जापान की धरती से गौतम बुद्ध को याद करने के हैं गहरे मायने
जापान की एक बड़ी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है जिनके लिए भारत का महत्व किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है. ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि बौद्ध धर्म में विश्वास रखने वाला कोई जापानी नागरिक भारत आकर गौतम बुद्ध की तपोभूमि गया के दर्शन करने करने न गया हो. क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जापान पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापानियों की इस नब्ज़ को बखूबी समझते हैं. शायद यही वजह थी कि सोमवार को राजधानी टोक्यो में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए वे जापान की धरती से गौतम बुद्ध को याद करना नहीं भूले.
पीएम मोदी ने कहा कि आज दुनिया को भगवान बुद्ध के विचारों और उनके बताए गए रास्ते पर चलने की बहुत ज़रूरत है. यही वह रास्ता है जो आज दुनिया की हर चुनौती को पार कर सकता है. चाहे वह हिंसा, अराजकता, आतंकवाद या क्लाइमेट चेंज हो. इन सभी चुनौतियों से मानवता को बचाने का यही एक रास्ता है. वैसे भी भारत को आजादी मिलने से बहुत पहले से ही देश की दो विभूतियों के जीवन पर जापानी सभ्यता व संस्कृति का गहरा प्रभाव रहा है.एक स्वामी विवेकानंद और दूसरे नेताजी सुभाषचंद्र बोस.स्वामी विवेकानंद जब अपने ऐतिहासिक संबोधन के लिए शिकागो जा रहे थे, तो उससे पहले वो जापान में भी कुछ दिन रुके थे.जापान ने उनके मन-मस्तिष्क पर एक गहरा प्रभाव छोड़ा था और इतिहास के मुताबिक अध्यात्म के शिखर को छूने में उनकी जापान-यात्रा का भी योगदान रहा है.
नेताजी की बात करें,तो भारत की आजादी की लड़ाई के उस दौर में भी जापान की शाही सेना ने सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज को हर संभव सहायता प्रदान की थी. लंबे वक्त तक जापान में रहकर बोस ने देश की आजादी के लिए कड़े प्रयास किए थे. आज़ादी मिलने से पहले ही दोनों देशों के बीच संबंधों की जो शुरुआत हुई थी,उसका ही नतीजा है कि इन 75 सालों में भारत औऱ जापान के रिश्तों में ऐसी गर्माहट आई है जिसने नई ऊंचाइयों को छूने की मिसाल पेश की है.
जापान ऐसा मुल्क है जो परमाणु बम की मार झेलने के बाद लगभग बर्बाद हो चुका था लेकिन वहां के लोगों ने हार नहीं मानी और अपनी जीवटता व ज्ञान के बल पर दोबारा उसे एक समृद्ध देश बना दिया. इसीलिए मोदी ने जापान के लोगों की देशभक्ति, आत्मविश्वास और स्वच्छता के प्रति उनकी जागरूकता के लिए उनकी तारीफ करने में कोई कंजूसी नहीं बरती.
भारत और जापान को नेचुरल पार्टनर बताते हुए उन्होंने इस सच को भी माना कि भारत की विकास यात्रा में जापान की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. जापान से हमारा रिश्ता आत्मीयता का है, आध्यात्म का है, सहयोग का है, अपनेपन का है. जापान से हमारा रिश्ता सामर्थ्य का है, सम्मान का है, विश्व के लिए साझे संकल्प का है. जापान से हमारा रिश्ता बुद्ध का है, बोद्ध का है, ज्ञान का है, ध्यान का है.पीएम के इन शब्दों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच दोस्ती की एक और नई इबारत लिखने की तैयारी है.पीएम मोदी ने वहां की 30 बड़ी कंपनियों के सीईओ के साथ अलग से जो मुलाकात की है,उससे संकेत साफ है कि भारत उन्हें अपने यहां और बड़े निवेश के लिए आमंत्रित कर रहा है,जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा.
पीएम मोदी इन दिनों विदेश में जहां भी जा रहे हैं,वहां के लोगों को वे एक बार भारत आकर घूमने पर कुछ ज्यादा जोर दे रहे हैं.इससे उन्हें भारत के इतिहास-संस्कृति का तो पता चलेगा ही लेकिन इसके जरिये देश में पर्यटन व हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री को भी बढ़ावा मिलेगा. स्वामी विवेकानंद जापान से किस कदर प्रभावित थे,इसका उदाहरण देते हुए पीएम मोदी ने बताया कि स्वामीजी ने कहा था कि हर भारतीय नौजवान को अपने जीवन में कम से कम एक बार जापान की यात्रा जरूर करनी चाहिए. मैं स्वामी जी की इस सद्भावना को आगे बढ़ाते हुए, कहना चाहूंगा कि जापान का हर युवा अपने जीवन में कम से कम एक बार भारत की यात्रा अवश्य करे.आजादी का ये अमृत काल भारत की समृद्धि का, भारत की संपन्नता का एक बुलंद इतिहास लिखने वाला है. मुझे जो संस्कार मिले हैं, जिन-जिन लोगों ने मुझे गढ़ा है उसके कारण मेरी भी एक आदत बन गई है. मुझे मक्खन पर लकीर करने में मजा नहीं आता है, मैं पत्थर पर लकीर खींचता हूं."
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)