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रूस-यूक्रेन जंग: एक जासूस से नेता बने पुतिन आखिर दुनिया को क्यों दिखा रहे हैं अपना रंग?

जरा सोचिये कि एक जासूस दुनिया की दूसरी बड़ी खुफिया एजेंसी में 16 साल तक रहा हो और जो दूसरे देशों की कमजोर नब्ज भी जानता हो. फिर वही शख्स अचानक राजनीति में आ जाए और दुनिया की दूसरी सुपर पावर का मुखिया बन जाये. फिर वही जंग का रास्ता चुन ले तो क्या दुनिया का कोई साइंस उस शख्स के दिमाग की फितरत बदल सकता है?

दुनिया के तमाम वैज्ञानिक इसका जवाब 'ना' में ही देंगे. लेकिन रूसी खुफिया एजेंसी KGB से निकलकर पहले प्रधानमंत्री और बाद में राष्ट्रपति बने व्लादिमीर पुतिन ने आज दुनिया को ये अहसास करा दिया है कि वो न रुकेंगे और न ही झुकेंगे. इसे अमेरिका के लिए एक चेतावनी समझा जाना चाहिए लेकिन भारत ने इस जंग को टालने के लिए अपने लिहाज से पूरी कोशिश की है. पुतिन के रूस ने एक छोटे-से देश को कब्जाने के लिए जो जंग छेड़ी है उसमें भारत ने तो अहिंसा के अपने पारंपरिक रास्ते पर चलते हुए रूस को शांति और बातचीत के जरिये ही ये संकट सुलझाने की सलाह दी है. ये अलग बात है कि रूस इसे किस हद तक मानेगा लेकिन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी अमेरिका के इस रुख़ से हैरान है कि आखिर उसने यूक्रेन को बचाने के लिए वहां NATO देशों की सेनाओं को भेजने का फैसला आखिर क्यों नहीं लिया.

इसलिये सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका ने दुनिया की दूसरी महाशक्ति माने जाने वाले रूस के आगे एक तरह से सरेंडर कर दिया है या फिर वो सचमुच दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की आग में झोंकना नहीं चाहता? ये सवाल इसलिये उठा है कि कल देर रात अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ये ऐलान कर दिया है कि अमेरिका या नाटो देश की सेना रूस के साथ सीधे कोई लड़ाई नहीं लड़ेंगी. अब इसे रूस की गर्मी उतारने के लिए अमेरिका की सामरिक रणनीति समझा जाये या फिर दूसरी महाताक़त से भिड़ने का डर लेकिन अमेरिका ने ये कह दिया है कि वह अपने 7 हजार सैनिक जर्मनी भेज रहा है जो यूक्रेन की रक्षा करेंगे.

लेकिन अमेरिका का ये फैसला फिलहाल पश्चिमी देशों के गले इसलिये नहीं उतर रहा कि आखिर अमेरिका इस जंग में खुलकर सामने आने की बजाय जर्मनी को अपनी ढाल क्यों बना रहा है. हालांकि व्हाइट हाउस में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये एलान करने से पहले बाइडन ने G-7 में शामिल राष्ट्राध्यक्षों से फोन पर बातचीत की है लेकिन फिर भी कोई समझ नहीं पा रहा है कि आखिर अमेरिका के दिमाग में चल क्या रहा है और क्या वह यूक्रेन को बचाने के लिए वाकई फ़िक्रमंद है या फिर सोचे बैठा है कि रूस को इस पर कब्ज़ा करने से रोकने के लिए अपने सैंकड़ों सैनिकों की जान गंवाने की कोई जरुरत नहीं है. लिहाज़ा, रूस के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंध लगाकर वह यूक्रेन समेत नाटो देशों को ये संदेश दे रहा है कि हम साथ-साथ हैं.

सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का कोई भी देश नहीं चाहता कि किसी एक मुल्क का अहंकार और उसकी सनक समूची दुनिया को विनाश के रास्ते पर ले जाये. इसीलिये गुरुवार की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बातचीत करके उन्हें यूक्रेन में रह रहे भारतीय नागरिकों, खासकर छात्रों की सुरक्षा के संबंध में भारत की चिंताओं से तो अवगत कराया. लेकिन इशारों ही इशारों में ये भी बता दिया कि युद्ध इसका समाधान नहीं हैं. वैसे भी रूस पिछले कई दशकों से हमारा पारंपरिक व भरोसेमंद मित्र है और भारत की  सैन्य ताकत को और मजबूत करने में अभी तक तकरीबन 60 फीसदी हिस्सा उसका ही रहा है लिहाज़ा ये माना जाना चाहिए कि ऐसे नाजुक वक़्त पर पीएम मोदी ने अपने उसी ठेठ देसी अंदाज को अपनाया होगा कि दोस्त को अपनी चिंता भी बता दो लेकिन साथ ही उसे ये भी कह दो कि बुरा मत मानना लेकिन हो तो गलत ही रह है. वैसे भी दो राष्ट्र प्रमुखों के बीच हुई बातचीत का पूरा खुलासा कभी नहीं किया जाता फिर भले ही वह पांच मिनट की हो या 50 मिनट की. लेकिन मोदी-पुतिन के बीच हुई इस बातचीत के बाद आधिकारिक तौर पर यही कहा गया है कि "दोनों नेताओं ने सहमति व्यक्त की है कि उनके अधिकारी और राजनयिक दल सामयिक हित के मुद्दों पर नियमित संपर्क बनाए रखेंगे."

इस जंग में यूक्रेन व कुछ पश्चिमी देशों ने ऐसे कार्टून सोशल मीडिया पर पोस्ट किए हैं जिसमें पुतिन को दुनिया का दूसरा हिटलर बताया जा रहा है. वे हिटलर के रास्ते को न अपनाएं इसके लिए तो हर देश दुआ ही करेगा. लेकिन एक सच ये भी है कि पुतिन रूसी भाषा के अलावा जर्मन भाषा में भी उतने माहिर हैं. रिपोर्ट के मुताबिक उनका परिवार भी घर में जर्मन भाषा में ही बातचीत करता रहा है. हालांकि दावा ये भी किया जाता है कि राष्ट्रपति  बनने के बाद ही उन्होंने अंग्रेजी सीखी. वैसे औपचारिक वार्ता के लिए वह अब भी दुभाषियों का सहारा लेते हैं. लेकिन सवाल उठता है कि पुतिन को जर्मनी से अगर इतना ही प्यार है तो क्या वहां की सेना उनके खिलाफ हथियार उठाएगी.

दरअसल,पुतिन की दो बेटियां हैं– मारिया पुतिना और येकातेरिना पुतिना. पहली बेटी का जन्म रूस में ही हुआ लेकिन दूसरी बेटी का जन्म पूर्वी जर्मनी के ड्रेसडेन में हुआ. खबरों के मुताबिक उनकी बेटियां पूर्वी जर्मनी में पली-बड़ी और प्रधानमंत्री के रूप में उनकी नियुक्ति होने तक उन्होंने मास्को में स्थित जर्मन स्कूल से ही शिक्षा प्राप्त की. यहां जर्मनी का उल्लेख करना इसलिये भी जरूरी हो जाता है कि जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरु हुआ तब फ्रांस की हार के बाद हिटलर ने मुसोलिनी से संधि करके रूस सागर पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का विचार किया. उसके बाद जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया. जब अमरीका उस विश्वयुद्ध में कूद गया तो हिटलर की सामरिक स्थिति ऐसी बिगड़ने लगी कि हिटलर के सैनिक अधिकारी ही उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे. जब रूसियों ने बर्लिन पर आक्रमण किया तो हिटलर ने 30 अप्रैल 1945 को आत्महत्या कर ली थी. तो बड़ा सवाल ये है कि अमेरिका आखिर रूस को उस दूसरे विश्व युद्ध की याद दिलाना चाहता है या फिर जर्मनी को बलि का बकरा बनाने पर उतारु है?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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