BLOG: शादी में बलात्कार, पर्सनल नहीं-पब्लिक कॉज ही है
देश के मुख्य क्रिमिनल कोड आईपीसी की धारा 375 रेप की व्याख्या करती है. इसका एक अपवाद (एक्सेप्शन 2) है जिसमें कहा गया है कि पति और पत्नी (जोकि 15 साल से अधिक की है) के बीच का शारीरिक संबंध क्रिमिनल नहीं है.
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पिछले दिनों बेरुत के समुद्र किनारे विरोध जताने के लिए शादी के सफेद गाउन्स लटकाए गए. विरोध इस बात का था कि देश के रेप कानूनों में बदलाव किया गया था. कहा गया था कि अगर रेपिस्ट, विक्टिम से शादी कर लेता है तो वह सजा से बच सकता है. यकीनन यह कुछ अजीब सी बात है लेकिन हमारे यहां भी ऐसी मिसाल पिछले दिनों दोहराई गई है. सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई में कहा है कि अगर आदमी अपनी 15 साल से अधिक उम्र की बीवी के साथ जबरन संबंध बनाता है तो वह कोई क्रिमिनल ऑफेंस नहीं होता.
जाहिर सी बात है, मैरिटल रेप यानी शादी में बलात्कार हमारे लिए अपराध है ही नहीं. भला पति पत्नी से बलात्कार कैसे कर सकता है? संबंध बनाना तो उसका हक है. पर रेपिस्ट विक्टिम से शादी कर ले, या शादी के बाद बीवी का रेप करे, दोनों बहुत कुछ एक सा ही है.
देश के मुख्य क्रिमिनल कोड आईपीसी की धारा 375 रेप की व्याख्या करती है. इसका एक अपवाद (एक्सेप्शन 2) है जिसमें कहा गया है कि पति और पत्नी (जोकि 15 साल से अधिक की है) के बीच का शारीरिक संबंध क्रिमिनल नहीं है. लेकिन अदालत की सबसे डिस्टर्बिंग रूलिंग यह है कि वह 15 से 17 साल की उम्र की लड़की के साथ जबरन संबंध को भी क्रिमिनल नहीं मानता. चूंकि यह उम्र शादी की लीगल एज से कम है. मतलब, अगर आरोपी पति है तो 15 से 17 साल की लड़कियां रेप विक्टिम नहीं कहलाएंगी. तो, दो अलग-अलग कानून एक दूसरे से एकदम अलग हैं और सुप्रीम कोर्ट किसी एक को चुनता है, तो यह दुखद ही है.
इस मामले में एक एनजीओ ने आईपीसी की इस धारा के अपवाद को चुनौती दी थी. एनजीओ का कहना था कि इस धारा में सहमति की उम्र बढ़ा दी जाए. मजे की बात यह है कि इस केस में सरकारी वकील, जो इस अपवाद के पक्ष में थीं, ने सिर्फ यह कहा कि इस अपवाद में छेड़छाड़ करने से हमारे देश में शादी जैसी पवित्र संस्था बची रहेगी. शादी अगर पवित्र संस्था है तो उसका सारा ठीकरा लड़की पर ही क्यों फोड़ना. शादियों का सारा बोझ लड़की को उठाना पड़ता है, इसे समझने के लिए यूनिसेफ की रिपोर्ट देखी जा सकती है. हमारे यहां 47 फीसदी लड़कियों की शादियां 18 साल से कम उम्र में कर दी जाती हैं. दूसरी तरफ जनगणना के आंकड़े यह भी कहते हैं कि देश में बाल विधवाओं की संख्या 1.94 लाख के करीब है. ऐसी शादियों को आप अच्छी शादियां तो कतई नहीं कह सकते.
यूं हमारे देश के कानून बहुत दिलचस्प हैं. अक्सर एक दूसरे के विरोध में खड़े रहते हैं. मौजूदा रेप कानून 15 से 17 साल के बीच के लड़के और लड़की के बीच सहमति से सेक्स को संज्ञेय अपराध कहता है. इसके अलावा हमारे देश में 2012 का पॉक्सो एक्ट यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज़ भी है. यह बच्चों का यौन शोषण करने वालों को दंड देता है. इस कानून के तहत 18 साल से जो भी कम हैं, वे बच्चे हैं. इसमें ऐसा कोई अपवाद नहीं है.
कुल मिलाकर लड़की ही सब फसाद की जड़ है. अगर शादीशुदा है तो उसका नामलेवा कोई नहीं. इस मामले में इस साल की शुरुआत में दिल्ली हाई कोर्ट में तीन सिविल याचिकाएं दायर की गईं. कहा गया कि यह अपवाद ही भेदभावकारी है. यहां उम्र का तकाजा हो ही क्यों? रेप, रेप है और उसके लिए किसी को भी सजा मिलनी चाहिए. शादीशुदा होने से रेप का अपराध कम गंभीर क्यों हो जाए. इतना तो तय है कि यह अपवाद शादीशुदा महिलाओं के साथ भेदभाव करता है. इस लिहाज से संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का भी उल्लंघन होता है. अनुच्छेद 14 और 15 भेदभाव को प्रतिबंधित करते हैं और 21 जीवन और व्यक्तिगत आजादी के अधिकार की गारंटी देता है. लेकिन मर्दवाद हर जगह हावी है. इसी तरह ढाई साल पहले सुप्रीम कोर्ट भी एक याचिका को खारिज कर चुका है जिसमें एक एमएनसी एग्जीक्यूटिव ने अपने पति पर मैरिटल रेप का आरोप लगाया था. लेकिन अदालत ने यह कहकर इस केस को खारिज कर दिया था कि यह उसका पर्सनल कॉज है, पब्लिक कॉज नहीं.
घरेलू हिंसा को हम पर्सनल मानकर चलते हैं, इसलिए अक्सर पुलिस में मामले दर्ज नहीं करते. इसीलिए ये व्यक्तिगत मामले इतने व्यक्तिगत होते हैं तो लड़कियां शोषण का शिकार होकर मार दी जाती हैं. फिर भी अदालतें लगातार यही कहती हैं कि अक्सर औरतें कानूनों का दुरुपयोग करती हैं और पति-ससुरालियों को फंसा देती हैं. फंसाती हैं तभी एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती हैं कि भारत में दो फीसदी औरतें अपने पतियों या पार्टनरों के रेप का शिकार होती हैं. ऐसे कितने ही केस हमारे सामने हैं जहां पति पीटकर जबरन संबंध बनाता है और घर वाले कहते हैं, कमरे के अंदर जो हो रहा है, उसमें हम कैसे दखल दे सकते हैं. औरतें भी ऐसी हालत में मुंह सिए रहती हैं.
पर दिक्कत कई सारी हैं. रेप कानूनों पर मृणाल सतीश की किताब डिस्क्रिशन, डिसक्रिमिनेशन एंड द रूल ऑफ लॉ : रिफॉर्मिंग रेप सेंटेंसिंग इन इंडिया में कहा गया है कि भारत में रेप एक हिंसा नहीं, मॉरल इश्यू बना दिया गया है. इसीलिए इसके बारे में बात करने में औरतों को हिचक होती है. हम भी चुप रहते हैं. ऐसे ही कई देश चुप हैं. दुनिया में ऐसे 127 देश हैं जहां मैरिटल रेप क्राइम नहीं है. इक्वालिटी नाऊ की रिपोर्ट द वर्ल्ड्स शेम : द ग्लोबल रेप एपिडेमिक में इसका खुलासा किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर के देशों में रेप से जुड़े कानून बहुत हास्यास्पद हैं. अफगानिस्तान, ईराक, लेबनान, रोमानिया, सर्बिया, तुर्की में विक्टिम के माफ करने से रेप का चार्ज हट जाते हैं. बाहरीन, ईराक, जोर्डन, कुवैत, फिलीपींस में अगर विक्टिम से शादी कर ली जाए तो सजा से बचा जा सकता है. सेटेलमेंट कर लो तो बेल्जियम, फिलिस्तीन, सिंगापुर, थाईलैंड में आप फ्री! हां, मैरिटल रेप 52 देशों में अपराध भी है जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस के अलावा भूटान और नेपाल जैसे छोटे देश भी शामिल हैं.
2000 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पति के यौन शोषण को भी उसी तरह अपराध माना जाना चाहिए जैसे शारीरिक हिंसा को माना जाता है. जस्टिस वर्मा कमिटी ने 2012 में निर्भया मामले के बाद इसी तरह का सुझाव दिया था. उम्मीद की जा सकती है कि शादियों को बुरी शादी बनने से बचाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाएंगे.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार और आंकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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