उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुख्तार अंसारी के शूटर संजीव जीवा की बुधवार 7 जून को हत्या कर दी गयी. वजीरगंज थाना क्षेत्र के SC/ST कोर्ट के बाहर हुई फायरिंग में बदमाश संजीव जीवा को गोली मारी गयी. हमले में इस कुख्यात बदमाश की मौत हो गयी. हमले में यूपी पुलिस के दो जवान और एक छोटी बच्ची भी घायल है, जिससे मिलने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अस्पताल भी गए थे. संजीव की हत्या के साथ ही फिर से लखनऊ की सरकार पर ऊंगलियां उठने लगी हैं. प्रशासन की ऐन नाक के नीचे हत्या हो जाने के बाद एसआईटी का गठन किया गया है, जिसे 7 दिनों में रिपोर्ट देनी है. 


इन हत्याओं का एक निश्चित पैटर्न


यूपी में जो दिनदहाड़े हत्याएं हो रही हैं, उनमें निश्चित रूप से एक पैटर्न है. लोग कह रहे हैं कि यह कानून-व्यवस्था का फेल्योर है. तो, यह फेल्योर है लेकिन यह एक सुनियोजनत ढंग से सिर्फ और सिर्फ उन बदमाशों की हत्या हो रही है, जो सरकार के विरोधी माने जाते हैं. यूपी में राजनीति और अपराध की गलबंहियां पुरानी रही हैं और यह कोई छिपी हुई बात नहीं है. यह पहली बार हो रहा है कि रूलिंग पार्टी ने विरोदी पार्टियों के क्रिमिनल्स को मारने का जैसे बीड़ा उठाया हुआ है, अभियान चलाया हुआ है. कम से कम पचासों ऐसे अपराधी हैं, जिन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. जो लाभान्वित हो रहे हैं, ऐसे सज्जन हैं जो 31 साल के बाद जेल से छूटे हैं. कई साल तक जेल में रहे हैं, पर उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, बुलडोजर नहीं चल रहा है.


अपराधी यहां दो वर्ग में हैं. जैसे जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने कहा था, 'जो हमारे साथ नहीं हैं, वे हमारे खिलाफ हैं', तो ये पहली बार पैटर्न मैं देख रहा हूं. जैसे, अमेरिका का पैटर्न था कि ओसामा बिन लादेन को कहीं भी जाकर मारेंगे, तो वो नहीं है. अपने देश में, अपने घर में कोई जगह लेकिन छोड़ी नहीं है. जुडिशियल कस्टडी से लेकर जेल तक, पुलिस कस्टडी, कोर्ट रूम में हत्याएं हो रही हैं. कोई भी हत्या हालांकि ऐसे किसी अपराधी की संदिग्ध हत्या नहीं हुई जो प्रो-गवर्नमेंट माना जाता हो. इस पैटर्न का शिकार उत्तर प्रदेश हो रहा है.



यह दौर है अभूतपूर्व, पहले नहीं देखा 


मैं 30 वर्ष तक पुलिस में रहा. हमने कोर्ट-रूम में, पुलिस कस्टडी में, जेल में हमने लगातार हत्याओं का ऐसा दौर नहीं देखा. बांदा जेल में अतीक के शूटर्स की हत्या हुई, मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या हुई. दो-दो बार हाई सेक्योरिटी वाली जेल में हत्या हो जाती है. तो, उसको काउंट ही नहीं करते हैं क्या? सरकार ने इसे वध की तरह सोचना शुरू किया है और मानती है कि उसके पास अपराधियों के वध करने का अधिकार है. यह बेहद खतरनाक ट्रेंड है. आज अपराधी हैं, कल को सामान्य विरोधियों को कत्ल होगा, हमारे जैसे लोग जो सरकार के विरोधी हैं, उनका भी वध हो सकता है. ये हत्याएं साजिशन हुई हैं, इसको मानने का कारण है. ऐसी हत्याएं बिल्कुल सलेक्टिव है. सरकार बिल्कुल विरोधाभासी बातें कर रही हैं.


वह कह रही है कि हमारे यहां लॉ एंड ऑर्डर बिल्कुल काबू में है और हमारे यहां परिंदा भी पर नहीं मारता. परिंदा तो लेकिन खूब पर मारता है. वह चुनिंदा है. इनके नेता लगातार नाम लेकर चाहे वो मुख्तार हो, अतीक हों या इस तरह के जो भी चार-पांच लोग हों, उनका नाम लेकर कहते हैं कि हमने उनको दुरुस्त कर दिया. उनके दूसरी तरफ वाले जो लोग हैं, वो तो बेहद सुरक्षित हैं. बागपत में, जेल में मुन्ना बजरंगी को मार दिया जाता है, उसी प्रकार अतीक-अशरफ को फिल्मी ढंग से मार दिया गया. पुलिस के लोग वहीं रहते हैं और कुछ नहीं करते हैं. वह चैप्टर क्लोज कर दिया गया, बिल्कुल फिल्मी अंदाज में. तीन लोगों को छोड़कर किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई. जो 18-19 लाख के हथियार थे,वह तो उन लड़कों की औकात के बाहर के थे. हालांकि, उस पर कुछ झांकने की कोशिश ही नहीं की गयी. 


सरकार चाहती है दोनों हाथों में लड्डू


ये जो संजीव जीवा की हत्या हुई, वह देखिए. वह भी मुख्तार अंसारी का शूटर था. कृष्णानंद राय और ब्रह्मदत्त द्विवेदी के हत्यारे के तौर पर आरोपित तो उसकी भी दिनदहाड़े हत्या हुई औरअब उसकी भी सतही जांच कर बात को खत्म कर दिया जाएगा. अतीक की हत्या इसलिए और भी जघन्य है, क्योंकि वह पुलिस कस्टडी में हुई. वह ज्यादा चैलेंजिंग है और सरकार का दोनों हत्याओं में रिस्पांस देख लीजिए. पाल की हत्या के मामले में कहां-कहां तक पुलिस गयी. अतीक की पत्नी और बच्चों तक पर मुकदमे हुए, कुछ की हत्याएं हो गयीं. अतीक की हत्या के बाद जो तीन लोग पकड़े गए, उसके बाद सरकार ने कोई काम ही नहीं किया. तो, मैं तो कह रहा हूं कि सरकार चाहती तो कोई हत्या ही नहीं होती. बल्कि, इसके अंदर एक भयानक षडयंत्र की बू आ रही है. 


इस जगह हो ये रहा है कि सरकार और उसके पॉलिटिकल लोग अपने लाभ में ला रहे हैं. कोर्ट को ये बांटने का काम कर रहे हैं. षडयंत्र के अलावा ये सरकार का संपूर्ण फेल्योर है. अतीक की हत्या को देखिए. एक तो उसकी दिनदहाड़े हत्या हो गयी और सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि प्राकृतिक न्याय हो गया, मतलब वहां भी क्रेडिट ले रहे हैं. मतलब, पॉलिटिकल गेममैनशिप चल रहा है. चित भी इनकी, पट भी इनकी. हालांकि, इनको लग रहा है कि ये अभी जीत रहे हैं, लेकिन इसमें लोकतंत्र की हत्या हो रही है. इनको लग रहा है कि ये अपोनेंट को मार भी रहे हैं और क्रेडिट भी ले रहे हैं. जैसे, जीवा कौन था..तो हत्यारा था, अतीक कौन था..तो माफिया था. नैरेटिव चल रहा है कि जो गलत लोग हैं, उनकी हत्या हो रही है. सरकार का यह काम लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक है. पाल की हत्या में इनका रिस्पांस ठीक था, जब तक ये अंतिम हद तक सत्य को खोज रहे थे, लेकिन फिर बिना सबूत के ही लोगों को नामजद कर दिया, हड़बड़ी मचा दी तो गलत संकेत दिया. उसी तरह अतीक कौन था, यह महत्वपूर्ण नहीं, उसकी हत्या पुलिस कस्टडी में हुई, यह अधिक महत्वपूर्ण है. 


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