Russia-Ukraine war: दुनिया को 'तेल की मार' से देने वाला है रुस अपने प्रतिबंधों का जवाब ?
रुस-यूक्रेन में चल रही जंग के बीच रुस ने बेहद सख़्त लहजे में नाटो देशों को चेतावनी दी है कि वो अपनी सेनाओं को उसके खिलाफ इकठ्ठा न करें और अगर ऐसा हुआ तो रुस उसका मुंहतोड़ जवाब देगा. रूस के इन तेवरों से साफ है कि अगर नाटो यूक्रेन को सैन्य मदद देता है, तो फिर रुस यूरोपीय देशों से भी आरपार की लड़ाई छेड़ने का मन बनाये बैठा है. हालांकि अमेरिका और यूरोप के कई देशों द्वारा सख्त आर्थिक प्रतिबंधों के बाद रुस की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमराने लगी है लेकिन रुस युद्ध रोकने को तैयार नहीं है. उधर, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की ने भी फिर दोहराया है कि वे सरेंडर नहीं करेंगे, उल्टे उन्होंने रूसी सेना को हथियार डालने की नसीहत दे डाली है.
लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन ने रूसी तेल और अन्य ऊर्जा आयात पर प्रतिबंध लगाकर रुस को और उकसा दिया है और आने वाले दिनों में वह कोई ऐसा सख्त फैसला ले सकता है, जिसका असर पूरी दुनिया में तेल व गैस की कीमतों पर देखने को मिलेगा. रूस ने इस सप्ताह की शुरुआत में ही ये चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस से कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया तो तेल की कीमतें 300 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो सकती हैं.
इस बीच गुरुवार को रूसी और यूक्रेनी विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली बैठक पर सबकी नजरें हैं. हालांकि सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता हासिल करने को लेकर अपना रुख़ कुछ नरम किया है लेकिन रुस फिलहाल उस पर भरोसा करने को तैयार नहीं है और वो अपनी सारी शर्तें मनवाए बगैर युद्ध रोकने के मूड में नहीं है.
रूस ने बुधवार को ही अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि वह उस पर लगाए गए प्रतिबंधों का तीखा जवाब देने पर काम कर रहा है, जो पश्चिम के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में तेजी से महसूस किए जाएंगे. विदेश मंत्रालय के आर्थिक सहयोग विभाग के निदेशक दिमित्री बिरिचेव्स्की ने आरआईए समाचार एजेंसी के हवाले से कहा, "रूस की प्रतिक्रिया तेज, विचारशील और संवेदनशील होगी."
लिहाज़ा, ये माना जा रहा है कि रुस कच्चे तेल और गैस की कीमतों में बेतहाशा उछाल लाने का फैसला ले सकता है,जिसका असर समूची दुनिया पर पड़ेगा. रूस का कहना है कि यूरोप हर साल करीब 50 करोड़ टन तेल की खपत करता है जिसमें से लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा रुस देता है और इसके साथ ही वह 80 मिलियन टन पेट्रोकेमिकल की आपूर्ति भी करता है. लेकिन अब यूरोप, रूस पर गैस, कोयले और तेल की निर्भरता को कम करने के लिए अलग रास्ता अपनाने की कोशिश कर रहा है. यूरोपीय संघ फ़िलहाल अपनी ज़रूरत की आधी गैस, कोयला और तक़रीबन एक तिहाई तेल रूस से आयात करता है. रूस पर निर्भरता कम करने के लिए यूरोपीय संघ के नेता गुरुवार और शुक्रवार को बैठक करने जा रहे हैं. एक बयान में यूरोपीय संघ के नेताओं ने रूस के यूक्रेन पर हमले का सीधे तौर पर ज़िक्र न करते हुए कहा है कि 'यूरोपीय इतिहास में एक नया इतिहास बनने का दौर है.'
वैसे अमेरिका के बाद रूस और सऊदी अरब ही दुनिया के दूसरे सबसे बड़े तेल उत्पादक देश हैं. दुनिया के कुल तेल सप्लाई का 12-12 फ़ीसदी हिस्सा इन दोनों देशों से ही आता है. जबकि अमेरिका का तेल उत्पादन 16 प्रतिशत है. रूस हर रोज़ 40 से 50 लाख बैरल कच्चा तेल और 8,500 अरब क्यूबिक फ़ीट प्राकृतिक गैस सालाना निर्यात करता है. इसमें से अधिकतर हिस्सा यूरोप के हिस्से में जाता है. रूस यूरोपीय संघ को 40 फ़ीसदी गैस और 30 फ़ीसदी तेल निर्यात करता है, अगर सप्लाई बाधित होती है तो यूरोप के लिए इसका विकल्प ढूंढना आसान नहीं होगा.
हालांकि वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में रूस की महत्वपूर्ण भूमिका होने के कारण अमेरिका और यूरोपीय संघ अभी भी रूस के तेल और गैस उद्योग पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगा पाए हैं. यूरोप के देशों को तेल के मुक़ाबले गैस की ज़रूरत सबसे अधिक होती है और यूरोपीय संघ अपनी गैस का 61 फ़ीसदी आयात करता है जिसमें से 40 फ़ीसदी गैस रूस से ही आती है. अगर रूस यूरोप को गैस की सप्लाई से मना कर देता है तो यूरोप के सामने गैस का संकट खड़ा हो सकता है, ऐसी सूरत में उसे गैस लेने के लिए दूसरे रास्ते तलाशने होंगे.
रूस के उप प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेंडर नोवाक ने कहा है कि 'रूसी तेल को ख़ारिज कर देने से वैश्विक बाज़ार पर इसके विनाशकारी प्रभाव पड़ेंगे.'उनका कहना है कि कच्चे तेल के दाम दोगुने होकर 300 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं और जर्मनी के लिए मुख्य गैस पाइपलाइन बंद की जा सकती है. फिलहाल अन्तराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 140 डॉलर प्रति बैरल को पार कर चुकी है.'
विशेषज्ञों के मुताबिक तेल की निर्बाध सप्लाई के लिए अमेरिका अब सऊदी अरब पर कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने का दबाव डाल सकता है. इसके साथ ही ईरान के परमाणु समझौते पर सौदा आगे बढ़ सकता है, ताकि उसके तेल निर्यात से प्रतिबंध हट सके और तेल की सप्लाई बरक़रार रहे.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)