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Blog: यात्रा करने मात्र से नर्मदा सदानीरा नहीं होनेवाली!
जब किसी भारतवासी को पाप धोने होते हैं तो वह पवित्र नदियों की तरफ भागता है. इसी तर्ज़ पर एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने ‘व्यापमं’ और ‘डंपर’ जैसे कई लघु-विशाल घोटालों के आरोपों से घबराकर 11 दिसंबर 2016 को नर्मदा मैय्या के उद्गम-स्थल अमरकंटक की तरफ दौड़ लगाई थी, जो 148 दिन बाद 15 मई 2017 को पीएम नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में वहीं समाप्त हुई. मोदी जी ने यात्रा का समापन करते हुए कहा कि माँ नर्मदा से जितना लूट सकते थे हम लूटते रहे, यदि कर्तव्य भाव से विमुख नहीं होते तो यह स्थिति ही नहीं उत्पन्न होती. अब इसे शिवराज की तारीफ समझा जाए या कुछ और...क्योंकि पिछले 15 सालों से एमपी में उन्हीं की सरकार है और इस अवधि में वैध-अवैध रेत उत्खनन, गंदे नालों के मिलन, जंगलों की कटाई तथा साधु-संतों द्वारा किए गए अबाध निर्माण के चलते नर्मदा मैय्या आईसीयू में चली गई है.
‘नमामि देवि नर्मदे’ गाते हुए नर्मदा सेवा यात्रा निकालने से शिवराज के कितने पाप धुले यह तो 2018 के विधानसभा चुनाव नतीजों से पता चलेगा लेकिन फिलहाल वह एक तीर से दो शिकार करने में कामयाब हो गए हैं. एक तो वह अमरकंटक में लाखों की भीड़ जुटाकर मोदी जी की नज़र में आज भी एमपी के एकमात्र सूरमा की छवि बनाने में कामयाब हुए हैं, दूसरे अपने तीसरे टर्म के आख़िरी वर्ष में एक बड़े और ज़रूरी सामाजिक दायित्व को धार्मिक कार्रवाई में तब्दील करके राज्य में अपनी लोकप्रियता चमकाने में भी उन्हें कामयाबी मिली है.
इस यात्रा को करोड़ों के सरकारी ख़र्चे पर नर्मदा और पर्यावरण बचाने का अभियान प्रचारित किया गया. ख़ुद शिवराज सिंह का दावा है कि नर्मदा सेवा यात्रा विश्व का सबसे बड़ा नदी संरक्षण अभियान है. लेकिन टीवी, अख़बारों, रेडियो, पोस्टरों और विशालकाय होर्डिंगों के सहारे जिस अदा से जनता का पैसा पानी की तरह बहाया गया है, उसकी मिसाल कम ही मिलेगी. 15 मई को हुए समापन समारोह में ही हजारों बसें जुटाने, भीड़ के भोजन, संगीत के तामझाम और पूजा-अर्चना में करोड़ों रुपए बह गए और सैकड़ों शौचालयों तथा भक्तों की फूल-मालाओं के निर्माल्य से अमरकंटक पट गया! जबकि भोपाल में राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पहले ही आदेश दे रखा था कि 150000 से ज़्यादा लोग जमा नहीं होने चाहिए इसके बावजूद पार्टी को अमरकंटक में 5 लाख लोग जुटाने का लक्ष्य दे दिया गया!
नर्मदा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएँ हैं लेकिन उसका पानी उलीच कर कभी क्षिप्रा तो कभी साबरमती में डालने वाली सरकारें यह भूल जाती हैं कि उसका उद्गम किसी ग्लेशियर से नहीं बल्कि बाक्साइट के विपुल टुकड़ों और साल वृक्षों की जड़ों के बूते हुआ है. सतपुड़ा-मैकल की पर्वतश्रेणियों में लाखों वर्ष पहले ज्वालामुखियों से जो लावा ऊपर आया, आज वह बाक्साइट, मुरुम, लाल और पीली मिट्टी में तब्दील हो गया है. यह पानी को सोख्ते की तरह सोखता है और धीरे-धीरे छोड़ता रहता है. लेकिन इस क्षेत्र में सरकारी कंपनियों हिंडाल्को और बाल्को ने बड़े पैमाने पर बाक्साइट तथा खनन माफिया ने मुरम और मिट्टी खोद कर नर्मदा का अमृत-स्रोत झीना कर दिया है. नर्मदा का निर्माण साल के उन लाखों पेड़ों द्वारा भी होता है जो अपनी जड़ों में बारिश का पानी संचित रखते हैं और वर्ष भर भूमिगत रूप में रिलीज करते रहते हैं. नर्मदा कुंड इसी जल से पूरे साल भरा रहता है. इसी वन का एक बड़ा हिस्सा कुछ वर्ष पहले सालबोरेर महामारी से नष्ट हो गया था लेकिन वन विभाग द्वारा इसे दोबारा आबाद करने की कोई कोशिश नहीं हुई.
एमपी में अवैध रेत खनन का तो आलम यह है कि अमरकंटक से शुरू करके 16 जिलों से होती हुई अलीराजपुर तक की अपनी लगभग 1077 किमी की यात्रा में नर्मदा को; ख़ास तौर पर मैदानी इलाकों में जगह-जगह उधेड़ा जाता है. जहाँ जल अथाह है वहाँ अत्याधुनिक मशीनों से रेत निकाली जाती है. जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, हरदा जैसे जिलों में पिछले 7-8 वर्षों से असीमित, बेतरतीब और अनियंत्रित रेत खनन हो रहा है. यह रेत माफिया इतना मुँहज़ोर है कि अधिकारियों द्वारा रोके जाने पर वह हमला और उनकी हत्या तक कर देता है. नर्मदा किनारे बड़वानी जिले के ठीकरी तहसील के छोटा बड़दा, पेण्डा, भीलखेड़ा, गोई नदी इत्यादि क्षेत्र में अवैध रेत खनन चल रहा है. धार जिले के खुजावा (धरमपुरी) गोपालपुरा, गोगावाँ इत्यादि क्षेत्रो में और अलीराजपुर के चाँदपुर, सेजा इत्यादि गाँवों में आज भी अवैध रेत खनन जारी है.
नर्मदा किनारे लगे ट्राईडेंट के कपड़ा कारखाने और बाबई के नज़दीक हाल ही में स्वीकृत कोकाकोला संयंत्र जैसे कई उद्योग इस जीवंत इकाई घोषित हो चुकी नदी के लिए एक गंभीर खतरा हैं. कोला संयंत्र 2.5 लाख गैलनपानी रोज गटकेगा. उस पर क़हर यह है कि होशंगाबाद के 29, मंडला के 16 और जबलपुर ज़िले के 12 बड़े नालों समेत अनूपपुर, खरगोन, डिंडोरी, रायसेन आदि ज़िलों के करीब 500 छोटे-बड़े गंदे नाले नदी के प्रवाह में जा मिलते हैं जिससे ओंकारेश्वर सहित कई स्थानों पर नर्मदा जल में क्लोराईड और घुलनशील कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा घातक स्तर तक जा पहुंची है. अमरकंटक से दाहोद तक नर्मदा जल में पीएच स्तर 9.02 तक दर्ज किया गया है जो पीने योग्य ही नहीं है.
नर्मदा जी के धार्मिक महत्व को लेकर कहा जाता है कि यमुना में 7 दिन स्नान करने, गंगा को स्पर्श करने से मनुष्य पवित्र होता है लेकिन नर्मदा मैय्या के दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है. शिवराज ने नर्मदा को सदानीरा बनाने, प्रदूषण मुक्त करके उसका पर्यावरण दुरुस्त करने, दोनों किनारों पर लाखों वृक्ष लगाने, प्रदक्षिणा पथ बनवाने, लोगों की सहभागिता बढ़ाने, उन्हें नशामुक्त करने आदि की जो कार्ययोजना पीएम मोदी जी और अपने विभिन्न मंत्रालयों को सौंपी है उसकी सराहना की जानी चाहिए. लेकिन नदी यात्रा के बहाने राजनीतिक तमाशा और अपनी ताकत दिखाने की बजाए सदियों के पाप धोने के लिए इस योजना पर अमल होना अत्यंत ज़रूरी है. वैसे भी नर्मदा की गोद में पले शिवराज को यह बख़ूबी पता है कि नर्मदा मैय्या 96 विधानसभा क्षेत्रों से होकर भी गुज़रती है. अतः ‘नर्मदा सेवा यात्रा’ को महज ‘शिवराज सेवा यात्रा’ बना कर रख देना उनको काफी महँगा पड़ सकता है!
-विजयशंकर चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
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