रुस-यूक्रेन के बीच जारी जंग के बीच रुसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की भारत यात्रा को कूटनीतिक जगत में बेहद अहम माना जा रहा है. सामरिक मामलों के जानकार मानते हैं कि जिस तरह से अमेरिका समेत पश्चिम के देश रूस को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे समय में उनका ये दौरा महत्वपूर्ण है. बड़ी बात ये भी है कि उन्होंने भारत के साथ दशकों पुराने रिश्तों की याद दिलाते हुए ये माना है कि रुस-यूक्रेन की लड़ाई खत्म कराने में भारत एक मध्यस्थ की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. अन्तराष्ट्रीय मंच पर इसे भारत की बढ़ती हुई ताकत के रुप में देखा जा रहा है.


दरअसल रुस-यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिमी देश भारत पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वो रुस के साथ न खड़ा हो लेकिन भारत ने पूरे मामले में अभी तक ख़ुद को तटस्थ दिखाने की कोशिश की है. भारत ने न रुस का साथ दिया है और न ही यूक्रेन का बल्कि हमारा सारा जोर हिंसा रोककर कूटनीतिक संवाद के जरिये विवाद को सुलझाने पर रहा है. रुसी विदेश मंत्री के इस दौरे का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा करने के साथ ही बड़ा मकसद ये भी है कि रूस केवल इतना चाहता है कि पूरे मामले पर जो रुख़ भारत ने अपनाया हुआ, है वो उस पर आगे भी दृढ़ रहे.कई देशों के नेता पिछले कुछ दिनों से भारत आ रहे हैं और भारत पर रूस के प्रति अपने रुख़ को बदलने के लिए दबाव बना रहे हैं. ऐसे में लावरोव ने भारत आकर न सिर्फ हमारी स्वतंत्र कूटनीति की तारीफ की है, बल्कि ये तसल्ली हासिल करने की कोशिश भी की है कि भारत अपने मौजूदा रुख में कोई बदलाव नहीं करेगा.


अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में लावरोव ने भारत और रुस की विदेश नीति को एक समान बताते हुए कहा,"मेरा मानना है कि भारतीय विदेश नीति की ख़ासियत, स्वंतत्रता और राष्ट्र हित के मुद्दों पर केंद्रित रहना है. यही नीति रूस भी अपनाता है और इस वजह से हम बड़े देश, अच्छे दोस्त और वफ़ादार भागीदार हैं." हालांकि उन्होंने ये स्पष्ट करने से भी कोई गुरेज नहीं किया कि अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत और रुस की साझेदारी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. रूसी विदेश मंत्री ने कहा, "मुझे के मानने में कोई संदेह नहीं है कि कोई दबाव हमारी साझेदारी को प्रभावित करेगा. वे (अमेरिका) दूसरों को मजबूर कर रहे हैं कि उनकी नीति का पालन किया जाए."


ग़ौरतलब है कि भारत ने अब तक यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई की निंदा करने वाले किसी प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में वोट नहीं किया है. लेकिन साथ ही इस संकट से निपटने के लिए वार्ता और शांति का रास्ता अपनाने की पैरवी भी की है. अन्तराष्ट्रीय राजनीति के जानकार मनोज जोशी कहते हैं,अगर रूस और पश्चिमी देशों के रिश्ते और ख़राब होते हैं तब भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी और उस पर दबाव बढ़ सकता है क्योंकि भारत के ऊपर भी एस-400 को लेकर प्रतिबंधों की तलवार लटकी हुई है." अगर रूस और अमेरिका के सम्बन्ध और बिगड़ते हैं तो अमेरिकी कांग्रेस में ये सवाल ज़रूर उठेगा कि भारत क्या कर रहा है. अगर यूक्रेन में और तबाही होती है या बमबारी बढ़ती है और रूस का लक्ष्य और स्पष्ट हो जाता है, तब सवाल उठेंगे." लेकिन फिर भी  भारत चाहेगा कि वो दोनों तरफ़ दिखे. "वो सम्प्रभुता और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की रक्षा करता भी दिखना चाहेगा और साथ-साथ रूस को भी समर्थन देना चाहेगा."


शायद यही कारण था कि मीडिया से मुखातिब होते हुए लावरोव ने साथ यूक्रेन संकट के दौरान भारत के रुख़ की जमकर तारीफ़ की. लावरोव ने कहा, "इन दिनों हमारे पश्चिमी सहयोगी यूक्रेन संकट में किसी भी सार्थक मुद्दे को कम करना चाहते हैं. लेकिन भारत ने पूरे हालात को सिर्फ एकतरफ़ा न देखते हुए, प्रभावी तरीक़े से लिया है, इसके लिए हम भारत की सराहना करते हैं." रुसी विदेश मंत्री लावरोव से एक सवाल ये भी पूछा गया कि यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में भारत की स्थिति को कैसे देखा जा रहा है, इसके जवाब में लावरोव ने कहा कि अगर भारत, रूस से कुछ भी ख़रीदना चाहता है तो इस पर बातचीत के लिए तैयार हैं." हम भारत को किसी भी सामान की आपूर्ति करने के लिए तैयार रहेंगे जो वो हमसे ख़रीदना चाहते हैं.


रूस और भारत के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं. अगर भारत तेल और हाई-टेक हथियार ख़रीदना चाहता है, तो रूस इसके लिए तैयार है. लेकिन उन्होंने यूक्रेन में रूस के हमले को युद्ध न कहकर स्पेशल ऑपरेशन बताया है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "आपने इसे युद्ध कहा जो सही नहीं है, सैन्य ढांचों को निशाना बनाया जा रहा है. इसका उद्देश्य यूक्रेन की सरकार को किसी भी ऐसे निर्माण से वंचित करना है, जो रूस के लिए ख़तरा है." सामरिक जानकारों के मुताबिक पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत अपने रक्षा हितों को ही प्राथमिकता देगा और रूस से अपनी दशकों पुरानी मित्रता पर कोई समझौता नहीं करेगा.रुस भी यही चाहता है,लिहाज़ा उस मायने में विदेश मंत्री का भारत दौरा रुस के लिये भी एक बड़ी कामयाबी समझा जाना चाहिए.



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