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BLOG: पाकिस्तान में आखिर बालविवाह निषेध से परेशानी क्या है?

बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है. संशोधन के अनुसार, 18 साल से कम उम्र में विवाह पर 2 लाख रुपये का जुर्माना और इस कार्य में सहायता करने वालों को तीन साल तक की कड़ी सजा प्रावधान किया गया है.

पाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति आज भी दयनीय है. भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान के बनने के सात दशकों में भी यहां महिलाएं दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक पिछड़ी हैं. हालांकि यहां नारी अधिकार वाद से जुड़े कुछ नाम हैं, जैसे बेनजीर भुट्टो, मुख्तारन माई और अब मलाला युसुफजई. लेकिन ये नाम महिलाओं की शक्ति के बजाय उसकी विवशता को ही अधिक उजागर करते हैं. यातना, प्रताड़ना, दुष्कर्म, वैवाहिक दमन और सम्मान के नाम पर हत्याएं महिलाओं के जीवन का स्थायी भाव बन चुके हैं.

अगर हम भावनाओं से हटकर आंकड़ों की तरफ आयें तो यह तस्वीर कहीं अधिक भयावह है. यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान में 21 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी जाती है.  और भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि इनमें से 3 प्रतिशत की शादी 15 साल से कम उम्र में कर दी जाती है. गैलप पोल के मुताबिक, पाकिस्तान में 1.9 करोड़ लोगों (जनसंख्या का 13%) का अनुमान है कि जब वे 18 साल से कम उम्र के थे, तब उनकी शादी हो चुकी थी. इसके अलावा चार महिलाओं (24.7%) में से एक की शादी 18 से कम की उम्र में हुई. और अन्य विकासशील देशों की तरह पाकिस्तान में बाल विवाह के कारण उच्च मातृ मृत्यु दर जैसी बड़ी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. वहीं दूसरी ओर महिलाओं की यह बड़ी संख्या शिक्षा से महरूम है, जिसके कारण यह रोजगार और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के विषय में सोच भी नहीं सकती जो इनकी दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है.

और जब भी महिलाओं को इन रुकावटों से मुक्त कराने के लिए कदम उठाये जाते हैं तो देश का रुढ़िवादी धार्मिक और राजनैतिक नेतृत्व का बड़ा हिस्सा ही इसके आड़े आ जाता है, जैसा अभी हाल ही में हुआ है. अभी हाल ही में 29 अप्रेल को पाकिस्तान की सीनेट में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सेनेटर शेरी रहमान ने एक विधेयक “बाल विवाह पर प्रतिबंध (संशोधन) विधेयक 2018” पेश किया जो पाकिस्तान में लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 18 साल करने का प्रस्ताव करता है. यह विधेयक जिस कानून में संशोधन की बात करता है यानी बाल विवाह निषेध अधिनियम 1929, जिसे भारत में शारदा अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है. मूल रूप से 1929 में हर बिलास शारदा के अथक प्रयासों के बाद लेजिस्लेटिव काउंसिल की तरफ से पारित किया गया था. इसमें लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र 14 साल और लड़कों के लिए 18 साल तय की गई थी.  इस अधिनियम में पाकिस्तान में अब तक केवल एक बार यानी 1961 में मुस्लिम परिवार कानून अध्यादेश द्वारा संशोधन किया गया था, जब महिलाओं के लिए विवाह योग्य आयु 16 साल कर दी गई थी. इस अधिनियम का एक कमजोर पक्ष और भी है कि इसका अतिक्रमण गैर-संज्ञेय बना हुआ है, जिसका अर्थ है कि पुलिस अदालत से वारंट मांगे बिना इसके उल्लंघन के मामलों पर गिरफ्तारी नहीं कर सकती.

शेरी रहमान ने बिल पर मतदान के लिए सीनेट अध्यक्ष से आग्रह करते हुए कहा कि चूंकि मतदान और राष्ट्रीय पहचान पत्र (एनआईसी) के लिए पात्रता की आयु 18 साल है, इसलिए यौवन की आयु भी उसी के अनुसार तय की जानी चाहिए. रहमान के अनुसार "अनेकों मुस्लिम देशों ने 18 साल की उम्र को युवावस्था घोषित किया है, उनमें बांग्लादेश, मिस्र, तुर्की, मोरक्को, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और यहां तक कि सऊदी अरब भी शामिल हैं जबकि अल्जीरिया में तो यह उम्र 19 साल है.”

यद्यपि इस बिल को सीनेट द्वारा मंजूरी दे दी गई है, लेकिन इसे नेशनल असेंबली में एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री इमरान खान के खुद के मंत्रिमंडल के सदस्यों ने इस कदम का विरोध किया है. पूर्व नेता नवाज शरीफ की पीएमएल-एन पार्टी भी इस मुद्दे पर विभाजित है, हालांकि बिलावल भुट्टो की पीपीपी इस कदम का समर्थन कर रही है.

क्योंकि बिल को पाकिस्तान की नेशनल असेंबली से पारित होने की आवश्यकता है और इस हेतु  सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) के सांसद डॉ रमेश कुमार वन्कवानी ने 30 अप्रेल को ही एक बिल सदन में पेश किया.  लेकिन पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के भीतर ही इस मुद्दे पर गंभीर अंतर्कलह सामने आई है.  संघीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री फवाद चौधरी ने खुलकर इसका विरोध किया है. संसदीय मामलों के संघीय मंत्री अली मुहम्मद खान ने कहा कि इस्लाम के खिलाफ कोई कानून नहीं बनाया जा सकता है. खान ने कहा कि वह इस्तीफा देना पसंद करेंगे लेकिन शरिया के खिलाफ किसी भी विधेयक का समर्थन नहीं करेंगे. संघीय धार्मिक मामलों और इंटरफेथ हार्मनी के मंत्री और डॉ नूर-उल-हक कादरी ने भी बिल का विरोध किया. वहीँ दूसरी ओर सरकार की मानवाधिकार मंत्री डॉ शिरीन मजारी ने इस बिल का समर्थन करते हुए कहा कि तुर्की और बांग्लादेश ने भी शादी के लिए 18 साल की उम्र निर्धारित की थी. उन्होंने यह भी कहा कि "संसद सर्वोच्च है, यह निर्णय ले सकती है," और यह भी कि “मिस्र की अल-अजहर यूनिवर्सिटी ने भी इस संबंध में एक फरमान जारी किया था.“ गतिरोध के बाद बहुसंख्यक असेम्बली सदस्यों ने विधेयक को कानून और न्याय पर स्थायी समिति को संदर्भित करने का समर्थन किया.

विधेयक का विरोध करने वाले कुछ सदस्यों द्वारा सदन में हंगामा करने के बाद, नेशनल असेंबली ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 में संशोधन करने के लिए विधेयक को लिए प्रस्तावित इस विधेयक को आगे की कार्यवाही के लिए कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति के पास भेज दिया है.  अब नेशनल असेम्बली की कमेटी बिल की समीक्षा करेगी और अपनी मंजूरी के लिए नेशनल असेम्बली को फिर से भेजने से पहले इस पर काउंसिल ऑफ़ इस्लामिक आइडियोलॉजी (सीआईआई)से परामर्श करेगी.

परन्तु इस मामले में सीआईआई का रवैय्या पूर्वाग्रह से ग्रस्त है. जनरल अयूब खान द्वारा कट्टरपंथी मौलानाओं के तुष्टिकरण के लिए स्थापित सीआईआई हालाँकि एक संवैधानिक निकाय है जो इस्लामिक क़ानूनों से जुड़े हुए मुद्दों पर संसद को अपने सुझाव देता है लेकिन संसद इन्हें मानने को बाध्य भी नहीं है.  इस समिति में न्यूनतम आठ और अधिकतम 20 सदस्य होते हैं, जिसमें एक महिला भी शामिल है, जिसका कार्य संसद को यह सलाह देना है कि क्या प्रस्तुत कानून इस्लामी निषेधाज्ञा के अनुरूप हैं अथवा नहीं. लेकिन ऐसे मामलों में सीआईआई हमेशा ही अपनी दकियानूसी कट्टरपंथी सोच से उबर नहीं पाता है.  दो साल पूर्व महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित 'मॉडल' क़ानून बनाने के लिए एक ऐसे विधेयक के मसौदे को यहाँ लाया गया था  जिसमें पति को पत्नी की 'हल्की पिटाई' करने की इजाज़त होगी और साथ ही कला के नाम पर नृत्य, संगीत और मूर्तियां बनाने पर प्रतिबंध लगाने की सिफ़ारिश भी की गई थी. पूर्व सांसदों मारवी मेमन और आतिया अनायतुल्ला द्वारा 2010 में बालविवाह पर रोक लगाने संबंधी इसी तरह का बिल सीआईआई को भेजा गया था, जिसे परिषद ने इस अवलोकन के साथ लौटा दिया था कि यौवन की उम्र बदलती रहती है और इसे फूकाहा के अनुसार इसे तय नहीं किया जा सकता है.

और अब एक बार फिर वही प्रपंच प्रारंभ कर दिया गया है. नेशनल असेम्बली में हंगामे के दो दिन बाद ही, सीआईआई ने  इस प्रथा के खिलाफ कानून पारित करने के बजाय बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता अभियान शुरू करने का आह्वान किया. सीआईआई प्रवक्ता द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, इस  शीर्ष धार्मिक निकाय ने अपनी 212 वीं बैठक में इस मामले पर विस्तार से चर्चा की और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि "बाल विवाह के खिलाफ कानून और एक आयु सीमा निर्धारित करने से कई जटिलताएं पैदा होंगी". इसके साथ ही इसके “अनुसंधान विभाग” ने एक 10-पृष्ठ की "व्यापक रिपोर्ट" प्रस्तुत की जिसमें धार्मिक विद्वानों द्वारा  बाल विवाह विरोधी विधेयक कानून पारित करने के के पक्ष और विपक्ष में विस्तृत विवरण दिया गया है.

प्रस्तावित विधेयक में क्या है?

इस विधेयक में बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है. संशोधन के अनुसार, 18 साल से कम उम्र में विवाह पर 2 लाख रुपये का जुर्माना और इस कार्य में सहायता करने वालों को तीन साल तक की कड़ी सजा प्रावधान किया गया है.

बाल विवाह रोकने के लिए पाकिस्तान पर कानूनी और नैतिक दबाव

पाकिस्तान ने सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ती हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की है  और इसकी लक्ष्य संख्या 5.3 के अनुपालन में  बाल विवाह, जल्दी और जबरन विवाह को 2030 तक खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. इसके साथ साथ पाकिस्तान ने 1990 में बाल अधिकारों पर कन्वेंशन की पुष्टि भी की है, जिसमें 18 साल,  विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है . पाकिस्तान महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW), 1996 का भी हस्ताक्षर कर्ता है,  जो राज्यों को विवाह के लिए स्वतंत्र और पूर्ण सहमति सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है. पाकिस्तान साउथ एशियन इनिशिएटिव टू एंड वायलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रेन (SAIEVAC) का सदस्य है, जिसने 2015-2018 से बाल विवाह को समाप्त करने के लिए एक क्षेत्रीय कार्य योजना को अपनाया है. दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के प्रतिनिधियों, जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है, ने 2014 में एशिया में बाल विवाह को समाप्त करने के लिए काठमांडू कॉल टू एक्शन पर पूर्ण सहमति व्यक्त की है. इसके प्रति अपनी  प्रतिबद्धता के तहत, पाकिस्तान की ओर से वचन दिया गया है कि वह बाल वधुओं के लिए कानूनी उपायों तक पहुंच को सुनिश्चित करेगा और और 18 साल विवाह  की एक समान न्यूनतम कानूनी उम्र तय करेगा.

पाकिस्तान में बाल वधुओं की विश्व की छठवीं सबसे बड़ी संख्या विद्यमान है. यह आंकड़ा  और तेजी से बढ़ रहा है. ऐसा नहीं हैकि पाकिस्तान में इस पर रोक लगाने के प्रयास नहीं किये गए परन्तु बड़ी संख्या में  राष्ट्रीय परिदृश्य में ऐसे तत्व विद्यमान रहे जो इसका लगातार विरोध करते रहे. लेकिन 2010 में पाकिस्तान में संविधान का 18 वां  संशोधन पारित हुआ जिसने समवर्ती सूची को हटा दिया, जिसके कारण अब  पाकिस्तान के प्रांतों को इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति मिल गई. और इस नई प्राप्त शक्ति के तारतम्य में सिंध वह पहला प्रांत बना जिसने 2013 में एक कानून पारित किया, जिसमें विवाह की न्यूनतम आयु को 18 साल तक बढ़ाया और  बाल विवाह सम्बन्धी अपराध को संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-यौगिक बना दिया गया. शीघ्र ही पंजाब ने 2015 में अपने पुलिस बल को इस तरह की चीजों को रोकने के लिए और अधिक शक्तियां दीं. इस समय बलूचिस्तान, खैबर-पख्तूनख्वा और इस्लामाबाद राजधानी क्षेत्र इन विषयों पर अपने कानून नहीं बना सके हैं और यहाँ  1929 का अधिनियम ही प्रचलन  में है.

बाल विवाह पाकिस्तान के लिए एक चौतरफा समस्या है. यह न केवल स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाओं पर बोझ बढाता है बल्कि समाज के एक बड़े वर्ग को उसकी इच्छा के विरुद्ध जीने के लिए मजबूर भी करता है. इस प्रस्तावित कानून के विरोधियों का मानना है की यह पश्चिम का अन्धानुकरण है. पर शेरी रहमान इसका पुरजोर विरोध करती हैं. रहमान का कहना है कि “हम पश्चिमी मूल्यों को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं, बल्कि  निर्दोष लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे देश में 21 फीसदी शादियां बाल विवाह हैं. एक पाकिस्तानी महिला की 20 साल की आयु में हर 20  मिनट में मृत्यु हो जाती है.“ जो कि एक गंभीर समस्या है. इसके साथ ही 2017 के एक अध्ययन का अनुमान है कि पाकिस्तान में बाल विवाह को समाप्त करने से आय  और उत्पादकता में 6.2 अरब अमेरिकी डॉलर  की वृद्धि हो सकती है. देश और सरकारें कोई भी हों, पर बच्चों को निर्बाध विकसित होने का अवसर दिया ही जाना चाहिए. वर्तमान अधिनियम का पाकिस्तानी संस्करण बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRC) का उल्लंघन करता है, जिसमें वह स्वयं एक हस्ताक्षरकर्ता है. कन्वेंशन 18 साल से कम आयु के किसी भी मनुष्य को बच्चा मानता है. पर यह बात नियमों और अनिवार्यताओं के परे है क्योंकि जो बात देश के बच्चों के भविष्य से जुडी होती है, वो केवल वहीँ तक सीमित नहीं रहती बल्कि देश के भविष्य को प्रभावित करती है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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