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रुस-यूक्रेन जंग: कानूनी लड़ाई में आखिर कैसे हरा दिया एक छोटे-से दिये ने तूफ़ान को?

दुनिया के मनोवैज्ञानिकों के लिए ये एक बड़ी रिसर्च का विषय हो सकता है कि टीवी चैनलों पर कॉमेडी शो के जरिये अपनी पहचान बनाने वाले लोग राजनीति में कूदकर भी इतनी जल्द लोगों के दिलों में राज करने में आखिर इस कदर कामयाब कैसे हो जाते हैं. पहला उदाहरण रुस के विध्वंसक हमले झेल रहे वलादिमोर जेलेन्स्की का है,जिन्हें महज़ 42 साल की उम्र में ही यूक्रेन के लोगों ने अपना राष्ट्रपति बना दिया. दूसरी मिसाल हमारे भगवंत मान की है,जो 48 बरस की उम्र में कल औपचारिक रुप से पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए.मोटे तौर पर देखेंगे,तो ये दोनों ही अपने लोगों को ये समझाने में कामयाब रहे कि उनकी राजनीति थोड़ी अलग हटकर है, जहां वे ईमानदार रहते हुए सेवा करने के लिए आये हैं. राजनीति में लोगों का ये भरोसा जीतना ही सबसे बड़ी पूंजी कहलाता है और इसमें कोई शक नहीं कि वे इसे पाने में कामयाब भी हुए.

बात करते हैं रुस की जो अपनी जिद की खातिर उस इतिहास को दोहराने के लिए बेताब नज़र आ रहा है,जहां सिवाय विनाश के कुछ नहीं होगा. पुरानी कहावत है कि एक बड़ी मछली जब भूखी होती है,तब वो समंदर में मौजूद छोटी मछली को निगलने में भी कोई परहेज़ नहीं करती. दुनिया के नक्शे पर भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है,जहां ताकतवर रुस पिछले 22 दिन से एक पिद्दी-से मुल्क यूक्रेन को तबाह करने में जुटा हुआ है,ताकि वो नाटो देशों का भागीदार न बन जाये.बेशक रुस दुनिया की दूसरी बड़ी महाशक्ति है लेकिन बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय यानी (ICJ) में उसे मुंह की खानी पड़ी है,जहां उसकी इस करतूत को बेगुनाह लोगों पर जुर्म करने का दोषी करार दे दिया गया है.ये लड़ाई दिये से तूफान की है और यह फैसला आने के बाद कह सकते हैं कि इसमें जीत उस दिये यानी यूक्रेन की हुई है, जिसकी लौ बुझाने में रूस जैसा तूफान अभी भी नये रास्ते तलाश रहा है.

लेकिन अन्तराष्ट्रीय बिरादरी में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या रुस इस फैसले को मानकर युद्ध रोक देगा? जवाब शायद किसी के पास भी नहीं है क्योंकि रुस के तेवरों में कोई बदलाव नहीं आया है और अमेरिका व यूरोप को धमकाने का उसका अंदाज अब और भी ज्यादा तीखा हो गया है. बुधवार को नीदरलैंड के हेग स्थित अन्तराष्ट्रीय न्यायालय यानी ICJ ने रूस से यूक्रेन में सैन्य ऑपरेशन को तुरंत रोकने का आदेश दिया है. यह आदेश अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बाध्यकारी है क्योंकि अगर रुस इसे नहीं मानता, तब वह दुनिया में एक तरह से आइसोलेट हो जायेगा. वह इसलिये भी कि ICJ ने अपने आदेश में साफतौर पर ये भी कहा है कि रूस समर्थित कोई भी पक्ष इसमें दखल न दे.यानी सरल भाषा में कहें,तो इस युद्ध में अगर कोई देश रुस का साथ देता है,तो वो दुनिया की सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का दोषी बन जायेगा.

हालांकि सामरिक विश्लेषकों का अनुमान है कि रुस इतनी जल्द इस आदेश का पालन करता नहीं दिखता क्योंकि इससे बेपरवाह रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका समेत यूरोपीय देशों को धमकी देते हुए कहा है कि पश्चिमी देशों की इस हसरत का अंज़ाम पूरी दुनिया भुगतेगी.पुतिन ने साफ और सख्त लहजे में कहा है कि रुस पर प्रतिबंध लगाना,अमेरिका और यूरोप के लिए बेहद खतरनाक साबित होंगे.कूटनीतिक भाषा में कहें,तो एक तरह से उन्होंने इस युद्ध को आगे ले जाते हुए परमाणु हमले की धमकी दे डाली है.

हालांकि पुतिन का ये बयान सामने आते ही नाटो के महासचिव ने इसका जवाब देने में जरा भी देर नहीं लगाई.उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि "हम रुस की इस धमकी को हल्के में नहीं ले सकते क्योंकि उन्होंने परमाणु हमले की धमकी दी है.लेकिन हम ये साफ कर देना चाहते हैं कि अगर रुस ने नाटो के किसी भी एक सदस्य देश पर हमला किया, तो वह बर्दाश्त नहीं होगा और रुस को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

उधर,अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी पुतिन की इस धमकी के जवाब में कहा है कि हम रुस की इकॉनमी को बर्बाद कर देंगे और अमेरिका इसी हफ्ते यूक्रेन को एक अरब डॉलर की सैन्य मदद उपलब्ध करा रहा है जिसमें आधुनिक घातक हथियार भी शामिल हैं. लेकिन इसके साथ ही अमेरिका ने भारत के लिए भी एक लोचा लगा दिया है.अमेरिका की तरफ से पहली बार ये कहा गया है कि वो खुद तय करे कि इस युद्ध में वो किस तरफ खड़ा होना चाहता है.

अन्तराष्ट्रीय कूटनीति के विशेषज्ञ मानते हैं कि दरअसल,अमेरिका अब हमारी कमजोर नब्ज़ दबाने की कोशिश कर रहा है क्योंकि वह जानता है कि इस युद्ध में भारत ने अब तक अपना तटस्थ रुख़ अपनाते हुए दोनों पक्षों से युद्ध रोककर बातचीत व कूटनीति के जरिये ही संकट का समाधान निकालने की वकालत की है.लेकिन अब अमेरिका,भारत पर दबाव बनाने की रणनीति पर आगे बढ़ रहा है कि वह अपना रुख़ साफ करे. लेकिन भारत को इस दुविधा में भी अपने उसी रुख पर कायम रहना चाहिए कि जब हम कहीं भी युद्ध के पक्षधर ही नही हैं, तब किसी एक देश के साथ खड़ा होने का सवाल ही भला क्यों उठना चाहिए.

आपको बता दें कि पिछले कुछ दशकों में दुनिया की सबसे बड़ी कोर्ट का ये एक ऐसा फैसला है,जो आने वाले इतिहास की एक मिसाल बनेगा. आईसीजे ने रूस को कड़ा मुकाबला देने के लिए यूक्रेन की तारीफ की है.अदालत ने कहा कि रूसी आक्रमण पर यूक्रेन के लोग, सैनिक और राष्ट्रपति जेलेंस्की का बराबरी से मुकाबला करना तारीफ के काबिल है.अमूमन अन्तराष्ट्रीय न्यायालय ऐसी किसी भी तारीफ करने से बचता है लेकिन उसने तथ्यों, सबूतों और हर रोज दुनिया भर के न्यूज़ चैनलों पर दिखने वाली जंग की तबाही को देखकर ही यूक्रैन की तारीफ की है,जो रुस की ताकत के मुकाबले कहीं नहीं टिकता.

हालांकि कोर्ट ने सर्वसम्मति से ये आदेश दिया है कि दोनों पक्षों को किसी भी ऐसे कृत्य से बचना चाहिए जो विवाद को बढ़ा सकता है. ICJ के आदेश के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा, 'रूस के खिलाफ अपने मामले में यूक्रेन ने जीत हासिल की. ICJ ने आक्रमण को तुरंत रोकने का आदेश दिया. यह आदेश अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बाध्यकारी है. रूस को तुरंत अनुपालन करना चाहिए. आदेश की अवहेलना रूस को और भी अलग-थलग कर देगी.' लेकिन बड़ा सवाल यही है कि रुस सबसे बड़ी कोर्ट के इस आदेश को मानेगा या फिर दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ धकेलने की जिद पूरा करके ही रहेगा?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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