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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

रूस-यूक्रेन युद्ध: सौ दिन बाद भी तूफ़ान से आख़िर कैसे टकरा रहा है मामूली-सा दीया?

बरसों पहले पंजाब में आतंकवादियों की गोलियों का निशाना बने क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू 'पाश' ने अपनी एक कविता के जरिये ये बताया था कि आखिर युद्ध होता क्या है औऱ इसे छेड़ा क्यों जाता है. रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग को 100 दिन पूरे हो चुके हैं और दुनिया नहीं जानती कि आखिर ये कब थमेगा. आगे बढ़ने से पहले 'पाश' की उस कविता पर गौर कीजिए जो उन्होंने जंग को लेकर ही लिखी थी...

"युद्ध इश्क़ के शिखर का नाम है
युद्ध लहू से मोह का नाम है
युद्ध जीने की गर्मी का नाम है
युद्ध कोमल हसरतों के मालिक होने का नाम है
युद्ध शांति की शुरुआत का नाम है
युद्ध में रोटी के हुस्न को
निहारने जैसी सूक्ष्मता है
युद्ध में शराब को सूंघने जैसा एहसास है
युद्ध यारी के लिए बढ़ा हुआ हाथ है
युद्ध किसी महबूब के लिए आंखों में लिखा ख़त है
युद्ध गोद में उठाए बच्चे की
मां के दूध पर टिकी मासूम उंगलियां हैं
युद्ध किसी लड़की की पहली
'हाँ' जैसी 'ना' है
युद्ध ख़ुद को मोह भरा संबोधन है
युद्ध हमारे बच्चों के लिए
धारियोंवाली गेंद बनकर आएगा
युद्ध हमारी बहनों के लिए
कढ़ाई के सुंदर नमूने लाएगा
युद्ध हमारी बीवियों के स्तनों में
दूध बनकर उतरेगा
युद्ध बूढ़ी मां के लिए नज़र की ऐनक बनेगा
युद्ध हमारे बुज़ुर्गों की क़ब्रों पर
फूल बनकर खिलेगा
वक़्त बहुत देर
किसी बेक़ाबू घोड़े की तरह रहा है
जो हमें घसीटता हुआ ज़िंदगी से बहुत दूर ले गया है
और कुछ नहीं, बस युद्ध ही इस घोड़े की लगाम बन सकेगा."

हमारी पीढ़ी के लोगों ने न तो पहला और न ही दूसरा विश्व युद्ध देखा होगा लेकिन पिछले सौ दिन से न्यूज़ चैनलों के जरिये आप-हम जो कुछ देख रहे हैं वो हमें नदी-तालाब में रहने वाली उस बड़ी मछली की याद दिला रहा है जो खुद जिंदा रहने के लिए छोटी मछलियों को खा जाती है. दुनिया के एक हिस्से में भी यही सब हो रहा है. इसे इंसानियत का सबसे बड़ा कत्लगाह कहना इसलिए गलत नहीं होगा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में न किसी ने ऐसा सोचा था और न ही ऐसा मंज़र देखा होगा.

रूस, दुनिया की दूसरी बड़ी महाशक्ति है लेकिन वो एक छोटे-से और खुबसूरत यूक्रेन देश को बर्बाद करने पर सिर्फ इसलिये तुला हुआ है कि उसके जरिये यूरोपीय देशों यानी ईयू की सेनाएं उसे घेर सकती हैं जबकि यूक्रेन अभी तक उसका सदस्य भी नहीं बन पाया है. लेकिन हम इसे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की वही सनक कह सकते हैं, जो जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर के दिमाग पर वर्ल्ड वार के दौरान सवार थी.

दुनिया के तमाम ताकतवर देशों से लेकर छोटे मुल्कों के राष्ट्राध्यक्ष भी पुतिन के आगे गुहार लगा चुके हैं कि मानवता के खातिर वे इस युद्ध को रोक दें. लेकिन मजाल है कि पुतिन पर इसका रत्ती भर भी असर हुआ हो. इतिहास बताता है कि तानाशाही प्रवृत्ति रखने वाला कोई भी शख्स जब अपने देश का हुक्मरान बनता है, तब वो किसी भी नेक सलाह को न मानने की अपनी जिद पर इसलिये अड़ा रहता है क्योंकि उसे अपनी जनता के अंधे समर्थन का पूरा भरोसा होता है जिसे उसने अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से या झूठ बोलकर हासिल किया है. कुछ यही मानसिकता पुतिन की भी दिख रही हैं और शायद इसीलिये वे दुनिया के किसी भी नेता की दी गई सलाह को अपने बूटों के नीचे रौंद रहे हैं.

आप-हम सब तो वही देख पा रहे हैं जो हमारे न्यूज़ चैनलों के जांबाज़ रिपोर्टर व कैमरामैन ग्राउंड ज़ीरो से इस जंग की तबाही दिखा रहे हैं. लेकिन हक़ीक़त ये है है कि इन सौ दिनों के युद्ध के दौरान रूस ने यूक्रेन में ऐसी तबाही मचाई है कि चारों ओर चीख पुकार मची हुई है. तबाही का ऐसा मंजर, जिसको देखकर हर कोई सन्न रह जाए. यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा है कि रूसी सैनिकों का अब यूक्रेन के लगभग 20 फीसदी क्षेत्र पर कब्जा है.

जेलेंस्की ने राजनेताओं और लक्जमबर्ग के लोगों को अपने संबोधन में कहा, "रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के 3,620 आबादी वाले इलाकों पर आक्रमण किया है, उनमें से 1,017 पहले ही मुक्त हो चुके हैं. अन्य 2,603 को मुक्त करने की जरूरत है.'' एक जमाने में यूक्रेनी चैनलों पर कॉमेडी करने वाले वाले जेलेंस्की न तो पुतिन की तरह पुराने जासूस रहे हैं और न ही देश चलाने या ऐसी भयावह आपदा से निपटने का उनके पास कोई अनुभव है. लेकिन अमेरिका समेत यूरोपीय देशों के नेता आज अगर उनकी तारीफ करते हुए उन्हें मदद दे रहे हैं तो ये अकेले जेलेंस्की के उस जज़्बे का ही कमाल है जिसने इतनी बड़ी विपदा झेलने के बावजूद अपने देश के लोगों में राष्ट्रभक्ति का अलख जगा रखा है.

रूस-यूक्रेन का घोषित युद्ध फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में शुरू हुआ था जो अभी भी जारी है. लेकिन सच तो ये है कि रूस ने अघोषित रुप से तो आठ साल पहले ही यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया था. साल 2014 से 24 फरवरी, 2022 तक, रूस ने यूक्रेन के लगभग 43,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र-क्रीमिया और एक तिहाई डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले लिया था. ये बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग से बड़ा क्षेत्र है जहां युद्ध के सौ दिनों में हजारों लोग मारे गए हैं.

जेलेंस्की के मुताबिक करीब एक करोड़ 20 लाख यूक्रेनियन आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति बन गए हैं और 50 लाख से ज्यादा देश छोड़ चुके हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. इसीलिये वे बार-बार आगाह कर रहे हैं कि अगर रूस, यूक्रेन में युद्ध जीत जाता है तो यूरोप में ‘‘सभी के लिए खराब समय आ जाएगा लेकिन यदि हम यह युद्ध जीतते हैं तो सभी यूरोपीय देश पूरी स्वतंत्रता के साथ रह पायेंगे.’’ उन्होंने फिर इस हकीकत को दोहराया है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन और यूरोप में हर प्रकार की स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहता है.

इतना सब खोने के बाद भी जेलेंस्की के इस जज्बे को सलाम करना इसलिये वाज़िब बनता है कि बेहद छोटा-सा मुल्क होने के बावजूद और सौ दिन बीत जाने के बाद भी उन्होंने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताकत से हार नहीं मानी है बल्कि ये कहा है कि "यूक्रेन दोषियों को दंडित करेगा लेकिन पहले वह रूस को युद्ध के मैदान में दिखा देगा कि यूक्रेन को जीता नहीं जा सकता, हमारे लोग आत्मसमर्पण नहीं करेंगे और हमारे बच्चे आक्रमणकारियों की संपत्ति नहीं बनेंगे."

साल 1956 में राजेंद्र कुमार व नंदा अभिनीत फिल्म आई थी- "तूफान और दिया." उसमें भरत व्यास के लिखे इस गीत को मन्नाडे ने गाया था- " निर्बल से लड़ाई है बलवान की ,ये कहानी है दीये की और तूफ़ान की ." रूस और यूक्रेन का युद्ध भी कुछ वैसा ही है. देखना है कि दीया अपनी लौ को कब तक व कैसे रोशन रख पाता है?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
  

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