चुनावी मौसम हो और मुसलमानों पर बात न कीजाए यह कैसे मुमकिन है लेकिन इस बार मुद्दा जरा गंभीर है. बात उस हज सब्सिडी की हो रही है जिसे लेकर मुस्लिम समुदाय को हमेशा ही परेशान किया जाता रहा है.
बात की जाती है हज जैसी धर्मिक यात्रा पर सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट की जो कि सीधे तौर पर एक मुसलमान यात्री को तो कतई नहीं मिलती... कहते हैं कि सियासतदान जब किसी मुद्दे को उठाते हैं तो उसे लोग बड़े ही गौर और गंभीरता से लेते हैं. इस बार एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने यह राग छेड़ा है. ओवैसी कहते हैं कि हज सब्सिडी मुसलमानों के साथ छलावा है. ऐसी सब्सडी की मुसलमानों को कोई जरूरत नहीं, इसे खत्म करने से वो नराज नहीं होंगे, बल्कि उनको अच्छा लगेगा. ओवैसी कहते हैं कि हज सब्सिडी को खत्म कर उसका पैसा मुसलमान लड़कियों की शिक्षा पर लगाना चाहिए.
यह तो सियासत की बात है लेकिन बात सच भी है...पर सवाल यहाँ यह है कि अखिर जो पैसा सरकार मुसलमानों को हज सब्सिडी के नाम पर देती है वह जाता कहां है... हकीकत यह है कि जो रकम हज सब्सिडी के नाम पर सरकार मुसलमानों को देती है वह पैसा एयर लाइंस कंपनियों के खातों में चली जाती है. आरोप तो यह भी है कि घाटे में चल रही एयर इंडिया को मजबूत करने के लिए हज सब्सिडी की बंदूक मुसलमानों के कंधे पर रखकर चलाई जा रही है.
गौरतलब है कि सरकार हज सब्सिडी के नाम पर हर साल करोड़ों रूपए खर्च करती है. एक आंकडे के मुताबिक साल 2012 में यह रकम 836.56 करोड़ रूपए, 2013 में 680.03 करोड़ और 2014 में 533 करोड़ रूपए रही. वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रूख अख्तियार करते हुए कहा है कि आने वाले 10 सालों में धीरे-धीरे हज सब्सिडी खत्म कर दी जाए. वहीं कोर्ट ने हज यात्रियों को दी जा रही सब्सिडी में सरकार की नीति को गलत ठहराया.
एयर इंडिया कंपनी फिलहाल लगभग 2100 करोड़ रूपए के घाटे में चल रही है जिस पर यह आरोप लगना जायज़ है. यही नहीं हज सब्सिडी को लेकर बात हाजियों को सुननी पड़ती है जबकि यह पैसा एयर इंडिया और ऐसी ही कई एयर कंपनीयों और पॉलिटिशियन की जेब में जा रहा है.
एक मुसलमान हज यात्रा पर जाने की तभी सोचता है जब वो अपनी मेहनत की कमाई का जायज़ पैसा इकट्ठा कर लेता है...एक मुस्लिम धर्म यात्री अपने खाने-पीने, रहने के लिए लिए खुद की जायज कमाई खर्च करता है तो फिर उनके नाम पर हज सब्सिडी की तोहमत क्यों लगाई जाती है...जिसको लेकर हमेशा से सवालात उठते रहे हैं... हज यात्री अपने शहर से राजधानी और फिर मुम्बई से जेद्दा की यात्रा पर एयर लाइंस पर निकलता है. इस दौरान एयर बस पर पहुँचने से पहले के सारे खर्चे भी वही उठाता है...यह जिस सब्सिडी की बात की जाती है वह वास्तविक तौर पर तो नहीं पर आभासी तौर पर जरूर एक हाजी को सरकार देती है. यही बड़ा सवाल है कि वास्तविकता में क्या उस सब्सिडी की जरूरत हाजी को है या फिर यह मात्र प्रॉपोगंडा का हिस्सा भर बन के रह गया है...
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऐसे ही मुसलमानों की रहनुमाई करने वाले संगठनों को इस हज सब्सिडी को लेकर एक श्वेत पत्र की मांग करनी चाहिए. चूँकि भ्रम हवाई किराए में है जिसे पहले विदेश मंत्रालय देखता था अब वही अल्पसंख्याक मंत्रालय देखता है जिसके मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी हैं. उन्हें इस ओर ध्यान देकर एयर ट्रेवल कंपनियों के लिए एक ग्लोबल टेंडर के जरिए यात्रा की व्यवस्था की जाए यह सुनिश्चित करना चाहिए. दूसरी ओर जो एयर लाइंस यात्रियों को हज यात्रा पर ले जाती हैं उनको जाते समय तो यात्रियों की संख्या मिल जाती है लेकिन वापसी के समय स्थिति वैसी नहीं होती. यही 40 दिन बाद जब पवित्र यात्रा कर हाजी लौटते हैं तब भी यही स्थिति निर्मित होती है. यही नहीं हाजियों से ज्यादा किराया भी वसूला जाता है...यही वास्तविक समस्या है जिसका हल ढूंढना लाजमी है.
सरकारों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत भी है. जिससे मुस्लिम समुदाय की पवित्र यात्रा हज को लेकर सब्सिडी दिए जाने पर सवाल खड़े न किए जा सके. साथ ही इस पर सियासत होने के वजह इसे एक साकारात्मक सोच के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन के रूप में देखना चाहिए जो कि हमारे देश की सबसे बडी संवैधानिक संस्था है.
विशेष: उपरोक्त लेख में व्यक्त दिए गए विचार लेखक के निजी विचार है. एबीपी न्यूज़ का इनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई सरोकार नहीं है.