नोटबंदी का एक साल पूरा हो गया है. कांग्रेस समेत विपक्षी दल काला दिन के रुप में इसकी बरसी मना रहे हैं. सत्तापक्ष काला धन विऱोधी दिवस के रुप में जश्न मना रहा है. आम आदमी आज भी नोटबंदी के समय हुई तकलीफों को भूल नहीं पाया है. जिन 115 लोगों की लाइन में खड़े होने से मौत हुई उनके घरवाले आज भी मातम मना रहे हैं. छोटे और मध्यम दर्जे के उद्दोगमालिक अभी भी नोटबंदी से लगे झटके से उबर नहीं पाए हैं. लेकिन नोटबंदी के बाद हुए विधानसभा चुनाव से लेकर पंचायत और नगरनिगम पालिका परिषद के चुनावों में से ज्यादा में बीजेपी का परचम लहराया है. सबसे बड़े सूबे यूपी में करीब तीन चौथाई बहुमत तो बीजेपी के लिए चमत्कार से कम नहीं है. तो इसका क्या मतलब निकाला जाए. एक ऐसा आर्थिक फैसला जो बीजेपी को राजनीतिक ताकत दे रहा है.


अब सवाल उठता है कि अगर कोई आर्थिक फैसला चुनावी लाभ देता है तो क्या उस आर्थिक फैसले में मीनमेख नहीं निकाले जाने चाहिए. सवाल यह भी उठता है कि अगर नोटबंदी से आहत आम नागरिक चुनावों में आम वोटर की हैसियत से सत्तपक्ष को चुनता है तो क्या उसे सरकारी फरमान पर जनमतसंग्रह मान लिया जाना चाहिए. सवाल यह भी उठता है कि झोली भर कर चुनावी लाभ उठाने के बाद क्या अब सत्तापक्ष को नोटबंदी से हुए नुकसान की बात स्वीकार कर लेनी चाहिए.


नोटबंदी की कुल मिलाकर पांच खूबियां गिनाई गयी थी. एक , काला धन रुकेगा. दो , नकली नोटों पर लगाम लगेगी. तीन , आतंकवाद और नक्सलियों की कमर टूटेगी. चार, कैशलेस की तरफ देश बढ़ेगा और पांच, अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी. जहां तक काला धन पर रोक की बात है तो यह सही है कि नोटबंदी के बाद सरकार ने तीस हजार करोड़ से ज्यादा के काले धन का पता लगाया है और आगे भी जांच एजेंसियां काम में लगी हुई हैं. यह भी सही है कि नोटबंदी के बाद हवाला कारोबार को झटका लगा है. नोटबंदी के बाद बेनानी संपत्ति कानून पर अमल से रियल स्टेट में काले धन का इस्तेमाल कम हुआ है. यह भी सही है कि लोगों में कालेधन को लेकर डर बैठा है. लेकिन यह भी सही है कि सरकार की तीन से चार लाख करोड़ रुपये वापस नहीं आने की उम्मीद खत्म हुई.


जितना पैसा बाहर गया लगभग उतना ही वापस आ गया. रिजर्व बैंक ने खुद स्वीकारा है कि करीब 99 फीसद पैसा वापस आया है. चूंकि अभी नेपाल में पुराने नोटों को बदलने के तरीके को लेकर वहां की सरकार के साथ सहमति नहीं बन पा रही है इसलिए वहां का आंकड़ा आना बाकी है. यह भी सही है कि हवाला कारोबार एक साल बाद फिर से पैर पसारने लगा है. अब कमीशन ज्यादा देना पड़ रहा है. सरकार कह रही है कि अब सरकार को पता है कि किसने किस बैंक में कितना पैसा जमा करवाया है और एजेंसियां ऐसे लोगों या कंपनियों की धरपकड़ में लगी है. सरकार सही कह रही है लेकिन जितने मामलों की जांच होनी है और इनकम टैक्स वालों के पास जितना स्टाफ हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि मामले निपटाने में सालोंसाल लग जाएंगे.


नोटबंदी के बाद जिस तरह से जगह जगह नये नोट बड़ी संख्या में पकड़े गये उससे भी साफ है कि नये सिरे से काला धन जोड़ा जाने लगा है. सरकार ने दो लाख फर्जी कंपनियों को बंद कर अच्छा काम किया है. अब अगर व्यक्तिगत तौर पर काला धन बैंकों में जमा कराने वालों को सजा दिलवाने में सरकार कामयाब रहती है तो जरूर नोटबंदी को सफल कहा जाएगा. लेकिन अगर कानूनी दांवपेंचों और अफसरशाही के लपेटे में उलझ कर सारे मामले रह गये तो नोटबंदी के फैसले पर सवाल जरुर उठेंगे.


नोटबंदी के कारण करीब 50 करोड़ के नकली नोट पकड़ में आए. हालांकि यह दावा किया गया था कि भारत में जितने नोट बाजार में हैं उसका करीब छह फीसद फर्जी हैं लेकिन नोटबंदी से पता चला कि नकली नोट का फीसद एक फीसद से भी कम था. वैसे भी साल भर बैंकों में जो नोट आते हैं उनमें से नकली की छटाई होती ही रहती है. इसमें कुछ खास नया नहीं निकला लेकिन सबसे बड़ी बात है कि पांच सौ और दो हजार रुपये के नये नोट पर भारत सरकार की तरफ से कहा गया था कि इसमें 17 ऐसे सेफ्टी फीचर है. जिनकी वजह से इनकी नकल कर पाना लगभग असंभव होगा. हम पाकिस्तान पर नकली मुद्रा छापने और भारत में से वितरित करने का आरोप लगाते रहते हैं. मोदी सरकार के अधिकारियों ने कहा कि पाकिस्तान को भी नये नोटों की नकल बाजार में लाने में सालों लग जाएंगे. लेकिन हाल ही में पकड़ी गयी नकली नोटों की खेप के बाद इनकी स्टडी करने वालों का कहना है कि नकली नोट बनाने वाले 17 में से 9 फीचर की नकल बना चुके हैं. उनका यह भी कहना है कि पांच सौ और दो हजार रुपये के नकली नोट असल जैसे दिखने लगे हैं.


हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नोटबंदी का एक साल होने के भीतर ही अगर नौ फीचर की नकल सफल हो गयी है तो आने वाले समय में नकली नोटों की खेप बढ़ सकती है. यह भारत सरकार के लिए चिंता की सबब होना चाहिए.


नोटबंदी के बाद कहा गया कि इससे नक्सलियों की कमर टूटी है और आंतकवाद में भी कमी आई है. दावा तो यहां तक किया गया कि नोटबंदी के बाद लड़कियों की तस्करी में भी कमी आई है जिन्हें जबरन वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेला जाता था. जो नेपाल , बांग्लादेश के रास्ते हिन्दुस्तान लाई जाती थीं और यहां से खाड़ी के देशों में भी भेजी जाती थीं. नोटबंदी के बाद अगर इस पर रोक लगी है या कमी आई है तो उसके लिए सरकार को साधुवाद. इस बारे में आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन आंतकवाद में जरुर कमी देखी गयी है. खासतौर से कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं भी कम हुई हैं. हाल ही में दिल्ली में 36 करोड़ के पुराने नोट पकड़े गये. इनके साथ कश्मीर के कुछ युवक भी पकड़े गये जिनका कहना था कि वह पुरानी मुद्रा को बदलवाने के लिए कुछ लोगों से संपर्क कर रहे थे ताकि आतंकवादियों के लिए नये नोटों का जुगाड़ किया जा सके.


यह सही है कि आतंकवादियों के पास पैसों का टोटा हुआ है लेकिन आतंकवादी घटनाओं में कमी की वजह भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों की मुस्तैदी भी है. जिस तरह से कश्मीर घाटी में सेना ने सर्च ऑपरेशन चलाया है और बड़े आतंकवादी गुटों के बड़े कमांडरों को मार गिराया है उसे नोटबंदी से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. नक्सलियों का बहुत सा पैसा जरुर तबाह हुआ है. जमीन में प्लास्टिक की थैलियों में रखा पुराना पैसा काफी हद तक मिटटी हुआ है और उनके बड़े आपरेशन फेल हुए हैं. लेकिन यहां भी सारा श्रेय नोटबंदी को देने के बजाए कोबरा फोर्स को भी दिया जाना चाहिए.


यह अपने आप में दिलचस्प तथ्य है कि नोटबंदी के समय प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनके मंत्रियों और बीजेपी नेताओं की जबान पर सिर्फ कालाधन पर लगाम ही आता था. लेकिन बाद में इसे डिजीटल और कैशलेस के साथ जोड़ दिया गया. कांग्रेस का आरोप है कि डिजिटल इंडिया के लिए अमेरिकी कंपनियों ने भारत पर दबाव डाला. अब इसका तो कोई सबूत हमारे पास नहीं है लेकिन इतना जरूर तय है कि अब सरकार कैशलेस की जगह लेसकैश की बात कहने लगी है. नोटबंदी के बाद बहुत से गांवों की कैशलेस विलेज के रुप में रपटें छपी थीं. नोटबंदी के एक साल बाद उन्ही गांवों के फिर से नकद की तरफ मुड़ने की खबरें छप रही हैं. भारत जैसे देश में जहां इंटरनेट की क्नेक्टिविटी कमजोर है, जहां सबके पास बैंक अकाउंट नहीं है, नकदी का चलन रहा है वहां एक झटके में सब कैशलेस नहीं हो सकते हैं. यह अपने आप में सच्चाई है लेकिन कार्ड का इस्तेमाल करने वालों को कमीशन से तो मुक्त किया जा सकता है. अगर कार्ड से लेनदेन करने पर एक–दो फीसद पैसा जेब से निकल जाता हो वहां कोई क्यों और कब तक कार्ड का इस्तेमाल करेगा. इस दिशा में भारत सरकार ही कार्ड का उपयोग करने वालों को कुछ रियायतें दे सकती है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार और आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)