कभी आपने सोचा है कि एक छोटे-से खुबसूरत मुल्क पर कोई बड़ा देश हमला कर दे, तो उसका अंजाम कितने बेगुनाह लोगों को भुगतना पड़ता है. लेकिन हम भारतवासियों को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. शायद इसलिये कि हम दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले मुल्क हैं. ये कभी नहीं सोचते कि इस दुनिया में दो भाई ऐसे भी हैं, जो वक़्त आने पर किसी को भी धोखा दे सकते है.


बड़े भाई चीन ने तो साबरमती नदी के किनारे झूला झूलते हुए और देसी चाय पीने के महज दो साल बाद ही अपना असली रंग दिखा दिया था. रही बात रूस की, तो वह भारत का पारंपरिक दोस्त रहा है, जो इतने सालों से हमें आधुनकि हथियार देने के साथ अब तो कच्चा तेल भी दे रहा है, जिसकी हमें बेहद जरुरत भी है. लेकिन उसके मासूम चेहरे के पीछे छुपी शातिर कुटिलता ये भी बताती है कि वो किसी बड़ी तबाही को अंजाम देने के रास्ते पर ऐसे आगे बढ़ रहा है, जो सबके लिये विनाशकारी साबित हो सकता है.


दरअसल, भारत इस वक़्त तराजू के दो पलड़ों में ऐसा फंसा हुआ है कि एक तरफ अमेरिका है, तो दूसरी तरफ रूस. वह दोनों को ही नाराज़ नहीं करना चाहता. यही वजह है कि बीती 22 फरवरी को शुरू हुई रूस-यूक्रेन की इस जंग में भारत ने अभी तक तटस्थ भूमिका अपनाई हुई है और उसने दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी संयुक्त राष्ट्र के मंच से हर बार यही दोहराया है कि इसका समाधान बातचीत के जरिए ही निकाला जाये. लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत, अमेरिका और दर्जनों यूरोपीय देशों की दी गई इस सलाह को अपने जूते तले रौंदते हुए ये साबित कर दिखाया है कि वे जो चाहते हैं, उसे अंजाम तक पहुंचाए बिना चैन भी नहीं लेने वाले है.


अगर उनकी पिछली निजी जिंदगी पर नजर डालें, तो इसका जवाब भी मिल जाता है कि आखिर वे क्यों अपनी जिद पर अड़े हुए हैं. दरअसल, वे राजनीति में आने से पहले रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के जासूस रहे हैं और कोई भी जासूस अपने दुश्मन मुल्क से बदला लेने की आदत कभी छोड़ ही नहीं सकता. ये हम नहीं कह रहे, बल्कि दुनिया के तमाम नामी मनोविश्लेषक कह चुके हैं कि ऐसा शख्स जब किसी देश का शासक बनता है, तो कोई भी ये अंदाज लगाने में अक्सर फेल हो जाता है कि आखिर उसके दिमाग में क्या चल रहा है. इसलिये कि दुनिया के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने के लिये वह विनाश की किसी भी हद तक जा सकता है.


हालांकि इसका ताजा सबूत भी सामने आने लगा है. इसकी बड़ी वजह ये है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रही इस लंबी जंग में रूसी मिसाइलों के हमले से हो रहे भारी नुकसान को देखते हुए यूक्रेन अपनी राजधानी कीव में ब्लैकआउट का बड़ा फैसला कर सकता है. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, अगर यूक्रेनी राजधानी कीव (Kiev) पूरी तरह से ब्लैकआउट हो जाती है, तो सरकारी सूत्रों के मुताबिक वहां के 30 लाख निवासियों को निकालना पड़ेगा.हालांकि जेलेन्सकी सरकार ने इसकी योजना बनाना शुरू कर दी है. जरा सोचकर देखिये कि एक साथ इतने लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर सरकार के भरोसे ही कोई सुरक्षित ठिकाना तलाशना पड़े, तो उस मुल्क में बच्चों,बुजुर्गों व महिलाओं का क्या हाल होगा!


दरअसल, पुतिन जब दुनिया के किसी मंच पर या भारत दौरे की बेहद छोटी-सी यात्रा पर आकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रुबरु होते हैं, तो देश की जनता को लगता है कि रूस हमारा सबसे बड़ा दोस्त है.बेशक वो है भी लेकिन चीन की गोद में बैठकर भारत से दोस्ती रखना उसकी सबसे बड़ी आर्थिक मजबूरी भी है. रूस ये जानता है कि हाल के सालों में अमेरिका से नजदीकी बढ़ाने के बावजूद आज भी भारत ही उससे सबसे ज्यादा हथियार और अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी खरीदता है,जो रूस के खजाने को भरने का सबसे बड़ा जरिया है.


लिहाजा, विदेशी कूटनीति के विश्लेषक भी मानते हैं कि रूस उस डिप्लोमेसी पर आगे बढ़ रहा है कि दुनिया के हालात को देखते हुए भारत भले ही अमेरिका से भी अपनी गलबहियां करते रहे लेकिन अपने पारम्परिक दोस्त के किसी भी फैसले में आड़े न आये. हालांकि रूस-यूक्रेन की इस जंग में अब तक भारत ने जो तटस्थ रुख़ अपनाया हुआ है,उससे रूस तो खुश है लेकिन अमेरिका समेत बाकी यूरोपीय देश इसलिये चिड़े बैठे हैं कि भारत आखिर ऐसा क्यों कर रहा है.


दरअसल, रूसी सेना ने पहले ही यूक्रेन के ऊर्जा ढांचे का करीब 40 प्रतिशत तक या तो नुकसान कर  दिया है या उसे पूरी तरह से खत्म कर दिया है. बीते 22 अक्टूबर को पूरे यूक्रेन में रूसी सेना की तरफ से दागी गईं मिसाइलों ने वहां के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर ऐसा हमला किया था कि तकरीबन 15 लाख से अधिक यूक्रेनी घरों की बिजली काट दी गई थी. हालांकि  यूक्रेन को बिजली सप्लाई करने वाले संस्थान ने दो दिन पहले ही कहा है कि वह देश  के विद्युत ग्रिड को पूरी तरह से फेल होने से रोकने में मदद करने के लिए सात क्षेत्रों में रोलिंग ब्लैकआउट को जारी रखेगा.


बता दें कि यूक्रेन की राजधानी कीव समेत सात ऐसे बड़े इलाके हैं,जहां पूरे दिन बिजली गुल रहती है और रात को अगर आधे-एक घंटे के लिए आ भी जाये,तो लोग शुक्र मनाते हैं.लेकिन अब हालात ऐसे बन चुके हैं कि रूस के साथ अब तक पूरी ताकत से मुकाबला करते आये यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्स्की भी इतने मजबूर हो गए हैं कि उन्हें अपनी ही राजधानी के लोगों को बाहर शरण लेने की गुहार लगानी पड़ रही है.


जाहिर है कि रूसी एयर स्ट्राइक के कारण ही यूक्रेन में ऐसा घोर बिजली संकट पैदा हुआ है क्योंकि रूसी वायु सेना ने चुन-चुनकर सारे ऊर्जा संयंत्रों पर निशाने साधे है.राष्ट्रपति जेलेंस्की के मुताबिक - यूक्रेन के 40 लाख लोग अंधेरे में रहने को मजबूर हैं, लेकिन हम अंधेरे से डरते नहीं. पुरानी कहावत है कि अगर एक ईमानदार इंसान कमजोर है, तो मुसीबत के वक़्त कई हाथ उसकी मदद के लिए खुद ही आगे आ जाते हैं.


यूक्रेन के लोगों को अंधेरे का सामना न करना पड़े, इसके लिए यूरोप के 12 देशों ने मदद देने का ऐलान किया है, जिससे कुछ हद तक तो यूक्रेन की रोशनी शायद रूस भी न बुझा पायेगा. मुसीबत की घड़ी में किसी कमजोर इंसान नहीं, बल्कि पूरे मुल्क के लिए यही असली ताकत भी होती है.


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


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