दुनिया के तमाम ताकतवर मुल्क जिस जंग को टालने के लिये मिन्नतें कर रहे हैं,उसी लड़ाई को अंजाम देने के लिए रुस बेपरवाह होकर यूक्रेन पर हमला करने के लिए इतनी तेजी से आखिर आगे क्यों बढ़ रहा है? खुद को दुनिया का 'दादा' साबित करने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दूसरे विश्व युद्ध के खलनायक रहे अडोल्फ हिटलर के नक्शे कदम पर चलकर आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं?
भारत ही नहीं बल्कि समूची दुनिया के कूटनीतिक जगत में ये सवाल इसलिये उठ रहे हैं कि रुस ने तमाम सलाहों को दरकिनार करते हुए यूक्रेन को चौतरफा घेर लिया है. बस,युद्ध का औपचारिक ऐलान होना बाकी रह गया है लेकिन ये महज दो मुल्कों के बीच नहीं बल्कि दुनिया को दो हिस्सों में बांटने वाली ऐसी जंग होगी, जिसे तीसरे विश्व युद्ध का नाम दिया जायेगा. अपने वर्चस्व को कायम रखने के मकसद से छेड़ी जाने वाली इस लड़ाई में अब चीन खुलकर रुस के साथ खड़ा हो गया है.लिहाज़ा,अमेरिका समेत तमाम यूरोपीय देशों ने अब आरपार की लकीर खिंचने की तैयारी कर ली है,जो 21वीं सदी में मानवता के विनाश की सबसे बड़ी वजह बनने का इंतज़ार कर रही है.
किसी भी वक़्त रूस की तरफ़ से होने वाले विध्वंसक हमले को भांपते हुए यूक्रेन ने देश में इमरजेंसी लगा दी है, तो वहीं पुतिन ने पश्चिमी रुस के तमाम अस्पतालों को आम लोगों के ईलाज के लिए बंद करके उन्हें युद्ध के लिए रिज़र्व कर दिया है.राष्ट्रपति पुतिन ने देश की संसद से ये अधिकार भी हासिल कर लिया है कि रुसी सेना देश से बाहर कहीं भी आक्रमण कर सकती है. इसलिये कह सकते हैं कि यूक्रेन पर अब तक हमले के जो बादल मंडरा रहे थे,वो किसी भी वक़्त बरस सकते हैं.इसकी बडी वजह ये है कि दो दिन पहले रुस ने यूक्रेन के जिन दो प्रांतों को अलग राष्ट्र की मान्यता दी थी, वहां जबरदस्त गोलाबारी हो रही है.ये वो प्रांत हैं, जहां रूसी अलगाववादियों का वर्चस्व है.
अमेरिका के अलावा यूक्रेन के राष्ट्रपति ने भी ये दावा किया है कि रूसी सेना ने वहां घुसपैठ करके युद्ध का अलार्म बजा दिया है.अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता ने बुधवार को ये दावा किया कि रूसी सेना डोमेस्क में घुस चुकी है,जिसे रुस ने स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी है. हालांकि अमेरिका और NATO के सदस्य देश यूक्रेन की रक्षा के लिए तैयार खड़े हैं और अमेरिका ने साफ कर दिया है कि वह यूक्रेन में अपनी मिलिट्री ताकत को दोगुना करने जा रहा है.
लेकिन अंतरराष्ट्रीय सामरिक रणनीति के विशेषज्ञ ये भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या इस लड़ाई में समंदर ही ये तय करेगा कि दुनिया में 'सुवर पावर' आखिर कौन है? वजह ये है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने ही ये दावा किया है कि ब्लैक सी यानी काला सागर में रूसी सेना के 25 से भी ज्यादा युद्धपोत तैनात हैं, जिन पर 10 युद्धक विमान भी हैं जो पलक झपकते ही यूक्रेन पर भारी बमबारी कर देंगे.यानी रुस ने यूक्रेन को जमीन,पानी और हवा के जरिये पूरी तरह से घेर लिया है.
वहां से आ रही रिपोर्ट के मुताबिक रूसी सेना का करीब सात किलोमीटर लंबा काफिला यूक्रेन की सीमा की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन दुनिया की निगाह इस पर लगी है कि रूसी सेना हमले की पहल करते हुए यूक्रेन में दाखिल होती है या फिर उसकी सीमा के बाहर ही अपना लाव-लश्कर डालती है. हालांकि, रूस ने साल 2014 में जिस क्रीमिया को अपने साथ मिला लिया था, वहां उसकी सेना की मौजूदगी भारी तादाद में है, जो किसी भी समय यूक्रेन में घुसने के लिए तैयार है.
लेकिन दो देशों के इस संकट में चीन की एंट्री होना सिर्फ अमेरिका के लिए ही नहीं बल्कि भारत के लिए भी खतरनाक मानी जा रही है.चीन ने रुस का खुलकर साथ देते हुए कह दिया है कि अमेरिका उसे धमका रहा है. जंग छिड़ने पर यूक्रेन के साथ अमेरिका और बाकी नाटो देश होंगे, तो रूस के साथ चीन खड़ा होगा. ऐसी स्थिति में भारत के लिए बडी मुश्किल ये होगी कि वो दुनिया की दोनों बड़ी ताकतों में से किसी का भी खुलकर समर्थन न करेगा और न ही करना चाहेगा. लेकिन इसके जरिये चीन-रूस की जो गहरी निकटता होगी, वह भारत के लिए इसलिये चिंताजनक होगी कि चीन हमारी और रुस की पारंपरिक व भरोसेमंद दोस्ती को तोड़ने की हर सम्भव कोशिश करेगा.जाहिर है कि मुसीबत के वक़्त जब वह रुस का साथ देगा, तो रूस को भी उसकी कुछ बात मानने पर मजबूर होना ही पड़ेगा. वैसे भी चीन एक तरफ पाकिस्तान का मददगार बना हुआ है,तो वहीं अफगानिस्तान में वह तालिबानी सरकार को हमारे ख़िलाफ़ उकसाने में भी लगा है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)