(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
ममता, मोदी और पटनायक: कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
‘थैंक्यू पीएम, थैंक्यू सीएम, आपका काम बहुत अच्छा है. आपने हमेशा हमारी मदद की है.’ ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल से ही एक दूसरे की तारीफ़ करते नहीं थक रहे हैं. मोदी ने आज सवेरे ट्वीट करते हुए कहा कि भुवनेश्वर की मीटिंग बहुत सार्थक रही. हम लगातार साथ मिलकर कुदरत की तबाही से निपटने के लिए काम करते रहेंगे. मोदी ने कहा कि नवीन पटनायक के ओडिशा मॉडल से सबको सीखना चाहिए.
ओडिशा और वहां के सीएम नवीन पटनायक को थैंक्यू कहना और देश को समझाना. इसके भी बड़े मायने हैं. वो कहते हैं न बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी. थैंक्यू कहा गया नवीन पटनायक को और बात पहुंच गई ममता बनर्जी तक. वहीं ममता बनर्जी जो मोदी को आधे घंटे तक इंतज़ार कराती रहीं. फिर चंद मिनटों के लिए मिलीं भी तो बस रस्म निभाने जैसा.
ममता को चिढ़ शुभेंदु अधिकारी से है. बीजेपी नेता शुभेंदु ने ही ममता को नंदीग्राम चुनाव में हराया था. प्रधानमंत्री की बैठक में ममता की कुर्सी ख़ाली ही रही. बीती रात बंगाल के चीफ़ सेक्रेटरी अलपन बंदोपाध्याय को दिल्ली बुला लिया गया.
नवीन पटनायक और उनके सरकार के कामकाज का गुणगान कर पीएम मोदी ने बहुत कुछ कह दिया है, जिसे समझने वाले खूब समझ रहे हैं. ममता बनर्जी का मोदी को इंतज़ार करवाना अब बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है. गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तक ममता के इस व्यवहार की निंदा कर रहे हैं. इसे देश के क़ानून और संघीय ढांचे का अपमान बताया जा रहा है.
नवीन पटनायक की छवि के सामने ममता बनर्जी की इमेज खड़ी कर दी गई है. मतलब आप खुद ही समझ लीजिए और तय कर लीजिए कौन कैसा है. एक तरफ़ नवीन पटनायक जैसे सीएम हैं. दूसरी तरफ़ ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री. पटनायक ने प्रोटोकॉल के हिसाब से भुवनेश्वर में पीएम मोदी की अगवानी की. उनके साथ समीक्षा बैठक में शामिल हुए. केंद्र सरकार से उन्होंने किसी तरह के पैकेज की मांग नहीं की. लेकिन ओड़िशा सरकार को 500 करोड़ रूपए की आर्थिक मदद मिल गई. मोदी और पटनायक ने एक दूसरे से आगे भी ऐसे ही साथ मिल कर जनता की भलाई के लिए काम करने का वादा किया है.
ओडिशा से बंगाल जाते ही पूरी तस्वीर 360 डिग्री घूम जाती है. ममता बनर्जी ने पीएम नरेन्द्र मोदी की अगवानी नहीं की. उलटे उन्हें इंतज़ार करवाया. तूफ़ान से हुए नुक़सान की समीक्षा बैठक में भी नहीं गईं. ये बताकर चलती बनीं कि उनका पहले से कोई कार्यक्रम तय है. केंद्र से बंगाल को झारखंड के साथ 500 करोड़ की आर्थिक सहायता मिली. वो भी कई शर्तों के साथ.
बीजेपी का आरोप है कि व्यक्तिगत राजनीतिक स्वार्थ के लिए ममता ने ये सब किया. इससे नुक़सान बंगाल का ही हुआ. बात कुछ हद तक सही है. पिछले साल उमफुन तूफ़ान की तबाही का हवाई सर्वे करते समय मोदी और ममता साथ थे. क्योंकि कुछ ही महीनों बाद बंगाल में चुनाव था. अब ऐसे में बंगाल के दर्द का हमदर्द बनने का मौक़ा किसी ने नहीं छोड़ा.
बंगाल में चुनाव हो गया. दो सौ पार के वादे और इरादे वाली बीजेपी हार पचा नहीं पा रही है. विजय के बाद से ममता बनर्जी भी विरोधी को निपटाने वाले मूड में हैं, जो लोग ये मान बैठे थे कि चुनाव ख़त्म होते ही बंगाल कथा का पटाक्षेप हो जाएगा. देखते रहिए बंगाल की राजनीतिक यात्रा अभी जारी है.
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