इंद्रप्रस्थ से लेकर शाहजहांबाद बनने तक और उसके बाद नयी दिल्ली की शक्ल लेने तक देश की राजधानी कई मर्तबा उजड़ी और फिर बसी भी.लेकिन हर बार उसने अपने नये रंग-रुप में आकर लोगों को ये भी अहसास दिलाया कि, जी हां, मैं ही आपकी वो दिल्ली हूं, जो दिलवालों की है और जहां नफ़रत को एक गंदे नाले के पानी में बहते हुए रोज देख सकते हैं. यानी दिलवालों की कही जाने वाली ये दिल्ली अब तक आपसी प्रेम व भाईचारे को बढ़ाने का पैग़ाम देती आई है. पर, अब देश में यहीं इकलौती हम सबकी दिल्ली है, जहां एक साथ दो हुक्मरान इस पर राज कर रहे हैं. एक के पास सबसे बड़ी ताकत है, तो दूसरा जनता द्वारा निर्वाचित मुख्यमंत्री तो है, लेकिन हमारा संविधान ही उसे दिव्यांग बना दे, तो भला कोई क्या करेगा?
सारे फ़साद की जड़ ही यहीं है, जो पिछले नौ सालों से कुछ ज्यादा तल्खी लेकर चली आ रही है. चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है, लिहाजा शुरु से ही यहां की पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि से जुड़े तमाम मसले केंद्र सरकार के अधीन हैं. साल 1993 में बीजेपी के वरिष्ठ नेता मदनलाल खुराना जब दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, तब वे केंद्र के आगे मिन्नतें करते रहे कि ये तीनों हक हमें दिए जाएं क्योंकि हम दिल्ली की जनता द्वारा चुनी गई एक लोकतांत्रिक सरकार है. लेकिन केंद्र उन्हें आश्वासन देकर अक्सर टरकाता ही रहा.
बाद में कांग्रेस की सीनियर नेता शीला दीक्षित ने दिल्ली की कमान संभाली. वे लगातार 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं. इनमें से 10 साल तक केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार थी. वे अनेकों बार ये तीन अधिकार दिल्ली सरकार को देने के लिए केंद्र से माथापच्ची करती रहीं और हर बार उन्हें एक आम नागरिक की तरह ही आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला.
मुझे याद है कि तब उन्होंने बेहद गुस्से में आकर एक दिन 10, जनपथ यानी सोनिया गांधी के घर का रुख़ किया था और मीडिया को ये फिलर भी भिजवा दिया गया था कि आखिर वे किस अहम मसले पर उनसे मीटिंग करने जा रही हैं. बाहर आकर उन्होंने मीडिया के सामने दिल्ली के मसले का जिक्र करते हुए कहा था कि, सोनिया जी ने भरोसा दिया है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करेंगी और दिल्ली सरकार को उनका हक मिलकर रहेगा. बात आई-गई हो गई क्योंकि न्यूज़ चैनल के मीडिया की सबसे बड़ी दिक्कत कहें या मजबूरी कि उसे ताजातरीन खबरों के सिवा किसी औऱ से वास्ता ही नहीं होता, लिहाज़ा वे बेहद अहम खबरों का फॉलोअप करने में भी प्रिंट मीडिया की तरफ ही देखता है.
उस घटना के करीब महीने भर बाद जब हम तीन-चार पत्रकार साथी सीएम शीला जी के ऑफिस में थे, तो उनसे पूछा गया कि सोनिया जी से आपकी मीटिंग का नतीजा क्या निकला, दिल्ली को वे अधिकार मिलेंगे या नहीं? तब उन्होंने जो कहा था, वह आज भी सच होता ही दिख रहा है. तब उन्होंने रुआंसे अन्दाज़ में कहा था कि "मुझे नहीं लगता कि मेरे जिंदा रहते हुए ऐसा हो जाये. नहीं जानती कि मेरे विदा होने के बाद भी ऐसा होगा या नहीं क्योंकि केंद्र में बैठी कोई भी और किसी भी पार्टी की सरकार दिल्ली पर अपना नियंत्रण खोने से डरती है."
इस सारे बैकग्राउंड का जिक्र करने के लिए मजबूर इसलिये होना पड़ा है कि आज दिल्ली में हो रही सियासी लड़ाई को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की जो झड़ी लगी हुई है, वो सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हमारी कोई बहुत चमकाती हुई इमेज पेश नहीं कर रही है. इसलिये कि ये मसला किसी एक राज्य का नहीं बल्कि देश की राजधानी से जुड़ा है, जहां होने वाली किसी भी हलचल पर संयुक्त राष्ट्र से लेकर दुनिया के दो सौ से भी ज्यादा मुल्कों की नजर रहती है.
लेकिन अब दिल्ली की ये सियासी लड़ाई मीडिया से निकलकर सड़कों पर भी आ गई है. केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के नेता व सांसद संजय सिंह ने दिल्ली के चार विधायकों को मीडिया के आगे पेश करके बीजेपी पर ये आरोप लगाया है कि उनके एक नेता ने इन्हें बीजेपी में शामिल होने व सरकार तोड़ने के लिए 20-20 करोड़ का ऑफर दिया है. साथ ही उनका ये भी आरोप है कि अगर ये लोग किसी और विधायक को अपने साथ लाते हैं, तो इन्हें 25 करोड़ और बाकी विधायकों को 20 करोड़ रुपये दिए जाएंगे. हालांकि बीजेपी ने इन तमाम आरोपों का खंडन करते हुए यहीं कहा है कि केजरीवाल सरकार ने अपनी नई शराब नीति में हुए करोड़ों के घोटाले से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ये प्रपंच रचा है, जो बेनकाब होकर रहेगा.
लेकिन केजरीवाल सरकार के इक़बाल को लेकर उनकी ही पार्टी में रह चुके एक समझदार व मंझे हुए नेता ने अपने बयान से उन्हें कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. हम भी नहीं जानते कि इतने सालों बाद उनके इस रहस्योद्घाटन करने के पीछे आखिर क्या मकसद है.
दिल्ली में शराब नीति को लेकर चल रहे विवाद पर आप के पूर्व नेता योगेंद्र यादव ने चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने परमजीत कात्याल के एक पुराने वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें इस घटना की जानकारी थी. दरअसल,आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता योगेंद्र यादव ने अपने एक ट्वीट के जरिये केंद्र व आप सरकार के बीच चल रही इस सियासी लड़ाई को एक नया ट्वीस्ट दे दिया है. वे परोक्ष रूप से ये आरोप लगा रहे हैं कि आप विधायकों की खरीद फरोख्त करने के लिए बीजेपी से कभी कोई ऑफर नहीं आता है, बल्कि ये ड्रामा खुद केजरीवाल ही रचते हैं.
योगेंद्र यादव ने अपने ट्वीट में लिखा है, "परमजीत जी ने 7 साल पहले इस घटना के बारे में मुझे जानकारी दी थी. तब मैंने पूछताछ की और पाया कि उनकी बात पूरी तरह सच है. अरविंद केजरीवाल के आदेश पर दिसंबर 2013 में अपने ही MLA को बीजेपी के नाम पर फोन करवाए गए थे. ऐसी करतूतों के कारण ही हम लोगों का AAP नेतृत्व से मोहभंग हुआ था." बता दें कि परमजीत तब आप के सचिव हुआ करते थे, जिन्हें पार्टी से जुड़े हर अहम मामले की जानकारी होती थी.
योगेंद्र यादव के इस खुलासे को बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने फौरन लपकते हुए सीएम केजरीवाल को अपने निशाने पर ले लिया. अमित मालवीय ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा, "अगर अरविंद केजरीवाल सत्येंद्र जैन को पद्म विभूषण, सिसोदिया को भारत रत्न और खुद को ऑस्कर के लिए नामांकित करते हैं, तो उन्हें यह बताना चाहिए कि जांच के आदेश के तुरंत बाद नई शराब आबकारी नीति को क्यों उलट दिया गया. इसके लिए कितनी रिश्वत मिली. दिल्ली सरकार को कुल कितना नुकसान हुआ?"
मालवीय ने एक पुराना वीडियो भी साझा किया जो जाहिर तौर पर आप के पूर्व सचिव परमजीत सिंह कात्याल का है. इस वीडियो में उन्हें अरविंद केजरीवाल का मज़ाक उड़ाते हुए देखा जा सकता है. इसमें उन्होंने बीजेपी पर AAP के 35 विधायकों को खरीदने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. परमजीत कात्याल ने दावा किया कि उन्हें और अन्य को अरुण जेटली और नितिन गडकरी जैसे वरिष्ठ बीजेपी नेताओं के नाम पर आप विधायकों को पैसे के बदले पार्टी से अलग होने का ऑफर देने के लिए कहा गया था.
ऐसे पुराने वीडियो की प्रामाणिकता की पुष्टि हम भी कर सकते. लेकिन शराब नीति के इस जंजाल ने इतना तो दिखा ही दिया कि नशा बोतल का नहीं, बल्कि सियासत का होता है. सीएम केजरीवाल की तरफ से अभी तक ये नहीं बताया गया है कि बीजेपी के किस नेता ने उनके चार विधायकों को 20 करोड़ का ऑफर दिया था.
बहरहाल, मसला बेहद नाजुक है, इसलिये उन्होंने आज यानी गुरुवार को पार्टी के तमाम विधायकों की बैठक बुलाने के साथ ही 26 अगस्त को दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र भी आहूत करवा दिया है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इंद्रप्रस्थ के इस सिंहासन को बचाने या उसे छीनने के लिए सफेद झूठ का सहारा कौन और कितना ले रहा है? लेकिन मुगलों के ज़माने में आला दर्जे के शायर भी ये लिख गए हैं कि "अब इसे क्या कहें....हुकूमत का जुनून कहें या फिर दिल्ली के बाशिन्दों की किस्मत कि वो इसे न पहले कभी समझे थे और शायद न ही आने वाले वक्त में कभी समझ पायेंगे."
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