एक्सप्लोरर

सावरकर को भुलाने की कोशिशें हुईं नाकाम, राष्ट्रनायक बनकर उभरे, उनका विरोध औपनिवेशिक मानसिकता का प्रतीक

जिस दिन देश को नया संसद भवन मिला संयोग से उसी दिन विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है. सावरकर की जयंती के मौके पर नए संसद के उद्घाटन को लेकर कई विपक्षी दलों ने सत्ताधारी दल बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की. वहीं राष्ट्रपति को नहीं बुलाए जाने पर 19 विपक्षी दलों ने उदघाटन समारोह का बहिष्कार किया.

हमारी आदत हो गई है विवाद करने की

नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर कुछ सकारात्मक बातें भी होनी चाहिए. जो दल साथ नहीं है, उसके साथ ही यह भी तो बात हो कि इतने दल साथ हैं. हमारे यहां एक आदत पड़ गयी है. वह आदत है 'मैन्युफैक्चरिंग कंट्रोवर्सी' की. हरेक बात में मीनमेख निकालने की. 2020 के अक्टूबर में जिसका शिलान्यास हुआ, वह रिकॉर्ड समय में बना और आज 2023 के मई में लोकार्पण हो गयाहै. प्राचीन परंपरा से जोड़ते हुए आधुनिक संसद का निर्माण हुआ है. नवीन भारत की नवीन आवश्यकताओं के अनुरूप तो यह उत्सव का विषय है, समय है. इसमें जबरन मीनमेख नहीं निकालनी चाहिए.

जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सवाल है तो लंबे समय से एक द्वेषपूर्ण व्यवहार उनके साथ होता रहा है, दूसरे जब भी प्राचीन परंपराओं से जोड़ा जाता है कुछ भी, तो वह भी इनको गवारा नहीं होता. अब जैसे ये परंपरा की दुहाई दे रहे हैं, तो इन्होंने कभी ये तो नहीं कहा कि सी. राजगोपालाचारी जो गवर्नर जनरल बनने जा रहे थे, ने या राजेंद्र प्रसाद जो संविधान सभा के सब कुछ थे, उन्होंने सत्ता का हस्तांतरण क्यों नहीं स्वीकार किया? संसदीय परंपरा में जो 'हेड ऑफ गवनर्नमेंट' है, संसद की जहां तक बात है, तो प्रधानमंत्री ही हैं. हां, संवैधानिक प्रमुख के तौर पर राष्ट्रपति हैं तो जब संसद का संयुक्त सत्र होगा तो उसका उद्घाटन निश्चित रूप से राष्ट्रपति करेंगी.

इसका एक दूसरा पक्ष भी है. सेंगोल जो आनंद भवन से निकला है, जिसे नेहरू की छड़ी के तौर पर प्रचारित किया गया, जो कि महान चोल साम्राज्य का प्रतीक था, वह राजदंड या धर्मदंड पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मौजूद है. जैसे, केरल में उसे चैंगोय कहते हैं, कहीं राजदंड या धर्मदंड, लेकिन सत्ता में कोई भी बैठा हो, लेकिन उस पर भी कोई शासन करने वाला है. यह संकेत, यह प्रतीक जो है, उसका भी दर्द विरोधियों को है. प्रधानमंत्री उद्घाटन कर रहे हैं, इसका भी दुख है. हालांकि, यह लोकतंत्र के लिए अच्छी परंपरा नहीं है कि ऐसे मौकों का बहिष्कार हो.

सावरकर पर निशाना औपनिवेशक मानसिकता

स्वतंत्रता आंदोलन हो या राष्ट्र पुनर्निर्माण की बात हो, सावरकर को जो निशाना बनाने की बात है, तो औपनिवेशिक मानसिकता को सबसे पहले सावरकर ने ही चुनौती दी थी, एक्सपोज किया था. इसीलिए, 2003 के बाद जब सेलुलर जेल में वीर सावरकर के सम्मान में जो पट्टिका लगा था, उसे मणिशंकर अय्यर ने उखड़वा दिया था. यही मानसिकता कहती है कि देश की आजादी हमने दिलाई, स्वाधीनता के बाद जो देश बना, वह हमने बनाया, वह मानसिकता ही दिक्कत वाली है.

दूसरी तरफ जो विचार है, वह चोल साम्राज्य से आज तक के भारत को जोड़ता है. एक भारत, श्रेष्ठ भारत के तौर पर काम करता है, तो ये लोग उस मानसिकता के खिलाफ भी हैं. सावरकर उसी के प्रतीक हैं. आखिर, राष्ट्र की एक अवधारणा वही है जो ब्रिटिशर्स ने दी कि भारत का निर्माण उन्होंने किया, शायद नेहरूजी ने भी उन्हें मान लिया, इसीलिए भारत को बनाना है, उस पर काम करने लगे.

दूसरा विचार कम्युनिस्टों का है जो भारत को 16 राष्ट्रों या 25 राष्ट्रों का समुच्चय मानते हैं, वे टुकड़-टुकड़े गैंग के रूप में आज सामने हैं. इसके अलावा सावरकर जो परिभाषा देते हैं, वह कल्चरल आइडेंटिटी के साथ हिंदुत्व की जो व्याख्या करते हैं, इसे केवल भौगोलिक प्रारूप नहीं मानते, तो उसका विरोध इसी वजह से है. शायद इसकी वजह है कि उनके दल, उनके परिवार से जुड़ा काम जब तक न हो, तब तक वह अच्छा नहीं हो सकता. अगर ये कहते हैं कि सबका सम्मान करना चाहिए, तो सावरकर का क्यों नहीं? 20 मई को निर्माण कार्य पूरा हुआ, आज 28 मई को सावरकर की जन्मतिथि के दिन अगर मुहूर्त निकला तो दिक्कत क्या है? 

सावरकर को भुला देने की कोशिशें हुईं

सावरकर विवादित नहीं हैं, लोगों को उनसे दूर रखा गया. महात्मा गांधी हत्या में वह आरोपित हुए, बाद में दो-दो कमीशन बने, दोनों ने उन्हें पूरी तरह इस मामले में तनिक भी लिप्त नहीं पाया. सावरकर 1923 में हिंदुत्व को पारिभाषित करनेवाले थे. उनको भुलाने की और विवादित बनाने की हर चंद कोशिश हुई, पर वह बार-बार उठ खड़े होते हैं. सावरकर की जीवनी है, हिंदी-अंग्रेजी दोनों में-माई लाइफ इन प्रिजन, ये पढ़नी चाहिए. दो-दो आजीवन कारावास किसी स्वतंत्रता सेनानी को हुआ, यह तो नहीं दिखता है. अंडमान में जो कोठरी थी उनकी, उसे भी 1999 से खोला गया, लोगों को ले जाया गया, स्मारक बनाया गया, वह भी देखना चाहिए, ताकि सावरकर को समझ सकें. मदनलाल धींगरा से लेकर भगत सिंह तक के विचार उनके बारे में देख लीजिए. महात्मा गांधी के विचार देखिए, सावरकर के बारे में. उनके बारे में इतनी गलतबयानी, इतना झूठ परोसा गया, फिर भी जन-स्मृति में वह आते रहे.

जहां तक उनके कथित 'माफीनामे' की बात है, तो थोड़ा पढ़ना चाहिए. वह क्लेमेंसी का पत्र है और ब्रिटिश काल में भारत की जेलों में रहे कैदियों को यह मांगने का अधिकार था. वही क्लेमेंसी नाभा जेल में नेहरू ने मांगी है, महात्मा गांधी ने मांगी है और वह जेल में जाने के बाद एक फॉर्मेट होता था और उसका पालन सबको करना होता था. सावरकर ने तब क्या किया, उसका खुद उत्तर भी दिया था.

तब तो कई बड़े पत्रकारों ने उन पर टीका मांगी थी और सावरकर ने कहा था कि वह छत्रपति शिवाजी की परंपरा के हैं और अगर औरंगजेब या अफजल खान को चिट्ठी लिखकर (यहां आशय ब्रिटिश साम्राज्य से है) उनसे लड़ने के लिए, मानसिकता से खेलने का मौका मिल सकता है, तो वह मांगेंगे. सावरकर ने जेल से बाहर आने के लिए क्या किया, यह अहम नहीं है. बाहर आकर क्या किया, वह देखना चाहिए.

स्वदेशी के आंदोलन से फर्ग्युसन कॉलेज में विदेशी वस्त्रों के दहन (चापेकर बंधुओं के साथ) से इंडिया हाउस तक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को ले जाने का बहुत बड़ा काम सावरकर ने किया है. विचारधारा के आधार पर उनकी आलोचना कीजिए, हिंदुत्व की उनकी जो व्याख्या है, उस पर चर्चा कीजिए, लेकिन जो एक्सक्लूजन है, इस तरह के प्रहार हैं, वो तो इनटॉलरेंस है. आपका ही स्वतंत्रता संग्राम सही था, यह गलत है. 1885 से पहले जो लोग आजादी के लिए लड़ रहे थे, उनका क्या? आपने तात्या टोपे को छुपाकर रखा, यदुनाथ जी को छुपाया और उसी तरह सावरकर को छिपाकर रखा. अगर आप उनको भुलाना चाहते हैं, तो यह आपका दुर्भाग्य है. 

विपक्ष मतभेदों को रखे, लेकिन राष्ट्र के साथ रहे

आज विपक्ष ने जिस तरह बायकॉट किया है, वह सोचने की बात तो है ही. विपक्ष मतभेदों को रखने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में बाधा नहीं आनी चाहिए. 27 मई को नीति आयोग की बैठक में 8 मुख्यमंत्री नहीं गए, तो वह गड़बड़ है. क्या उन्हें निमंत्रण नहीं गया था, क्या विपक्ष के साथ बाकी बैठकों में सम्मानपूर्वक बात नहीं होती? होती है न.

वैसे भी, 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले ही जिस तरह से नरेंद्र मोदी को चायवाला कहा गया, उसके बाद भी जो प्रहार हुए, वह अब भी जारी है. वह लुटियंस जोन के नहीं थे. वह किसी बड़े घराने के नहीं थे, कोई बड़े वकील नहीं थे, न उद्योगपति से जुड़े थे. उन पर 20 साल से हमले हो रहे हैं, लेकिन उनका कद बढ़ ही रहा है और इसी का रिएक्शन है यह. हालांकि, इसका प्रभाव उल्टा पड़ता है. इससे मोदी का कद और बढ़ जाता है.

मूल मुद्दा ये नहीं कि राजनीतिक तौर पर क्या हो रहा है, मसला है ये कि राष्ट्रनीति क्या है, मुद्दा ये है कि हम नेहरूवादी विचारधारा को ही आगे बढा़एंगे जो कहती है कि देश में कई सभ्यताएं हैं या हमारी एक अनूठी और अनोखी संस्कृति है, जो विविधताओं का सम्मान करती है, इस विचारधारा के आधार पर आगे बढ़ेंगे. मूल प्रश्न यह है कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान और पुनर्जागरण का जो आंदोलन राम जन्मभूमि से शुरू हुआ था, वह आगे बढ़ेगा या फिर विभाजनकारी शक्तियां हावी हो जाएंगी?

(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है) 

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

US Indian Embassy: अमेरिका में भारतीय दूतावास को क्यों जारी करनी पड़ी एडवाइजरी, इंडियंस को कौन बना रहा निशाना
अमेरिका में भारतीय दूतावास को क्यों जारी करनी पड़ी एडवाइजरी, इंडियंस को कौन बना रहा निशाना
जोधपुर में गजेंद्र सिंह शेखावत की सुरक्षा में चूक, काफिले की गाड़ी पर हुआ हमला
जोधपुर में गजेंद्र सिंह शेखावत की सुरक्षा में चूक, काफिले की गाड़ी पर हुआ हमला
इस मुस्लिम एक्ट्रेस का साउथ के शादीशुदा सुपरस्टार पर आ गया था दिल, 15 साल चला अफेयर फिर भी  53 की उम्र में तन्हा गुजार रही जिंदगी
इस मुस्लिम एक्ट्रेस का साउथ के शादीशुदा सुपरस्टार पर आ गया था दिल, लेकिन 53 की उम्र में भी है तन्हा
आज WPL 2025 का फाइनल, MI और दिल्ली में खिताबी भिड़ंत; जानें प्लेइंग इलेवन, पिच रिपोर्ट और मैच प्रिडिक्शन
आज WPL 2025 का फाइनल, MI और दिल्ली में खिताबी भिड़ंत; जानें प्लेइंग इलेवन, पिच रिपोर्ट और मैच प्रिडिक्शन
ABP Premium

वीडियोज

Amir Khan Birthday Special: 'मुझे परफेक्शन में नहीं जादू में इंटरेस्ट है' - आमिर खान | ABP NewsHoli 2025: होली का हुड़दंग..सपना चौधरी के संग ! | ABP NewsSandeep Chaudhary : संभल, UP Election का अगला एपिसेंटर ? । Sambhal Juma Vs Holi । Anuj ChaudharyHoli Celebration: शांति व्यवस्था कायम...कौन हैं संभल के 'नायक'? | Juma

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
US Indian Embassy: अमेरिका में भारतीय दूतावास को क्यों जारी करनी पड़ी एडवाइजरी, इंडियंस को कौन बना रहा निशाना
अमेरिका में भारतीय दूतावास को क्यों जारी करनी पड़ी एडवाइजरी, इंडियंस को कौन बना रहा निशाना
जोधपुर में गजेंद्र सिंह शेखावत की सुरक्षा में चूक, काफिले की गाड़ी पर हुआ हमला
जोधपुर में गजेंद्र सिंह शेखावत की सुरक्षा में चूक, काफिले की गाड़ी पर हुआ हमला
इस मुस्लिम एक्ट्रेस का साउथ के शादीशुदा सुपरस्टार पर आ गया था दिल, 15 साल चला अफेयर फिर भी  53 की उम्र में तन्हा गुजार रही जिंदगी
इस मुस्लिम एक्ट्रेस का साउथ के शादीशुदा सुपरस्टार पर आ गया था दिल, लेकिन 53 की उम्र में भी है तन्हा
आज WPL 2025 का फाइनल, MI और दिल्ली में खिताबी भिड़ंत; जानें प्लेइंग इलेवन, पिच रिपोर्ट और मैच प्रिडिक्शन
आज WPL 2025 का फाइनल, MI और दिल्ली में खिताबी भिड़ंत; जानें प्लेइंग इलेवन, पिच रिपोर्ट और मैच प्रिडिक्शन
डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है लहसुन, ये है लेने का सही तरीका
डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है लहसुन, ये है लेने का सही तरीका
रोजाना खाएं ये खट्टा फल, डिप्रेशन और स्ट्रेस तो छूकर भी नहीं निकलेगा
रोजाना खाएं ये खट्टा फल, डिप्रेशन और स्ट्रेस तो छूकर भी नहीं निकलेगा
जेल में ही रहेंगी रान्या राव, कोर्ट ने खारिज की सोना तस्करी मामले में जमानत याचिका
जेल में ही रहेंगी रान्या राव, कोर्ट ने खारिज की सोना तस्करी मामले में जमानत याचिका
iPhone 17 Pro में भी नहीं मिलेंगे iPhone 17 Ultra में आने वाले ये फीचर्स, Apple ने कर ली बड़ी तैयारी
iPhone 17 Pro में भी नहीं मिलेंगे iPhone 17 Ultra में आने वाले ये फीचर्स, Apple ने कर ली बड़ी तैयारी
Embed widget