रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद समूची दुनिया जिस बात से डर रही थी आखिर हुआ वही और अब विश्व की दो महाशक्तियों ने एक-दूसरे को डराने के लिए अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को मुस्तैद कर दिया है. रूस की न्यूक्लियर हमले की धमकी के जवाब में अमेरिका ने भी पेंटागन को अलर्ट करने का निर्देश दे कर ये जता दिया है कि दो महा ताकतों के वर्चस्व की ये लड़ाई इस सदी की मानवता को अपनी विनाशलीला के जरिये खत्म करने पर आमादा है. साथ ही पूरा विश्व बेबस होकर इनके आगे रहम की भीख मांगता दिख रहा है कि करोड़ों मासूमों को तीसरे विश्व युद्ध की आग में धकेलने की अपनी ये जिद को छोड़ दो. लेकिन सच तो ये है कि मौजूदा माहौल में खुद को दुनिया का सबसे ताकतवर पहलवान साबित करने की ख्वाहिश न तो रूस छोड़ना चाहता है और न ही अमेरिका.


वैसे संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद अक्टूबर 1945 में हुई थी. लेकिन पिछले 77 बरसों में शायद ये पहला मौका था जब सोमवार की रात UN की महासभा में दुनिया की इस सबसे बड़ी पंचायत के सर्वेसर्वा समझे जाने वाले शख्स ने किसी देश के लिए इतनी तल्ख भाषा का इस्तेमाल करते हुए ये संदेश दिया हो कि अपनी एक जिद की खातिर आखिर पूरे विश्व को विनाश की तरफ क्यों धकेला जा रहा है. यूक्रेन पर हुए विध्वंसक हमले के खिलाफ अमेरिका द्वारा लाये गए निंदा प्रस्ताव पर हुई चर्चा के दौरान संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने जिन शब्दों में अपनी चिंता जाहिर की है वो सिर्फ उन्होंने महज अपनी नहीं बल्कि विश्व के हर इंसान की फिक्र को अल्फ़ाज़ देकर ताकतवर मुल्क रूस को समझाइश देने की एक मिसाल भी पेश की है. गुतारेस ने कहा कि "रूसी परमाणु बलों को हाई अलर्ट पर रखा जाना रोंगटे खड़े कर देने वाला घटनाक्रम है और आखिर हम परमाणु युद्ध की कल्पना मात्र भी भला कैसे कर सकते हैं."


संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की तारीफ सिर्फ इसलिये नहीं की जानी चाहिए कि उन्होंने यूक्रेन जैसे एक छोटे व कमजोर मुल्क के समर्थन में ये बातें बोलकर दुनिया की दूसरी बड़ी ताकत को नसीहत देने का हौंसला दिखाया है बल्कि वे इसके हकदार इसलिये भी हैं कि उन्होंने विश्व के 193 देशों के प्रतिनिधियों को उस मंच से ये समझाने की भी कोशिश की है कि आखिर आप जा कहां रहे हो? दुनिया भर के मासूम बच्चों को लाशों में तब्दील करके किस नई सदी में जाने का ख्वाब पाले बैठे हो?


शायद इसीलिये गुतारेस ने अपने भाषण में बिल्कुल साफ लहजे में कह डाला कि इस लड़ाई के दौरान मारे जा रहे बच्चों औरआम नागरिकों की हो रही मौतें हमें कतई मंजूर नहीं हैं. उन्होंने रूस को इशारा देते हुए ये भी साफ कर दिया कि बस, अब बहुत हो गया और अब  सैनिकों को बैरक में लौटने की जरूरत है. नेताओं को शांति कायम करने की जरूरत है. आम नागरिक की रक्षा सर्वोपरि है. सामरिक विशेषज्ञ कहते हैं कि रूस, यूएन की इस नसीहत पर कितना अमल करेगा ये फिलहाल कोई नहीं जानता लेकिन UN के मुखिया की तरफ से आया ये तीखा बयान दर्शाता है कि रूस एक तरह से अलग-थलग पड़ चुका है साथ ही अगर वह अपनी जिद पर ही अड़ा रहा तो दुनिया को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.


अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी इस आशंका को इसलिये खतरनाक माना जा रहा है क्योंकि रूस ने नाटो देशों को जिस परमाणु हमले की धमकी दी थी उसके बाद नाटो के 30 सदस्य देशों ने सोमवार की रात ये फैसला कर लिया कि वे अपनी सेनाएं यूक्रेन की बॉर्डर पर भेजने के लिये बिल्कुल तैयार हैं. उधर, अमेरिका ने भी साफ कर दिया है कि वो यूरोप में अपनी सेना तैनात करने से अब जरा भी इंकार नहीं कर रहा है क्योंकि वह भी यूरोप को बचाना चाहता है. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इससे एक कदम और आगे बढ़कर अपने नागरिकों से कहा है कि वे किसी भी न्यूक्लियर हमले से द्दरें नहीं क्योंकि अमेरिका ऐसे हर हमले का जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है. लेकिन यहां एक बात अहम है कि अमेरिका ने वहां तैनात रूस के 12 राजनयिकों को 7 मार्च तक अमेरिका छोड़ने का आदेश दे दिया है. लिहाज़ा, सामरिक विशेषज्ञ ये मान रहे हैं कि अमेरिका ने अब कूटनीति के जरिये यूक्रेन संकट को सुलझाने के रास्ते बंद कर दिये हैं और अब वो रूस के साथ आरपार की लड़ाई करने के लिए मैदान में उतर आया है. इसलिये अगर रुस-यूक्रेन के बीच होने वाली चौथे राउंड का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलता है तो ये मानकर चलना होगा कि दोनों ताकतें दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ धकेलने का मन बना चुकी हैं.


अमेरिका ने सोमवार को रूसी सेना की सैटेलाइट इमेज जारी करते हुए दावा किया है कि वह यूक्रेन की राजधानी कीव से महज 27 किलोमीटर दूर है लेकिन वो लगातार आगे बढ़ती जा रही है. इसलिये ये संभावना है कि वह अगले कुछ घंटों में कीव पर कब्ज़ा कर सकती है क्योंकि राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी सेना को 2 मार्च तक का टारगेट दिया हुआ है. दुनिया के तमाम सामरिक विशेषज्ञ ये मान रहे हैं कि अगर रूसी सेना ने यूक्रेन की राजधानी पर कब्ज़ा कर लिया तो दो मुल्कों की ये लड़ाई क्या रूप लेगी इसकी सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं.


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