रेखा गुप्ता दिल्ली की मुख्यमंत्री यानी एक तीर से भाजपा के कई निशाने

आख़िर दिल्ली में नतीजों के 11 दिन बाद भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा दे ही दिया और अचंभे की बात यह है कि इस बार भी भाजपा ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार देते हुए चौंकाया ही है. कहने वाले कहते हैं कि जिन नामों की भाजपा में चर्चा चलती है उनका नाम अपने आप ही कट जाता है. आलाकमान जो नाम तय करता है उसके ही भाग्य का ताला मुख्यमंत्री के पद के लिए खुलता है.
रेखा गुप्ता का नाम रवायत के अनुकूल
इस बार दिल्ली की मुख्यमंत्री के लिए रेखा गुप्ता का नाम चुना जाना उस लीक से हट कर है, क्योंकि इनका नाम भी मुख्यमंत्री की दौड़ में काफ़ी ऊपर था और पिछले कई दिनों से तो कहा जाने लगा था कि वह ही भाजपा की दिल्ली में मुख्यमंत्री होंगी. हुआ भी वही. इसके कारण खोजें तो सब से बड़ा कारण तो यही है कि दिल्ली से एक महिला मुख्यमंत्री को हटाया जाना था तो उसकी जगह फिर महिला मुख्यमंत्री ही दिए जाने की संभावना बढ़ गई थी. हालांकि, नाम तो और भी महिला नेत्रियों के चल रहे थे फिर वही क्यों? यह बात शुरू में ही तय हो गई थी कि किसी सांसद को यह ज़िम्मेदारी देकर एक सांसद की सीट पर फिर से चुनाव कराए जाने की संभावना बनाना ठीक नहीं है.
एक शोर बिहार चुनाव के कारण किसी बिहारी या कम से कम पूर्वांचली के मुख्यमंत्री बनाए जाने का भी मचा था, लेकिन इस का संदेश शायद नीतीश कुमार तक गलत चला जाता. दूसरी ओर रेखा गुप्ता को मुख्य मंत्री बना कर वैश्य समाज में केजरीवाल की पकड़ को भी कमज़ोर करने का काम किया गया है.
वैश्यों को संदेश, संघ को खुश रखने की कवायद
हरियाणा में जन्मी और दिल्ली में पली बढ़ीं रेखा गुप्ता दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष रह चुकी हैं. उन्होंने शालीमार बाग से आम आदमी पार्टी की उमीदवार वंदना कुमारी को 29 हज़ार से अधिक वोटों से मात दी थी. वह भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुकी हैं. समझा जाता है कि उनके नाम पर संघ ने पहले ही मुहर लगा दी थी.
रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने के बाद नई दिल्ली सीट जीतने वाले के मुख्यमंत्री बनने की धारणा को भी विराम मिला है. प्रवेश वर्मा हालांकि दिल्ली की मुख्यमंत्री सीट के लिए प्रबल दावेदार थे लेकिन उनके समर्थकों ने दिल्ली के नतीजे आने के बाद जिस तरह उनके नाम को आगे करने की कोशिश की शायद उस से उनको नुकसान पहुंचा है. दिल्ली में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों ही भाजपा के बड़े नेता हैं ऐसे में दिल्ली सरकार में किसी और बड़े नेता का उभरना शायद उचित नहीं रहता. वैसे, अरविंद केजरीवाल को हराने के बाद प्रवेश वर्मा का दावा मज़बूत हुआ था. इस लिए इस जाट नेता को किनारे लगाना बड़ा मुश्किल लगा होगा. इसलिए प्रवेश वर्मा को उप-मुख्य मंत्री बनाना पड़ा है जिस से दिल्ली और दिल्ली से लगते राज्यों में जाट बहुल क्षेत्रों में कोई ग़लत संदेश न चला जाए.
प्रवेश वर्मा के जरिए जाटों को साधा
दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्री को उप-राज्यपाल के साथ मिल कर केंद्रीय गृहमंत्री के सुझाव और आदेशों से ही दिल्ली को चलाना होगा. रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनते ही भाजपा ने एक तीर से कई शिकार खेले हैं जिस में एक स्थाई महिला मुख्यमंत्री देकर आम आदमी पार्टी की मुख्यमंत्री के लिए एक कुर्सी ख़ाली छोड़ने वाली अस्थायी मुख्यमंत्री आतिशी का जवाब भी दे दिया है. वैश्य समाज को भी एक संदेश है कि वह केजरीवाल की राजनीति में अगर फंसे हों तो पूरी तरह से फिर से भाजपा के साथ जुड़ जाएं.
भाजपा दिल्ली जीत गई है लेकिन आम आदमी पार्टी पूरी तरह हारी नहीं है. इसलिए भाजपा को आप के साथ लड़ाई जारी रखनी होगी, क्योंकि हमने देखा है कि दिल्ली की हार के बाद गुजरात के निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कई जगह जीत हासिल कर के दिल्ली से मिले अपने घावों पर मरहम लगाने का काम किया है. देखना यह है कि दिल्ली की नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का कार्यकाल क्या शीला दीक्षित की याद दिलाएगा या आतिशी के चंद महीनों की या फिर वह अपने लिए एक नई इबारत लिखेंगी. दिल्ली की नई मुख्य मंत्री को शुभकामनाएं कि वह दिल्ली की जनता की उम्मीदों पर खरी उतर कर दिल्ली चुनाव में भाजपा द्वारा किए गए सभी वादों को पूरा कर पाएं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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