अगर हम दुनिया के नक़्शे पर गौर करेंगे तो एक छोटे-से डॉट की तरह एक देश दिखाई देगा, जिसका नाम है इजरायल. एक ऐसा देश जो हमारे राजस्थान प्रांत से भी छोटा ही समझा जायेगा. लेकिन दुनिया में अत्याधुनिक हथियार बनाने में वो इतना माहिर है के भारत समेत कई देश उसे खरीदने के लिए बेचैन रहते हैं. अगर उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद की बात की जाए तो वह अमेरिका की सीआईए और रुस की केजीबी से भी इतनी आगे है, जिसका भेद आज तक दुनिया के ये दोनों ताकतवर देश नहीं जान पाये कि आखिर उन्हें कैसी ट्रैनिंग दी जाती है. लेकिन रुस-यूक्रेन के बीच छिड़ी इस जंग को रोकने के लिए उसी इजरायल ने अपनी हिम्मत दिखाई है. अन्तराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया के जानकार मानते हैं कि इजरायल कभी भी हवाई बातें नहीं करता और जब काम पूरा हो जाता है, तब भी वो खुद उसका क्रेडिट नहीं लेता बल्कि वे उसका जिम्मा दुनिया के बाकी मुल्कों पर छोड़ देता है.
यूक्रेन पर कब्जा करने के लालायित दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताकत को समझाने के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट अचानक रुस पहुंचकर अगर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करते हैं और दोनों के बीच घंटों लंबी बातचीत होती है,तो इसे एक साधारण घटना मानने की भूल कोई नहीं करेगा. उससे भी बड़ी बात ये है कि वे राष्ट्रपति पुतिन से मिलने के बाद अपने देश लौटने की बजाय तुरंत जर्मनी के चांसलर से मिलने जा पहुंचते हैं. रुस-यूक्रेन के बीच छिड़ी इस लड़ाई में नाटो का सदस्य जर्मनी ऐसा मुल्क है,जो रुस के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर है और उसने पुतिन को खलनायक साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.
लिहाज़ा कूटनीतिक विशेषज्ञ ये आकलन लगा रहे हैं कि पुतिन-बेनेट के बीच कोई खिचड़ी जरुर पकी है वरना नेफ्टाली को जर्मनी जाने की जरुरत ही नहीं होती. कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि पुतिन नाटो देशों यानी यूरोप के लगाए आर्थिक प्रतिबंधों से रूस में आने वाली बदहाली का अंदाजा लगा चुके हैं. इसलिये ये माना जा रहा है कि उन्होंने इजरायली पीएम के जरिये नाटो देशों के पास युद्ध--विराम करने से जुड़ी कुछ शर्तों का कोई खाका भेजा हो. हालांकि इस बारे में इजरायल की तरफ से साफतौर कुछ भी नहीं बताया गया है. बेनेट के कार्यालय ने दोनों नेताओं की रूसी राष्ट्रपति कार्यालय में हुई मुलाकात की पुष्टि करते हुए सिर्फ इतना ही कहा है कि ये मुलाकात की घंटे तक चली.
बता दें कि भारत की तरह इज़रायल भी रुस और यूक्रेन दोनों का ही मित्र राष्ट्र है और वो भी हमारी तरह ही किसी मुल्क को विनाश के रास्ते पर ले जाने के खिलाफ है. बताया जाता है कि रूसी सेना के भीषण हमलों को देखकर ही यूक्रैन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की ने बेनेट के आगे गुहार लगाई थी कि वे पुतिन से कहें कि बातचीत के जरिये इस संकट को हल किया जाए. उसके बाद ही बेनेट ने पुतिन से फ़ोन पर चर्चा करके उन्हें यूक्रेन से बातचीत करने के लिए राजी किया था.
अपने अड़ियल रुख के लिये दुनिया में मशहूर हो चुके पुतिन ने हालांकि उनकी बात मानी और यूक्रेन से बात करने के लिए अपना प्रतिनिधि मंडल भी भेजा. रुस और यूक्रैन के बीच दो दौर की बातचीत हो चुकी है,जो बेनतीजा रही है. सोमवार को तीसरे दौर की बातचीत होने की संभावना जताई जा रही है. पोलैंड की सीमा के नजदीक बेलारूस में पिछले गुरुवार को हुई बातचीत में रूसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सलाहकार व्लादिमीर मेदिन्स्की ने कहा कि दोनों पक्षों की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है, संघर्ष के राजनीतिक समाधान से संबंधित मुद्दों समेत एक-एक बात लिखी गई है. हालांकि उन्होंने विस्तार से इसकी जानकारी नहीं दी लेकिन इतना जरुर कहा कि उनकी ओर से आपसी सहमति बनी है. उन्होंने पुष्टि की कि रूस और यूक्रेन नागरिकों को निकालने के लिए सुरक्षित गलियारे बनाने के अस्थाई समझौते पर पहुंच गए हैं. रूस के वरिष्ठ सांसद लियोनिद स्लुत्स्की ने कहा कि अगले दौर की बातचीत में समझौते हो सकते हैं, जिन्हें रूस और यूक्रेन की संसदों द्वारा अनुमोदित किए जाने की आवश्यकता होगी.
लेकिन पुतिन-बेनेट की मुलाकात के बीच ही अंतराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी है कि इजराइल ने रूसी हमले की निंदा करते हुए यूक्रेन के साथ एकजुटता व्यक्त की है और यूक्रेन को मानवीय सहायता भी भेजी है. सामरिक विशेषज्ञ कहते हैं कि इजरायल फिलहाल एक साथ दो भूमिका निभा रहा है. पहला तो ये कि वो मध्यस्थता करके इस युद्ध को कहतम कराना चाहता है लेकिन साथ ही वह यूक्रेन की मदद करके रुस को ये भी संदेश दे रहा है कि वकः उसे कमजोर समझने की गलती न करे. उनके मुताबिक अन्तराष्ट्रीय कूटनीति में इजरायल का ये अपनी तरह का अलग ही रवैया होता है कि एक तरफ वो संकट का समाधान करवाने का पक्षधर होता है,तो वहीं अपने से कमजोर मित्र राष्ट्र का साथ देकर ताकतवर मुल्क को ये अहसास भी करा देता है कि उसे अकेला मत समझना,क्योंकि इजरायल भी उसके पीछे खड़ा है. लेकिन देखने वाली बात ये भी है कि रूसी सेना के भीषण हमलों के बावजूद यूक्रैन पूरी मजबूती से डटा हुआ है और वह अपनी हार मानने को भी तैयार नहीं है. यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की की तारीफ इसलिये भी की जानी चाहिए कि युद्ध के 10 दिन बीत जाने के बाद भी न तो वे खुद हिम्मत हारे हैं और न ही अपने देश के लोगों का हौसला पस्त होने दे रहे हैं.
जेलेंस्की ने शनिवार को यूरोप के प्रमुख शहरों में हजारों प्रदर्शनकारियों को वर्चुअली संबोधित करते हुए जिस भावनात्मक अंदाज में अपनी बात कही है,वो बेहद मायने रखती है. उन्होंने कहा कि अगर यूक्रेन नहीं बचेगा तो पूरा यूरोप नहीं बचेगा. उन्होंने सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि चुप मत रहें. सड़कों पर निकलें. यूक्रेन का समर्थन करें. हमारी स्वतंत्रता का समर्थन करें. ये न केवल रूसी सैनिकों पर जीत होगी, ये अंधेरे पर प्रकाश की जीत होगी. बुराई पर अच्छाई की जीत होगी. यूक्रेन की सरजमीं पर अब जो कुछ हो रहा है, उस पर आजादी की जीत होगी. जेलेंस्की की ऐसी बातों को सुनकर सचमुच दुनिया को भी ये अहसास हो रहा होगा कि ये लड़ाई है तूफान से दिये की लेकिन कौन जानता है कि इसमें दिया कब तक रोशन रहेगा!
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