
इस सब के बीच समझने की बात ये है कि शशिकला की सारी शक्ति जयललिता के करीबी होने की है. उनका जनाधार, वाकपटुता, राजनीतिक कौशल का कोई बड़ा उदाहरण आज तक सामने नहीं आया है. केवल इसके कि जयललिता की नाराजगी के बाद वो दो बार अपनी राजनीतिक वापसी करने में कामयाब रहीं. लेकिन लाखों कार्यकर्ताओं का दिल जीतना, चुनाव जीतना और जातीय आधार पर बंटी तमिल राजनीति में अपनी पकड़ बनाना ये कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे शशिकला को निपटना होगा. शशिकला के लिए एक और मुश्किल यह भी कि वह जिस थेवर समुदाय से आतीं हैं उनके प्रतिद्वंदी ओ पन्नीरसेल्वम भी उसी समुदाय से आते हैं. ऐसे में शिशकला का थेवर समुदाय से जुड़ा होना कोई विशेष उपलब्धि नहीं है.
इस उठापटक के बीच चेन्नई से आने वाली खबरों से ऐसा आभास होता है कि अभी एआईएडीएमके राजनीतिक स्थिरता का एक संदेश देना चाहती है. पन्नीरसेल्वम का सीएम बनना और शशिकला का पार्टी का जनरल सेक्रोटरी बनना इसी दिशा में एक कामचलाऊ व्यवस्था है. शशिकला के लिए सरकार में पकड़ बनाना और विधायकों और कार्डर का विश्वास जीतना और ओ पन्नीरसेल्वम और थम्मीदुरैई जैसे दिग्गज नेताओं की राजनीतिक काट करना उनके लिए बड़ी मुश्किल साबित हो सकता है. केंद्र सरकार और भाजपा का तमिलनाडु राजनीति में रुचि लेना स्वाभाविक है लेकिन इस दुख की घड़ी में किसी भी तरह का राजनीतिक जोड़तोड़ एआईएडीएमके लीडरशिप के लिए घातक साबित हो सकता है.
इस उठापटक के बीच ऐसी भी आशंक है कि पार्टी से अब भ्रष्टाचार के आरोप और उससे जुड़े राजनीतिक षडयंत्र भी अब धीरे धीरे सामने आ सकते हैं. ऐसे में पार्टी में फूट की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता. पार्टी को हर कदम फूंक फूंक कर रखना होगा. पार्टी को सही समय पर सही फैसला लेना होगा. ये कहने में आसान है लेकिन करने में बहुत कठिन साबित होता है. इस वक्त शशिकला पन्नीरसेल्वम और पूरी पार्टी के लिए परीक्षा की घड़ी है. गौरतलब बात ये है कि ओ पन्नीरसेल्वम जीवन के शुरुआती दौर में चाय बेचते थे और जयललिता के जीते जी मुख्यमंत्री रहना और उनका विश्वास पात्र बने रहना उनके राजनीतिक कौशल को दर्शाता है.
जयललिता को उनकी अनगिनत खूबियों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा. जयललिता ने तमिलनाडु की पुरुष प्रधान राजनीति में ऐसा स्थान बनाया कि कोई भी उनके सामने बैठने तक का साहस नहीं कर पाता था. जयललिता एक ब्राह्मण महिला थी लेकिन द्रमुक के ब्राह्मण विरोधी आंदोलन के बावजूद वे तमिलनाडु में सर्वोच्च पद पर पहुंचीं. इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी खूबी थी राज्य के गरीबों के दिलों की हमेशा के लिए हिरोइन बनना. आपको दें कि तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहां पर नास्तिकता का बोलबाला है. ऐसे में जयललिता ने धार्मिक आस्था में विश्वास के साथ अपनी राजनीति को ना सिर्फ बढ़ाया बाल्कि सत्ता भी हासिल की.