'प्रिंस से लेकर सृष्टि तक कुछ नहीं बदला..न रेस्क्यू का तरीका न हमारी सावधानी'
अपना पांचवा जन्मदिन मना रहे कुरुक्षेत्र ( हरियाणा) के हलदेहड़ी गांव का प्रिंस 21 जुलाई 2006 को घर के पास ही 50 फुट गहरे बोरवेल में गिर गया. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए सेना द्वारा चलाए जा रहे रेस्क्यू ऑपरेशन को लगातार लाइव देख रहे देश विदेश के लोगों ने दुआएं कीं. सीसीटीवी के जरिए प्रिंस के धैर्य हिम्मत चेहरे के हाव-भाव की प्रतिक्रिया दिखती रही. वहीं उसे रस्सी के ज़रिए चॉकलेट और पानी तक दिया गया. 50 घंटे चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद सेना ने प्रिंस को सकुशल बाहर निकाल लिया था.
उसके बाद देश मे जैसे सिलसिला-सा शुरू हो गया. पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलावा बोरवेल में बच्चों के गिरने की सबसे ज्यादा खबरें मध्य प्रदेश से आई. रतलाम, विदिशा, छतरपुर, बैतूल भोपाल और कई जिलों से इस तरह की घटनाएं सामने आईं. कुछ जगह जिला और स्थानीय प्रशासन तो कहीं-कहीं सेना भी बुलाई गई लेकिन बोरवेल में गिरने वाले अधिकतर बच्चे प्रिंस जैसे खुशनसीब नही निकले.
साल भर पहले 10 जून को छत्तीसगढ के जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा क्षेत्र के पिहारिद गांव में 10 साल का राहुल साहू बोरवेल में गिर गया. 80 फुट गहराई वाले बोरवेल के 65 फुट में राहुल फंसा हुआ था जिसे रस्सी के सहारे केला, पानी तक दिया गया. कैमरे के ज़रिए उससे बातें कर हौसला बनाए रखा गया. आखिरकार देश के इतिहास में अब तक सबसे लंबे समय तक चले इस तरह के रेस्क्यू ऑपरेशन मे 104 घंटे बाद राहुल को सकुशल निकाला गया था.
तकनीक वही, बोरवेल से थोड़ी दूर गड्ढा खोदना, फंसे होने की संभावित गहराई तक पोकलेन मशीन से खुदाई और फिर टनल बनाकर बच्चे तक पहुंचने की कोशिश. यही तरीका आज भी जारी है. जिसमे सरकारों ने कभी कोई कमी नही की. नया तरीका क्या हो सकता है, सोचा भी गया. छत्तीसगढ में रोबोट लाने की बात भी चली पर खैर, अंत भला तो सब भला..!
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में मंगलवार को 300 फुट बॉरवेल में गिरी सृष्टि का 35 वें फुट की गहराई में फंसे होने का अनुमान है. रेस्क्यू फिर, ठीक उसी तरह. लेकिन इस बार पास में कच्चा कुंआ होने का फायदा शायद भूगर्भ में मिट्टी और पत्थर के परतों को समझने में मदद करे.
20 फीट मिट्टी, 5 फीट पत्थर मिक्स बजरी, कच्ची या कुटकी पत्थर. 60 फुट गहरे इस कुएं में फिर उससे आगे कठोर काला पत्थर है. इसी कठोर पत्थर की पोकलेन के असफल प्रयास के बाद इलेक्ट्रिक (जनरेटर) ऑपरेटेड कंप्रेशर ड्रिल मशीन से रात दस बजे खुदाई शुरू हुईं. इसकी विशेषता यह है कि इससे पोकलेन की तुलना मे बोरवेल के आस-पास कंपन कम होगा और सकरा टनल बनाने में सफलता मिलेगी. लेकिन भूगर्भ तो रहस्यों से भरा है कब कौन सी बाधा आ जाए.
पहली रात बीत गई. 'सृष्टि' का सूरज आज फिर निकल कर आसमान पर फिर चढ़ आया पर सृष्टि नहीं निकली. सुबह के साढ़े आठ बजे को रेस्क्यू के साढ़े 18 घंटे बीत गए थे और हर बार की तरह उम्मीद यहां भी बरकरार रही. सावधानी के बावजूद भी आज बच्ची बोरवेल में कुछ और नीचे चली गईं. कड़ी चट्टानों में मशीनी ठोकरों से वाइब्रेशन यानि कंपन होता है इसलिए रेस्क्यू के भी अपनी सीमाएं हैं. उससे बचने के लिए रात इलेक्ट्रिक ड्रिल मशीन का भी उपयोग किया गया.
मध्य प्रदेश का सीहोर, जी हां वही चमत्कारी कुबेरेश्वरधाम वाले सीहोर से 12 किमी दूर गांव बड़ी मुगावली में बस्ती के बाहर खेत पर बने घर के पिछवाड़े, पड़ोस वाले रिश्तेदार के खेत मे एक साथ हुए दो बोरवेल में से बिना ढके दूसरे होल में ढाई साल की सृष्टि मंगलवार दोपहर से गिरी है. राहुल और रानी कुशवाहा की लाडली के गिरते ही पहले परिजनों ने प्रयास किया. फिर प्रशासन तक बात पहुंची और तत्परता से एक बार फिर रेस्क्यू शुरू हुआ.
वहां खड़े लोगों को लगता है कि अब निकला तब निकला लेकिन भूगर्भ में आपका बस नहीं चलता. रेस्क्यू के तरीके में अभी तक कोई और प्रयोग नही हुआ है. छत्तीसगढ में पिछले साल गुजरात से रोबोट लाने की पहल हुई थी. हमारे देश में जो उपलब्ध तरीका रेस्क्यू का है, उसमें समय और सफलता सुनिश्चित नही. ऐसे में सबसे बड़ा बचाव का साधन है ऐसी दुर्घटनाओं से ही बचना और सम्भावित कारकों से सख्ती से निपटना है.
मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ गंभीर कोशिशें भी की थी पर एक घटना और घट ही गई. यहां सीहोर में राहत में लगे लोग हाथ पर हाथ धरे नही बैठे हैं. नींद और भूख-प्यास की परवाह किए बिना, एक नन्हीं जान को बचा लेने को प्रयास जारी है. लेकिन सृष्टि के भूगर्भ में केवल बेहतर की आशा की जा सकती है. समय तो यहां भी लगेगा जैसा कि अधिकतर जगह लगता है. अक्सर इन घटनाओं और प्रारम्भिक रेस्क्यू से मीडिया और प्रशासन को अंदाजा हो जाता है कि परिणाम क्या हो सकता है? पर सबके आगे उम्मीद होती है जिसे छोड़ना जंग से पहले हार जाना कहलाता है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]