शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शांगफू (Li Shangfu) भारत दौरे पर हैं. ये दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है. लेकिन भारत इस वक्त SCO की अध्यक्षता कर रहा है, उसके तहत एक पहल की गई है और उसी के लिए चीन के रक्षा मंत्री भारत दौरे पर हैं.


इसके जरिए कही पर चीन की तरफ से ये संकेत दिए जा रहे हैं कि वो भारत के साथ संबंधों को आगे ले जाने के लिए थोड़ा बहुत उत्सुक है. लेकिन भारत इस बात को स्पष्ट कर चुका है कि जब तक सीमा विवाद से जुड़े मसले पर चीन अपना रवैया नहीं बदलता है, तब तक संबंध में किसी भी प्रकार का बदलाव आना संभव नहीं है. भारत ने बार-बार ये बात कहा है. चाहे भारत के रक्षा मंत्री हों या फिर विदेश मंत्री.


विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि दोनों देशों के संबंध बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहे हैं. विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा है कि भारत और चीन का संबंध फिलहाल नॉर्मल अवस्था में नहीं है. चूंकि वो नॉर्मल नहीं है, उसमें समस्या है तो उसके तहत उन समस्याओं को दूर कैसे करें, भारत का पहल इस पर रहा है.



भारत का कहना है कि चीन को बॉर्डर पर 2020 के पहले जैसी स्थिति पर वापस जाना चाहिए. वहां पर चीन जाने को तैयार नहीं है. चीन की हरकतों में भी कोई बहुत ज्यादा बदलाव नहीं दिख रहा है. कुछ समय पहले ही उसने अरुणाचल के कुछ जगहों का नाम बदला है.


एससीओ के पैरामीटर के तहत जो यात्रा हो रही है, उससे एक तरह से थोड़ी सी आशा बढ़ती है कि कहीं पर चीन भारत के साथ कोई समाधान चाहता है और कोई पहल कर रहा है. इस मीटिंग से क्या निकल कर आता है, ये देखने वाली बात होगी क्योंकि भारत ने एक तरह से सारा दारोमदार चीन के ऊपर ही डाल दिया है. जब तक चीन अपना रवैया नहीं बदलेगा, तब तक सीमा विवाद का समाधान नहीं निकलेगा.


मेरा मानना है कि इस यात्रा से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए, लेकिन एक पहल जरूर है. तनाव इसलिए खत्म नहीं हो रहा है क्योंकि चीन, भारत को लेकर अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं है. चीन चाहता है कि सीमा विवाद को लेकर वो जो भारत पर दबाव बनाता रहा है, वो बना रहे.


हालांकि भारत और भारत की सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया है और ये बता दिया है कि भविष्य में भी चीन के हर आक्रामक रवैये का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा. चीन समझ गया है कि वो भारत के साथ इस तरह की गतिविधि नहीं कर सकता और इसलिए ये चीन के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है. इसलिए चीन ने बहुत ज्यादा मोबलाइज किया है कि सीमा के आस पास बुनियादी ढांचा विकसित कर रहा है और भारत भी वही कर रहा है.


भारत का चीन को लेकर जो भरोसा कम हो गया है वो सुधर नहीं रहा है. भारत ने अपना रवैया बिल्कुल स्पष्ट होता है कि इस मसले पर कुछ भी होता, चाहे लड़ाई ही क्यों न हो, वो एकदम तैयार है.


इसमें जो भी पहली होगी वो चीन करेगा क्योंकि उसने ही एकतरफा तरीके से सीमा पर यथास्थिति को बदला था. कूटनीतिक तरीके से जब तक चीन उससे पीछे नहीं हटता है, तब तक भारत इस दिशा में आगे नहीं बढ़ेगा.


एससीओ के जरिए भारत ये भी बताना चाह रहा है कि ऐसे तो वो हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार है, लेकिन वो खुद कोई लड़ाई नहीं चाहता है और वो इस मसले पर डिप्लोमेटिक तरीके से समाधान चाहता है, अगर चीन इसके लिए कोई पहल करता है तो.  चीन के रक्षा मंत्री जब भारत आते हैं, तो उसको इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए.


भारत एक तरह से इशारा दे रहा है कि अगर चीन नेगोशिएशन के लिए कोई पहल करता है तो वो तैयार है. साथ ही भारत ये भी संदेश दे रहा है कि अगर चीन कोई मिलिट्री टैक्टिस अपनाता है, तो उसके लिए भी भारत मुंहतोड़ जवाब देने को तैयार है.


मुझे ऐसा दिख रहा है कि भारत ने जो रवैया अपनाया है वो सही है. 2020 से पहले जो फ्रेमवर्क था वो ये था कि हमारा बॉर्डर नेगोशिएशन चलता रहे और हम दूसरी तरफ चीन के साथ आर्थिक संबंध और सांस्कृतिक संबंध बढ़ाते रहें.


अब भारत कह रहा है कि चीन ने एकतरफा तरीके से उन सारे फ्रेमवर्क को तोड़ दिया है जो 1980 के दशक के आखिरी वक्त से  भारत ने चीन के साथ बना रखे थे. राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी वहां गए. इन यात्राओं से एक फ्रेमवर्क बना था, जिसे चीन ने एकतरफा तरीके से तोड़ दिया. उन फ्रेमवर्क को नजरअंदाज कर चीन की सेना भारत की सीमा में अंदर आती है.


भारत अब चीन को बेनिफिट ऑफ डाउट नहीं देना चाहता है. भारत कह रहा है कि जब तक चीन अपनी नीति को लेकर क्रेडिबल मूवमेंट नहीं करेगा, बॉर्डर नेगोशिएशन को केंद्र में मानकर नहीं चलेगा, तब तक और मसलों पर बात नहीं हो सकती. जबकि चीन ये कह रहा है हम और मसलों पर बात करते हैं, जैसा वो पहले भी कहता था. भारत की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया है कि अब ऐसा नहीं होगा. इसलिए भी पहल नहीं हो पा रही है कि चीन को ये पता है कि भारत की सेना तो चीन के सामने खड़ी है, इसलिए वो नहीं कर पाएगा जो चीन करना चाह रहा था. भारत की तरफ से उसको जवाब मिल गया है.


चूंकि भारत के तरफ से उसको जवाब मिल गया है, इसलिए चीन के सामने कोई फेस सेविंग उपाय होना चाहिए. चीन के सामने इस वक्त ये एक बहुत बड़ा परेशानी का मुद्दा है कि वो किस तरह से भारत के साथ अपनी बात को आगे ले जाता है. भारत अड़ा हुआ और चीन उनको पूरा नहीं कर पा रहा है, इसका नतीजा द्विपक्षीय संबंधों को भुगतना पड़ रहा है.


चीन के रक्षा मंत्री के दौरे से आपसी संबंधों में प्रगति होगी, ये कहना मुश्किल है. कुछ दिन पहले भी चीन के विदेश मंत्री भारत आए थे, उस वक्त भी ऐसे कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन कुछ हुआ नहीं था. दोनों ही तरफ से अपनी-अपनी बातें बहुत ही स्पष्ट तरीके से रखी जा चुकी हैं.


चीन ऐसा कुछ नहीं कर रहा है, जिससे भारत में उसको लेकर भरोसा बढ़े कि वो भारत के साथ संबंध सामान्य बनाना चाह रहा है. चीन सिर्फ़ बातें कर रहा है. उसके एक्शन काफी निगेटिव हैं. भारत ये चाहेगा कि चीन अपने एक्शन में ये दिखाए कि वो भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने को लेकर गंभीर है.


चीन को कुछ मौलिक तौर से अलग करना पड़ेगा, उसे अपनी नीति में बदलाव दिखाना पड़ेगा. वो ऐसा नहीं कर पा रहा है, इस वजह से तनाव कम नहीं हो पा रहा है., इसके बावजूद कि दोनों तरफ से डिप्लोमेटिक इंगेजमेंट जारी है. मिलिट्री टू मिलिट्री इंगेजमेंट भी चल रही है, कोर कमांडर की मीटिंग लगातार हो रही है. शुरू कुछ जगहों पर हमको सफलता भी मिली थी, जब कुछ जगहों पर चीन की सेना पीछे हट गई थी. लेकिन जो LAC को जो बड़ा मसला है, वो अभी भी विस्फोटक हालात में है. चीन अपनी हरकतें बार-बार दोहरा रहा है. चीन ये कही भी ये संदेश नहीं दे रहा है कि वो भारत को लेकर बहुत गंभीर है, इस वजह से संबंध सुधर नहीं रहे हैं.


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)