मुंबई का अंडरवर्ल्ड और राजनीतिक वर्ल्ड एक-दूसरे को खाद-पानी देते रहे हैं !
मशहूर है कि हर अपराधी छटपटाकर आखिरकार अपनी पनाहगाह राजनीति में ही ढूंढ़ता है और सफेदपोश बनना चाहता है. ऐसे में मुंबई के अंडरवर्ल्ड का राजनीतिक और फिल्मों से ऑफ द रिकॉर्ड चोली-दामन का नाता रहा है.
शिवसेना के राज्यसभा सांसद और प्रवक्ता संजय राउत बयानबहादुर आदमी हैं. अपने बयानों को जब वे शेरो-शायरी की चाशनी में भिगो कर पेश करते हैं तो मामला बड़ा रंगीन हो जाया करता है. लेकिन जब मुंबई में एक मीडिया समूह के कार्यक्रम के दौरान उन्होंने दावा किया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अंडरवर्ल्ड डॉन करीम लाला से दक्षिणी मुंबई के पायधुनी इलाके में मिला करती थीं, तो मामला रंगीन होने की जगह संगीन हो गया, क्योंकि उनकी पार्टी शिवसेना महाराष्ट्र में जिस बैसाखी के सहारे गठबंधन की सरकार चला रही है, उसकी एक टांग कांग्रेस भी है.
अपने पत्रकारिता वाले नॉस्टैल्जिया में डूबकर राउत ने एक के बाद एक खुलासा करते हुए कहा था कि अस्सी के दशक में दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, शरद शेट्टी जैसे मुंबई के डॉन ही तय किया करते थे कि मुंबई पुलिस का कमिश्नर कौन होगा और कौन राज्य सचिवालय में बैठेगा और कौन मंत्रालय में बैठेगा! और यह भी कि हाजी मस्तान जब मंत्रालय पहुंचता था तो पूरा सचिवालय काम-धाम छोड़कर उसे देखने पहुंच जाता था! हालांकि राउत ने गांधी परिवार के प्रति सम्मान जताते हुए आज सफाई दे दी है कि इंदिरा जी करीम लाला से पठानों के नेता के रूप में मिलती थीं, किसी डॉन के रूप में नहीं. लेकिन महाराष्ट्र सरकार को अस्थिर करने का कोई मौका न चूकने वाली शिवसेना की पूर्व पार्टनर बीजेपी स्वभावतः राउत के इन हवाहवाई विवरणों को लेकर शिवसेना और कांग्रेस दोनों पर हमलावर हो गई है.
नब्बे के दशक में बाल ठाकरे का धमाकेदार इंटरव्यू लेकर लाइमलाइट में आए और कभी मराठी दैनिक ‘लोकसत्ता’ के स्टार पत्रकार रहे संजय राउत की आज एक शिवसेना नेता के रूप में सफाई और मजबूरी समझी जा सकती है. लेकिन यह बात सच है कि मुंबई के अंडरवर्ल्ड का राजनीतिक और फिल्मों से ऑफ द रिकॉर्ड चोली-दामन का नाता रहा है. यहां बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड के रिश्तों का जिक्र करना विषयांतर होगा. लेकिन मुंबई के प्रथम स्थापित डॉन हाजी मस्तान के गोद लिए बेटे सुंदर शेखर के मुताबिक, जिन्हें मस्तान सुलेमान मिर्जा कह कर बुलाता था, इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी जब भी मुंबई (तत्कालीन बंबई) आते थे, डैडी (मस्तान) से मिलते थे. ऐसे में इंदिरा जी को लेकर संजय राउत की बातें हवाहवाई नहीं लगतीं.
सत्तर और अस्सी के दशक की राजनीति के ट्रेंड को ट्रैक किया जाए तो वह घटनाक्रम उल्लेखनीय जान पड़ता है जिसके तहत कांग्रेस ने मुंबई में जड़ें जमा चुकी वामपंथी राजनीति को उखाड़ फेंकने के लिए शिवसेना को परदे के पीछे से आगे बढ़ाया था. उसी जमाने में कुख्यात तस्कर हाजी मस्तान के मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे भारत में बढ़ते ग्लैमर और सामाजिक असर से भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चिंतित रहती थीं. कहा जाता है कि मस्तान ने सरकार के प्रशासन में अपना ऐसा समानांतर सिस्टम स्थापित कर रखा था कि कई रसूखदार नेता भी अपना काम निकलवाने के लिए हाजी मस्तान की शरण में आते थे! मस्तान की गिरफ्तारी का आदेश मिलने पर पुलिस अधिकारी अक्सर बहाने बनाकर निकल लिया करते थे. आश्चर्य नहीं कि मस्तान को कमजोर करने के लिए इंदिरा गांधी ने मस्तान के प्रतिद्वंद्वी पठान गैंगस्टर करीम लाला को शह देने की चाल चली हो!
इंदिरा गांधी ने हाजी मस्तान को 1974 में पहली बार 'मीसा' के अंतर्गत गिरफ्तार करवाया था. लेकिन जब 1975 में इमरजेंसी लगने पर मस्तान को दूसरी बार गिरफ्तार किया गया तो सुनते हैं कि उसने इंदिरा गांधी को अपनी रिहाई के बदले सड़कों पर नोट बिछा देने की पेशकश की थी! जेल काटने के बाद हाजी मस्तान समझ चुका था कि लोहा ही लोहे को काट सकता है. लिहाजा उसने राजनीति का रुख किया और 1984 के दौरान मुंबई और भिवंडी में हुए दंगों के बाद बने माहौल का फायदा उठाते हुए दलित नेता प्रोफेसर जोगेंद्र कवाड़े के साथ मिलकर एक राजनीतिक दल ‘दलित मुस्लिम सुरक्षा महासंघ’ बना लिया. यह अलग बात है कि तस्करी की दुनिया का बेताज बादशाह हाजी मस्तान राजनीति की दुनिया का मामूली प्यादा भी न बन सका. अपराध की दुनिया में अपना सूरज ढलता देख कर ही मस्तान ने महाराष्ट्र खासकर मुंबई में शिवसेना का विकल्प बनने के इरादे से खुद की राजनीतिक पार्टी गठित की थी.
जैसा कि मशहूर है कि हर अपराधी छटपटाकर आखिरकार अपनी पनाहगाह राजनीति में ही ढूंढ़ता है और सफेदपोश बनना चाहता है. मस्तान के नक्शेकदम पर चलते हुए मुंबई के कई कुख्यात गैंगस्टरों ने पुलिस और अदालत के शिकंजे से बचने के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से राजनीति का दामन थामने की कोशिश की और कुछ तो इसमें काफी हद तक सफल भी हो गए. हमेशा झक सफेद कुर्ता व टोपी पहनने वाले तथा मुंबई के अंडरवर्ल्ड में ‘डैडी’ और ‘सुपारी किंग’ के नाम से कुख्यात दाऊद गैंग के दुश्मन अरुण गवली ने भी कानून के डर से राजनीति की शरण ली थी. 2004 में उसने ‘अखिल भारतीय सेना’ नाम से राजनीतिक दल बनाया और उसी साल हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में उसने अपने कई उम्मीदवार उतारे और खुद अपनी दगड़ी चाल वाली चिंचपोंकली विधानसभा सीट से चुनाव जीत गया था. गवली कई बार पकड़ा गया, जेल भी काटी, लेकिन कहा जाता है कि राजनीतिक वरदहस्त और भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों की मदद से वह हर बार बच निकलता था!
विधायक बनने के बाद गवली को लगने लगा कि अब तो उसे कोई टच ही नहीं कर सकता. एक समय था जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे डींग मारा करते थे कि अगर पाकिस्तान के पास दाउद है तो भारत के पास गवली है! गैंगवार में गवली का पलड़ा भारी देखते हुए मुंबई के कई बड़े बिल्डर और व्यापारी अपने कारोबार को बढ़ाने और अपने दुश्मनों को निबटाने के लिए गवली की मदद लेते थे. अंडरवर्ल्ड और राजनीतिक के नेक्सस का यह खुला उदाहरण था. यहां तक कि बाल ठाकरे अमर नाईक और गवली को हिंदू डॉन मानते हुए उनके खिलाफ होने वाली पुलिस कार्रवाइयों की कड़ी भर्त्सना किया करते थे! लेकिन जब 2008 में गवली ने 30 लाख रुपए की सुपारी लेकर शिवसेना के ही पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या करवा दी तो शिवसेना गवली के खिलाफ हो गई.
मुंबई के चेम्बूर इलाके का गैंगस्टर छोटा राजन दाऊद गैंग का खासमखास था. लेकिन मुंबई बम धमाकों के बाद जब गैंग में साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन हुआ तो छोटा राजन ने खुद के देशभक्त डॉन बनने का बड़ा स्कोप देखा और उसने दाऊद के करीबी गैंगस्टरों को सजा देने की कसम खाई. इसमें भी उसे बाल ठाकरे का ‘नैतिक’ समर्थन मिल गया था. दूसरी तरफ देखें तो रॉ के एक पूर्व अधिकारी एनके सूद ने कुछ साल पहले यह कह कर बड़ा धमाका किया था कि शरद पवार और अहमद पटेल जैसे कुछ प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञों के दाऊद इब्राहीम से करीबी संबंध रहे हैं!
हालांकि आरोप लगा देने या नाम उछाल देने से ही कोई बात साबित नहीं हो जाती. इंदिरा गांधी को लेकर संजय राउत ने जो बयान दिया है, उसके सबूत पेश करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की बनती है. लेकिन ऊपर के चंद उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि मुंबई का अंडरवर्ल्ड और राजनीतिक वर्ल्ड एक दूसरे को धर्मनिरपेक्ष ढंग से खाद-पानी देते रहे हैं.
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