भारत-पाकिस्तान की जंग पर आधारित एक फ़िल्म आई थी-बॉर्डर. जिसे देखते हुए दिल्ली के उपहार सिनेमा में लगी आग ने करीब पांच दर्जन बेगुनाह-मासूमों को जिंदा जला डाला था. उसी फिल्म के एक संवाद को अभिनेता से अब नेता बन चुके सन्नी दयोल के मुंह से कहलवाया गया था- "जंग तो चंद रोज होती है, लेकिन जिंदगी बरसों तलक रोती है."


अफ़सोस की बात ये है कि दुनिया की दो बड़ी ताकतें अपने अहंकार की खातिर उससे भी खतरनाक जंग छेड़ने पर आमादा हैं जो दुनिया में अब तक की सबसे बड़ी तबाही की वजह बन सकती है. कारण ये है कि अमेरिका ने एक बार फिर दुनिया को चेताया है कि रूस किसी भी समय यूक्रेन पर हमला कर सकता है और उसके दावे पर यकीन करना मूर्खता ही होगी. हालांकि क्या ये जंग 20 फरवरी या उसके फौरन बाद छिड़ जायेगी? इस सवाल ने समूची दुनिया को डरा दिया है. वाकई अगर ऐसा हुआ तो इस हकीकत को मानना ही पड़ेगा कि ये दो देशों के बीच कोई सामान्य जंग नहीं होगी बल्कि दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच होने वाली ये लड़ाई हमें तीसरे विश्व युद्ध की तरफ धकेल देगी जिसमें न जाने कितने बेगुनाह लोग मारे जाएंगे और कोई नहीं जानता कि दुनिया के कितने देशों में ये तबाही अपना मंज़र दिखाएगी.


भारत के लिए ये संकट इसलिये भी अहम है कि हमारे 20 हजार से भी ज्यादा नागरिक अभी भी वहां हैं जिनमें बड़ी संख्या छात्रों की है. भारत की बड़ी मुश्किल ये भी है कि इस संकट में वह न तो खुलकर रूस का साथ दे सकता है और न ही अमेरिका का. वह इसलिये कि रूस हमारा पारंपरिक व भरोसेमंद दोस्त है तो वहीं अमेरिका रणनीतिक साझीदार है. इसीलिये भारत ने निष्पक्ष रुख़ अपनाते हुए फिलहाल तो इसी पर जोर दिया है कि दोनों पक्षों को इस संकट का समाधान कूटनीति व बातचीत के जरिये ही निकालना चाहिए क्योंकि कोई भी देश युद्ध नहीं चाहता.


दावा किया जा रहा है कि रूस 20 फरवरी के बाद किसी भी वक़्त यूक्रेन पर हमला कर सकता है. ये तारीख इसलिये चर्चा में आई है क्योंकि चीन में विंटर ओलंपिक्स खेलों का समापन इसी दिन होना है. विदेशी रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो रूस ने चीन के कहने पर ही इस हमले की तारीख आगे बढ़ाई है. दोनों मुल्कों की दोस्ती जगजाहिर है लेकिन रूस को इस लड़ाई में चीन का भी साथ चाहिए तो हो सकता है कि उनकी इस बात में भी कुछ दम हो. वैसे इससे पहले एक अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने दावा किया था कि रूस 16 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करेगा लेकिन तीन दिन पहले ही दुनिया में आग की तरह फैली इस खबर के तुरंत बाद रूस ने यूक्रेन की सीमाओं से अपनी कुछ सैनिक टुकड़ियां वापस बुलाने का दावा किया ताकि इससे संदेश जाये कि वह भी युद्ध का पक्षधर नहीं है.


लेकिन यूक्रेन ने उसके इस दावे को झुठलाते हुए कहा है कि महज कुछ सैनिकों को बॉर्डर से हटाकर रूस दुनिया की आंखों में धूल झोंकना चाहता है. वहां के विदेश मंत्री के मुताबिक यूक्रेन की सीमाओं से रूस ने हथियार औऱ युद्ध उपकरणों का ज़खीरा अभी तक नहीं हटाया है जिससे जाहिर है कि उसकी नीयत में खोट है क्योंकि हमला करने के लिए वह किसी भी वक्त अपने सैनिकों को दोबारा यहां भेज सकता है. यूक्रेन की चिंता को उसके लिहाज से वाजिब इसलिये भी समझा जाना चाहिए कि एस्टोनिया इंटेलिजेंस एजेंसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस ने अपने टारगेट भी तय कर लिए हैं कि यूक्रेन की राजधानी कीव के अलावा और किन-किन महत्वपूर्ण ठिकानों को अपना निशाना बनाना है. इसमें कोई शक नहीं कि मिसाइल के मामले में रूस इस वक़्त अव्वल नंबर पर है और चार सौ किलोमीटर की मारक क्षमता रखने वाली उसकी मिसाइल ही छोटे-से यूक्रेन को नेस्तनाबूद करने के लिए काफी है. लेकिन रूस के लिए ये मामला पेचीदा इसलिये है कि यूक्रेन के साथ अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश भी हैं जो NATO यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य देश हैं और वे रूस के खिलाफ हैं.


इस बीच यूक्रेन पहुंचे कुछ भारतीय न्यूज़ चैनलों के मुताबिक अमेरिका ने अपने सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी वहां भेज दी है जो रूस के हमलों का जवाब देने में यूक्रेन सेना की मदद करेगी. कुछ अमेरिकी सैनिकों ने भारतीय मीडिया से बातचीत भी की है. हालांकि
कल ही व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने अपनी दैनिक प्रेस वार्ता में संवाददाताओं से कहा था कि “हमारा मानना है कि हमला कभी भी हो सकता है और रूस कोई फर्जी बहाना बनाकर हमला कर सकता है.” उन्होंने ये भी आशंका जताई कि रूस फर्जी वीडियो, रासायनिक हथियारों के प्रयोग या सैनिकों पर हमले की झूठी बात कह कर हमला कर सकता है. हमले का कारण बताने के लिए कई तरह के झूठ फैलाये जा सकते हैं."


दरअसल, रूस के दावे पर यकीन न करने की एक बड़ी वजह ये भी है कि सेटेलाइट तस्वीरों के जरिये अमेरिकी एजेंसियों को ये पता लगा है कि यूक्रेन की सीमाओं पर रूस लगातार अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है. उन तस्वीरों के जरिये ही ये उजागर हुआ है कि रूस इस समय यूक्रेन को तीन तरफ से घेर चुका है. इसलिये अमेरिका, यूक्रेन को अपनी सैन्य मदद देने में कोई कंजूसी नहीं बरत रहा है बल्कि इस बहाने वह रूस को सबक सिखाने की सोचे बैठा है. हालांकि इस संकट को लेकर नाटो के सदस्य देशों की बैठक में कोई निर्णायक फैसला लिए जाने की उम्मीद है. लेकिन रूस के सहयोगी देश बेलारुस ने नाटो को चेतावनी नहीं बल्कि धमकी दी है कि अगर जंग हुई तो परमाणु हथियारों का इस्तेमाल उसकी जमीन से ही होगा. ये बयान ही अमेरिका और नाटो के सदस्य देशों को भड़काने के लिए काफ़ी है. 


खबर ये भी है कि आज यानी 18 फरवरी को ही अपनी रणनीति को अंजाम देने का फैसला करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बेलारुस और अन्य सहयोगी देशों के प्रमुखों के साथ एक बैठक बुलाई है. जो रिपोर्ट आ रही हैं, उनके मुताबिक दुनिया की दोनों महाशक्ति सिर्फ जमीन पर ही नहीं बल्कि समुद्र में भी अपनी ताकत का जलवा दिखाने की पुरजोर तैयारी में जुटी हुई हैं. बताया गया है कि भूमध्य सागर में रुस ने अपने विध्वंसक युद्धपोतों और पनडुब्बियों के साथ इस संभावित जंग की रिहर्सल की है. राजनीति में तो नेता अपने विरोधियों के लिए अक्सर भड़काऊ बयान देते रहते हैं लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि जब कोई जंग छिड़ने से पहले ही सेना का कोई अफसर अपने विरोधी देश के लिए इस तरह की भाष का इस्तेमाल करे. न्यूज़ रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि एक अमेरिकी अफसर ने दावा किया है कि,"अगर रुस ने हमला किया तो फिर लाशें ही लाशें मास्को लौटेंगी." जाहिर है कि ऐसा बयान पुतिन सरकार के गुस्से में और इज़ाफ़ा ही करेगा. वैसे जंग होने की सूरत में अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने की यूक्रेन ने पूरी तैयारी कर ली है. उसने अपने पड़ोसी देश पोलैंड में इतने शरणार्थी कैम्प बनवा दिए हैं जहां तकरीबन 10 लाख यूक्रेन के नागरिकों को सुरक्षित रकह जा सके.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)