पहले फास्ट ट्रैक कोर्ट, फिर हाई कोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट. तीनों ने निर्भया के साथ रेप और फिर हत्या करने वाले वहशियों को फांसी की सजा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जो कहा है उसे एक बार पढ़ना जरुरी है. अदालत ने कहा कि केस की मांग थी कि न्यायपालिका समाज के सामने एक उदाहरण पेश करे. अदालत का कहना था कि जिस पाश्विकता के साथ निर्भया के साथ रेप किया गया उससे यही लगता है कि आरोपी दूसरी दुनिया से आए हों. अदालत ने कहा कि आरोपियों में निर्भया के शरीर को पाने की आदिम अदम्य भूख थी. वह किसी भी कीमत पर उसे हासिल करना चाहते थे और हासिल करने के बाद उसे जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे. अदालत की नजर में यह सब बेहद क्रूर राक्षसी अंदाज में किया गया. अदालत का कहना था कि निर्भया कांड से पूरे देश में सदमे की सुनामी दौड़ पड़ी थी.


अब सवाल उठता है कि निर्भया रेप केस के चार साल बाद यह सुनामी कहां गुम हो गयी है. निर्भया रेप केस एक प्रतीक एक मिसाल बन गया था, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वास्तव में निर्भया के साथ इंसाफ हुआ है. निर्भया रेप केस के बाद निर्भया फंड बनाया गया था. इसमें केन्द्र सरकार ने हर साल एक हजार करोड़ रुपये डालने का एलान किया था. पिछले चार सालों में चार हजार करोड़ रुपया इक्टठा हो चुका है लेकिन इसका 98 फीसद से ज्यादा का इस्तेमाल ही नहीं हो सका है. इस पैसे से रेप पीड़ितों की मदद की जानी थी. राज्यों में अलग से महिला थाने खुलने में मदद की जानी चाहिए थी. लेकिन हर साल निर्भया फंड में एक हजार करोड़ रुपये जुड़ रहे हैं और यह पैसा यूं ही पड़ा हुआ है. अब आप ही बताइए क्या निर्भया को इंसाफ मिला है.


निर्भया रेप केस के बाद रेप के सभी मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजे जाने की बात हुई थी लेकिन आज भी रेप के अधिकांश मामले सामान्य अदालतों में ही चल रहे हैं. एक केस को अंजाम तक पहुंचने में औसतन आठ से दस साल लग जाते हैं. रेप मामलों में 23 फीसद आरोपियों को ही सजा हो पाती है. बाकी के आरोपी छूट जाते हैं. अब आप ही बताइए कि क्या निर्भया के साथ इंसाफ हुआ है.


निर्भया रेप केस के बाद कहा गया था कि रेप मामलों में पुलिस को जांच का तरीका बदलना चाहिए. कम से कम रेप की पुष्टि के लिए किया जाने वाला टू फिंगर टैस्ट फौरन बंद किया जाना चाहिए. इसके अलावा तय यह भी हुआ था कि रेप पीड़िता को बार बार अपने बयान देने अदालत में नहीं आना पड़े इसकी व्यवस्था की जाएगी. तब इस बात पर भी बहस हुई थी कि रेप पीड़िता के साथ कोर्ट में सुनवाई का तरीका बदला जायेगा. आरोपी पक्ष को इस उस बहाने अगली तारीख लेने की छूट नहीं दी जाएगी. आमतौर पर देखा गया है कि रेप के 95 फीसद आरोपी घर के सदस्य, रिश्तेदार, जानपहचान के लोग या दोस्त वगैरह होते हैं. रेप मामलों में देरी होने पर रेप पीड़िता पर दोस्त रिश्तेदार दबाव डालने लगते हैं. देरी होने पर गवाहों को खरीदना आसान हो जाता है. देरी होने पर सबूत मिटाने में सुविधा होती है. देरी होने पर सबूत छुपाने के भी प्रयास होते हैं. सारे मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में अगर जाते और वहां लगातार सुनवाई कर दो चार महीनों में फैसले आते तो रेप पीड़िताओं को कितनी बड़ी राहत मिलती. ऐसा हो नहीं पा रहा है तो ऐसे में कैसे मान लिया जाए कि निर्भया को इंसाफ मिल गया है.


निर्भया रेप केस के बाद यह भी तय हुआ था कि पीड़िता को तुरंत और पूरा मुआवजा देने की पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए. ऐसा इसलिए जरुरी है कि कई बार रेप की शिकायत करने वाली को घर से निकाल दिया जाता है या आरोपियों से बचने के लिए छुपकर कहीं रहना पड़ता है. यह भी देखा गया है कि रेप पीड़िता को वकील वगैरह करने के लिए तत्काल पैसों की जरुरत पड़ती है. कई बार इलाज का खर्च भी उठाना पड़ता है. लेकिन अभी भी देखा गया है कि रेप पीड़िता को मुआवजा मिलने में देरी होती है. अब कैसे मान लिया जाए कि निर्भया को इंसाफ मिला है.


निर्भया रेप के बाद जस्टिस जेएस वर्मा के अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गयी थी. उसने निर्जन और अंधेरे बस स्टाप पर बल्ब लगाने की भी सिफारिश की थी. क्या आज हर जगह ऐसा हो पाया है?. शायद नहीं. क्या रेप के मामलों में कमी नहीं आई है?. बिल्कुल नहीं. क्या रेप को लेकर राजनीति बंद हो गयी है? बिल्कुल भी नहीं. क्या रेप के आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण मिलना बंद हो गया है? (याद कीजिए मुलायम सिंह यादव का वह बयान जिसमें उन्होंने कहा था, ‘लड़के हैं, लड़को से गलती हो जाती है’). तब कैसे मान ले कि निर्भया के साथ इंसाफ हो गया है.


अंत में निर्भया केस के दौरान दिल्ली के इंडिया गेट से लेकर मुम्बई के गेट वे ऑफ इंडिया से लेकर देश के हर राज्य की राजधानी में लोग आए थे, नारे लगाते, तख्तियां दिखाते, मोमबत्तियां जलाते और हुंकार भरते. लेकिन बस हो या ट्रेन, मैट्रो हो या दफ्तर कहीं भी महिलाओं के प्रति समाज की सोच में कोई बदलाव नहीं हुआ है. यानि निर्भया को इंसाफ मिलना अभी बाकी है.


इन सब बिंदुओं को मैंने अपनी जल्द ही प्रकाशित होने वाली किताब में भी उठाया है . किताब का नाम है- करेला इश्क का. यह किताब इस महीने के अंत आपके हाथों में होगी. उसे भी पढ़िएगा और बताइएगा कि क्या वास्तव में निर्भया को इंसाफ मिल गया है या फिर अभी लंबी लड़ाई लड़ी जानी बाकी है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)