तीन साल पहले नफ़रत भरा बयान देने यानी हेट स्पीच को लेकर यूपी की समाजवादी पार्टी के विधायक और मुस्लिमों के कद्दावर नेता आज़म खान को तो न्यायपालिका ने 'हिट विकेट' कर दिया. कोर्ट के इस फैसले पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता है.लेकिन सवाल ये है कि बीते इन सालों में न मालूम कितने राजनीतिक या धार्मिक नेताओं ने ऐसी कितनी हेट स्पीच दी हैं,उनका क्या होगा? सिर्फ़ इसलिये कि उनके ऐसे नफरत भरे बयानों की किसी ने पुलिस में शिकायत ही दर्ज नहीं कराई .


लेकिन हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि देश की सर्वोच्च अदालत में बैठे माननीय न्यायाधीश पुलिस-प्रशासन की ऐसी लापरवाही या एकतरफा कार्रवाई को पकड़ने में ज्यादा देर नहीं लगाते. देश की राजधानी दिल्ली से लेकर यूपी और उत्तराखंड में बीते दिनों में हेट स्पीच देने की अनेकों घटनाएं हुई हैं लेकिन मजाल है कि वहां की स्थानीय पुलिस ने उसके  ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की हो. समूचे देश में खाकी वर्दी का बरसों पुराना रवैया यही होता है कि जब कोई शिकायत मिलेगी,तब देखा जाएगा लेकिन अगर ऊपर से कोई फ़रमान आ गया, तो वो शिकायती अर्जी भी थाने के कूड़ेदान में ही पड़ी होगी.


अभी एक हफ़्ता ही हुआ,जब 21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच  को लेकर  बेहद सख्त रवैया अपनाते हुए अपने आदेश में कहा है कि इस कोर्ट की जिम्मेदारी है कि यह इस तरह के मामलो में हस्तक्षेप करे. हेट स्पीच पर शीर्ष अदालत ने सभी सरकारों को साफतौर पर निर्देश देते हुए कहा है कि या तो कार्रवाई कीजिए, नहीं तो अवमानना के लिए तैयार रहिए. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड की पुलिस को नोटिस जारी करते हुए ये पूछा है कि, हेट स्पीच में लिप्त लोगों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की गई,इसकी पूरी रिपोर्ट अगली सुनवाई पर पेश की जाये.


ये आदेश देते हुए जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली खंडपीठ ने हाल में हुई धार्मिक सभाओं के दौरान अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ दिए गए कुछ बयानों और हेट स्पीच पर हैरानी भी जताई थी. अदालत ने आदेश दिया कि राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन आरोपी के धर्म को देखे बिना इस संबंध में अपने अधीनस्थों को निर्देश जारी करेंगे, ताकि भारत की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को संरक्षित किया जा सके.माननीय न्यायाधीश जस्टिस जोसफ को तो ये टिप्पणी करने पर मजबूर होना पड़ा था कि  "21वीं सदी में हम धर्म के नाम पर कहां पहुंच गए हैं? जब तक विभिन्न धर्मों या जातियों के सदस्य सौहार्दपूर्ण ढंग से नहीं रहते, तब तक बंधुत्व नहीं हो सकता."


सपा के कद्दावर नेता आज़म खान को हेट स्पीच दिए जाने के जिस मामले में कोर्ट ने उन्हें 3 साल की सजा सुनाई है,वह साल 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रचार से जुड़ा हुआ है.लेकिन सोचने वाली बात ये है कि उसके बाद से ये सिलसिला बदस्तूर जारी है और इसमें दोनों ही धर्मों के तथाकथित ठेकेदार न्यूज़ चैनलों पर आकर हर रोज ऐसी जहरीली भाषा का इस्तेमाल करते हैं,जिसकी एक चिंगारी ही देश में साम्प्रदायिक हिंसा की आग भड़का सकती है.लेकिन मज़ाल है कि पुलिस-प्रशासन ने इन बीते तीन सालों में स्वत: ही संज्ञान लेते हुए ऐसी किसी भी शख्सियत के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने की हिम्मत जुटाई हो.


वैसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके जस्टिस ए.एन. मुल्ला ने एक बार कहा था कि, " इस देश में पुलिस, खाकी वर्दी में छुपे अपराधियों का एक संगठित गिरोह है." कानून के दिग्गज जानकर भी मानते हैं कि हमारे देश की पुलिस बेलगाम है लेकिन उसकी लगाम सिर्फ हमारी न्यायपालिका के हाथ में ही है क्योंकि मुसीबत में फंसने पर उसे वो ताकतवर नेता भी नहीं बचा पाता, जिसके आगे वो दिन-रात सैल्यूट बजाता है.


अब बता दें कि आज़म खान हेट स्पीच को लेकर आखिर कैसे फंस गये, जिसके बारे में तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा. साल 2019 के लोकसभा चुनाव-प्रचार के दौरान आजम खान रामपुर  विधानसभा के एक गांव में भाषण दे रहे थे.कथित रुप से उन्होंने अपने भाषण में वहां के तत्कालीन डीएम, प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया था, जो अमर्यादित थी औऱ जिसे कानून की निगाह में अपराध समझा जाता है.आज़म के उसी भाषण को  लेकर 27 जुलाई 2019 को बीजेपी के एक स्थानीय नेता आकाश सक्सेना ने आजम खान के खिलाफ केस दर्ज कराया था.अब तीन साल बाद,उसी मामले में आजम को दोषी पाया गया है और इसके साथ ही उनका राजनीतिक करियर भी संकट में चला गया है .जन प्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक अब वे 6 साल तक चुनाव लड़ने के योग्य नहीं रहेंगे.


दरअसल,सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था,जिसके मुताबिक, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा होती है, तो उनकी सदस्यता स्वत: ही रद्द हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने तब तत्काल प्रभाव से इस फैसले को सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर लागू करने का आदेश दिया था.


अब आज़म खान के पास विकल्प यही है कि वे इस फैसले को ऊपरी अदालतों में चुनौती दे सकते हैं लेकिन ये जरुरी नहीं कि उन्हें राहत मिल ही जायेगी. पर,इस बहाने शीर्ष अदालत में एक बार फिर से हेट स्पीच का मुद्दा तो गरमाएगा ही.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]