भारतीय मूल के ऋषि सुनक ने ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनकर एक साथ कई इतिहास रच दिये हैं. महज 42 बरस की उम्र में ब्रिटिश सत्ता की कमान संभालने वाले वह पहले युवा और एशियाई मूल के पहले ऐसे गैर-गौरे हिंदू हैं,जिन्हें अपनी धार्मिक पहचान पर गर्व है और वे कई अवसरों पर इसे सार्वजनिक रूप से जाहिर भी कर चुके हैं.
यही वजह है कि ऋषि सुनक की हिन्दू पहचान की सोशल मीडिया से लेकर पश्चिमी मीडिया में खूब चर्चा हो रही है. ब्रिटेन की कन्जर्वेटिव पार्टी की भी इसलिए तारीफ हो रही है कि उसने किसी ग़ैर-गोरे और धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक को देश के शीर्ष पद के लिए मौका दिया. इससे पता चलता है कि ब्रिटेन का सर्वोच्च पद भी सभी धर्मों और नस्लों के लोगों के लिए खुला है. लेकिन इधर भारत में इसे लेकर एक बहस छिड़ गई है कि हमारा लोकतंत्र भी क्या यूरोप जितना ही उदार हो सकता है?
ब्रिटेन की इस ऐतिहासिक घटना के जरिये हमारे विपक्षी दल बहुसंख्यक वाद की राजनीति करने वाली बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं कि उसे इससे सबक लेना चाहिए. हालांकि वे इस तथ्य को जानबूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं कि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने ही मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम को देश का राष्ट्रपति बनाकर भारतीय राजनीति में ये नज़ीर पेश की थी कि अल्पसंख्यक समुदाय का एक सदस्य भी सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठ सकता है.
दरअसल, विपक्ष को निशाना साधने का एक बहाना मिल गया है क्योंकि फिलहाल मोदी सरकार में न तो कोई मुस्लिम मंत्री है और न ही बीजेपी का एक भी सांसद मुसलमान है. कुछ महीने पहले तक मोदी सरकार में मुख्तार अब्बास नकवी ही इकलौते अल्पसंख्यक मंत्री थे लेकिन राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें दोबारा मौका नहीं दिया गया. इसलिये ब्रिटेन के बहाने ये बहस छेड़ दी गई है कि भारत का लोकतंत्र आखिर इतना उदार क्यों नहीं बन सकता और इसमें कौन रोड़ा डाल रहा है.
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट किया कि पहले कमला हैरिस और अब ऋषि सुनकअमेरिका और ब्रिटेन की जनता ने अपने देश की अल्पसंख्यक जनता को देश के सर्वोच्च पदों पर चुनने का काम किया.मुझे लगता है कि भारत और बहुसंख्यकवाद की राजनीति करने वाली पार्टियों के लिए ये सीखने वाली बात है.
चिदंबरम के इस ट्वीट पर पाकिस्तान मूल के कनाडाई लेखक और अक्सर चर्चा में रहने वाले तारेक फ़तह ने जवाब दिया है. उन्होंने लिखा, ''ऋषि और कमला एक दूसरे के विपरीत हैं. कमला हिंदू और अपनी भारतीय पहचान पर शर्मिंदा थीं. जबकि ऋषि सुनक ने अपनी हिंदू पहचान कभी नहीं छिपाई. दोनों की तुलना मत कीजिए. "
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी ब्रिटेन के नतीजे आने से पहले कहा था कि अगर ऋषि सुनक चुने जाते हैं तो ये बड़ी बात होगी. शशि थरूर ने लिखा था, ''अगर ब्रितानी लोग ऋषि को प्रधानमंत्री बनाते हैं तो ये दुनिया के लिए दुर्लभ घटना होगी, जहाँ सबसे ताकतवर पद पर एक अल्पसंख्यक होगा. जब हम ऋषि के भारतीय कनेक्शन पर ख़ुश हो रहे हैं, आइए ईमानदारी से पूछते हैं कि क्या ऐसा भारत में संभव है?''
जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती भी ऐसे वक्त पर अपनी राय ज़ाहिर करने में पीछे नहीं रहीं. उन्होंने ट्वीट किया, ''ब्रिटेन में भारतीय मूल के पहले प्रधानमंत्री ऋषि सुनक होंगे, ये गर्व से भर देने वाला पल है. भारत का इस पर जश्न मनाना वाजिब भी है. साथ ही हमें ये याद भी दिलाता है कि ऐसे वक़्त में जब ब्रिटेन एक अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य को अपना पीएम बना रहा है, तब हम अब भी बाँटने वाले सीएए और एनआरसी जैसे कानूनों में फंसे हुए हैं. ''
दरअसल,ऋषि सुनक का ब्रिटेन की राजनीति में बहुत तेज़ी से उदय हुआ है. उन्होंने साल 2015 में, 35 साल की उम्र में, पहली बार संसद का चुनाव जीता. केवल सात वर्षों में उन्होंने प्रधानमंत्री बनने का अपना सपना पूरा कर दिखाया.
कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के एक अध्ययन से पता चलता है कि यूके में ब्रिटिश भारतीयों की जनसंख्या और राजनीतिक प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. साल 2021 के नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारतीय मूल के लोगों की आबादी लगातार बढ़ रही है. हालांकि इंग्लैंड और वेल्स की लगभग 86 प्रतिशत आबादी श्वेत है, जिसमें एशियाई जातीय समूहों के लोग दूसरे सबसे बड़े हैं.
ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 14 लाख है,जो कुल ब्रिटिश आबादी का 2. 5 प्रतिशत है लेकिन यह आंकड़ा 2011 की जनगणना का था. ज़ाहिर है कि पिछले एक दशक में इस संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. साल 2019 के ब्रिटिश चुनाव में दो हाई-प्रोफाइल कैबिनेट मंत्रियों सहित 15 भारतीय मूल के सांसदों ने शपथ ली थी, जिनमे सुनक भी एक थे. ब्रिटेन के के शीर्ष सौ उद्योगपतियों में से नौ और 20 सबसे धनी निवासियों में से तीन भारतीय हैं. ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना भारतीय मूल के हिंदुओं समेत अन्य समुदाय के लोगों के प्रभाव को भी और मजबूत करेगा.
ये भी सच है कि ऋषि सुनक अपनी हिंदू पहचान का इज़हार करते रहे हैं और कई मौक़ों पर मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में भी शामिल होते रहे हैं. साल 2020 में ऋषि ने गीता पर हाथ रखकर ही वित्त मंत्री पद की शपथ ली थी. ऐसे वीडियोज़ भी हैं, जिनमें ऋषि सुनक गाय की पूजा करते देखे जा सकते हैं. साल 2020 में दिवाली पर अपने घर के बाहर दीया जलाते हुए भी ऋषि सुनक को एक वीडियो में देखा जा सकता है.
ऋषि सुनक के ख़ुद को 'प्राउड हिंदू' बताने की ख़बरें भी मीडिया में अब छाई हुई हैं. उनका बचपन ब्रिटेन के साउथैंप्टन में गुज़रा था. वैदिक सोसाइटी टेम्पल साउथैंप्टन में हिन्दू समुदाय का एक विशाल मंदिर है जिसके संस्थापकों में ऋषि सुनक के परिवार के लोग भी शामिल हैं. ऋषि का बचपन इसी मंदिर के इर्द-गिर्द गुज़रा जहाँ उन्होंने हिन्दू धर्म की शिक्षा हासिल की.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.