'अरेस्ट वॉरंट' के बाद क्या भारत आने की हिम्मत जुटा पाएंगे रूसी राष्ट्रपति पुतिन?
Russian President Vladimir Putin: दुनिया के 123 देशों की सदस्यता वाली इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के ख़िलाफ़ गिरफ्तारी वॉरंट तो जारी कर दिया, लेकिन सवाल है कि दुनिया के सबसे ताकतवर नेता को गिरफ्तार करना क्या इतना ही आसान है?
अंतराष्ट्रीय कानून के जानकारों के मुताबिक ऐसा होना सिर्फ मुश्किल ही नहीं बल्कि लगभग नामुमकिन है. चूंकि G20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों का शिखर सम्मेलन आगामी 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में होना है, इसलिए सवाल उठ रहा है कि इस वॉरंट के बाद पुतिन क्या भारत यात्रा पर आने का फैसला लेंगे? और, मान लें कि अगर वे आ गए, तो ICC का सदस्य देश होने के नाते अंतराष्ट्रीय कानून के तहत भारत क्या उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत जुटा पाएगा?
सबसे बड़ी बाधा
हालांकि, कानूनी जानकारों के मुताबिक पुतिन के गिरफ़्तार न होने की सबसे बड़ी वजह तो ये है कि रूस आईसीसी का सदस्य नहीं है. लिहाज़ा, वह उसके अधिकार क्षेत्र को मान्यता नहीं देता है. दूसरा, ये कि ICC के पास अपना कोई पुलिस बल नहीं है, इसलिए यह किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकता. कोर्ट गिरफ्तारी के लिए सिर्फ वॉरंट जारी कर सकता है, लेकिन गिरफ्तारी के लिए उसे दूसरे देशों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. इसलिए सबसे बड़ी बाधा तो यही है पुतिन को गिरफ्तार किए और उन्हें कटघरे में खड़े किए बगैर अदालत उन पर मुकदमा भला कैसे चला सकती है.
ICC ने पुतिन के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी किया
गौरतलब है कि यूक्रेन में हुए युद्ध अपराधों के लिए ICC ने पुतिन को दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी किया है. वॉरंट में पुतिन को बच्चों के अपहरण और उन्हें डिपोर्ट करने के लिए जिम्मेदार बताया गया गया है. कोर्ट के बयान में कहा गया है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जंग के दौरान कई तरह के अपराध किए हैं. उन्होंने गैर-कानूनी तरीके से बच्चों को यूक्रेन से रूस भेजा. संयुक्त राष्ट्र जांच आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि जंग के दौरान कुछ बच्चों को रूसी नागरिकता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया था. जिस वजह से उन्हें रूस में स्थायी तौर पर रहना पड़ा.
करीब 16,221 बच्चों को जबरदस्ती रूस भेजा गया. इस तरह के काम ने अंतरराष्ट्रीय मानवता कानून को तोड़ा है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी लोगों पर बलात्कार और यातना के अलावा यूक्रेन के एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर को क्षतिग्रस्त करने का भी आरोप लगा है.
स्थितियों में होती है गिरफ्तारी
कानून के जानकारों के अनुसार ICC द्वारा जारी वॉरंट में गिरफ्तारी दो स्थितियों में होती है. पहला ये कि रूस उन्हें खुद इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट को सौंप दे, जिसकी कोई संभावना नहीं है. मतलब ये कि जब तक वे रूस में रहेंगे, उनके गिरफ्तार किए जाने का कोई ख़तरा उन्हें नहीं होगा. दूसरा यह कि अगर वे रूस को छोड़ते हैं तो उन्हें हिरासत में लिया जा सकता है. हालांकि उनके दूसरे देशों में आने-जाने पर पहले ही कई तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं, जिसके चलते वे शायद ही किसी ऐसे देश में दिखाई देंगे जो उन पर मुकदमा चलाना चाहेगा. पुतिन की गिरफ्तारी के लिए आईसीसी अपने सदस्य देशों पर दबाव तो बना सकती है, लेकिन उन्हें क़ानूनी आदेश देकर इसके लिए मजबूर नहीं कर सकती.
पहला अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय
दरअसल, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट दुनिया का पहला अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है, जिसकी स्थापना साल 2002 में हुई थी. इस संधि को रोम संधि भी कहा जाता है. यह चार तरह के मामलों की सुनवाई करता है- नरसंहार का अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध, आक्रामकता के अपराध और युद्ध अपराध. इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में सिर्फ आरोपी के खिलाफ कार्रवाई होती है, न कि किसी देश या किसी समूह के खिलाफ. ICC का मुख्यालय नीदरलैंड के द हेग में स्थित है. इसके मुताबिक हर देश का ये कर्तव्य है कि वह अंतरराष्ट्रीय अपराधों के लिए ज़िम्मेदार लोगों पर अपने देश का आपराधिक क्षेत्राधिकार लागू करे. आईसीसी सिर्फ वहां हस्तक्षेप कर सकता है जहां कोई देश अपराधियों पर मुकदमा चलाने में असमर्थ या इच्छुक न हो.
क्या कोई असर पड़ सकता है?
अब सवाल उठता है कि इस वॉरंट से पुतिन की विदेश यात्रा पर क्या कोई असर पड़ सकता है? बता दें कि फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से राष्ट्रपति पुतिन ने सिर्फ आठ देशों का दौरा किया है. उनमें से सात ऐसे देश हैं, जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे. ईरान इकलौता ऐसा देश है जो इस श्रेणी में नहीं आता है. उन्होंने पिछले साल जुलाई में ईरान में वहां के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली खोमैनी से मुलाक़ात की थी.
ईरान ने ड्रोन और दूसरे सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति में रूस की मदद की है, इसलिए ईरान की यात्रा भी पुतिन को किसी भी संकट में नहीं डालने जा रही है. लेकिन इस मामले में ICC के प्रोसिक्यूटर करीम खान कहते हैं, आईसीसी कोर्ट अपने सदस्य देशों को पुतिन की गिरफ्तारी के लिए दबाव बना सकती हैं, लिहाजा भविष्य में की जाने वाली पुतिन की विदेश यात्रा पर इसका असर पड़ सकता है.
नूरेमबर्ग मुक़दमा चलाया गया था
गौर करने वाली बात ये भी है कि मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के लिए लोगों पर मुकदमा चलाने का प्रावधान आईसीसी के बनने से पहले से ही है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद साल 1945 में नूरेमबर्ग मुक़दमा चलाया गया था. ये मुक़दमा नाज़ी जर्मनी में होलोकॉस्ट और दूसरे अत्याचारों के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ चलाया गया था. इसमें नाज़ी नेता एडोल्फ़ हिटलर के डिप्टी रुडोल्फ़ हेस शामिल थे, जिन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी. हालांकि साल 1987 में उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.
पुतिन के ख़िलाफ़ ऐसा केस चलना चाहिए- कमला हैरिस
जहां तक पुतिन का सवाल है तो उन्हें युद्ध अपराध का दोषी तो माना गया है लेकिन उन पर मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों का आरोप फिलहाल नहीं लगाया गया है. हालांकि अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा है कि उनके ख़िलाफ़ ऐसा केस चलना चाहिए. लेकिन जानकारों के मुताबिक अगर पुतिन को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, तो यह एक क़ानूनी मुश्किल पैदा करेगा क्योंकि संयुक्त राष्ट्र खुद कहता है, "नरसंहार और युद्ध अपराधों के अलावा मानवता के ख़िलाफ़ अपराध को अंतरराष्ट्रीय क़ानून की एक संधि में नहीं डाला गया है, हालांकि ऐसा करने के लिए कोशिशें की जा रही हैं."
वहीं, रूस ने पुतिन पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए गिरफ्तारी वॉरंट की तुलना टॉयलेट पेपर से की है. लेकिन इस वॉरंट पर यूक्रेन बेहद खुश है और उसने कहा है कि यह तो सिर्फ शुरुआत है. पुतिन के लिए अभी और भी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.
(यह लेखक के निजी विचार हैं)