BLOG: क्यों ख़ास है फ्रांस और जोकोविच की खिताबी जीत का संदेश ?
टेनिस और फ़ुटबॉल के ‘सुपर संडे’ का पहला सबक़ तो यही है कि व्यक्ति राष्ट्र की पहचान बदल सकते है. ताकतवर से ताकतवर लोग उसकी कामयाबी के सामने झुकते हैं लेकिन इसके लिए आपको नएपन का स्वागत करना होगा और विविधता को सम्मान देना होगा.
ऐसा कम ही होता है जब विश्व के दो ज़बरदस्त लोकप्रिय खेलों का फाइनल एक ही दिन हो. इस रविवार को ऐसा ही ‘रेयर’ मौक़ा था. तमाम समाचार पत्रों और चैनलों में खेल की ख़बरें ‘टॉप’ पर हैं. एक तरफ विंबलडन के फ़ाइनल में सर्बिया के नोवाक जोकोविच के सामने दक्षिण अफ़्रीका के केविन एंडरसन थे. दूसरी तरफ फ्रांस और क्रोएशिया की टीमें विश्व कप फ़ुटबॉल के फ़ाइनल में थी. नोवाक जोकोविच ने 6-2,6-2,7-6 से सीधे सेटों में केविन एंडरसन को हराकर विंबलडन का ख़िताब अपने नाम किया. ये उनके करियर का चौथा विंबलडन ख़िताब है. इस ख़िताब को मिलाकर अब तक वो 13 ग्रैंडस्लैम जीत चुके हैं. जबकि फ्रांस ने क्रोएशिया को 4-2 से हराकर बीस साल बाद विश्व कप पर क़ब्ज़ा किया. फ़ुटबॉल विश्व कप के इतिहास में ये दूसरा मौक़ा है जब फ़्रांस ने ख़िताब पर क़ब्ज़ा किया है. विम्बलडन और फुटबॉल विश्वकप की जीत के नायक क्या सबक देते हैं? भले ही जोकोविच की कामयाबी उनकी व्यक्तिगत कामयाबी है और फ्रांस की कामयाबी एक टीम की कामयाबी, बावजूद इसके इस कामयाबी में छुपे संदेश को समझने की ज़रूरत है.
टेनिस और फ़ुटबॉल के ‘सुपर संडे’ का पहला सबक़ तो यही है कि व्यक्ति राष्ट्र की पहचान बदल सकते है. ताकतवर से ताकतवर लोग उसकी कामयाबी के सामने झुकते हैं लेकिन इसके लिए आपको नएपन का स्वागत करना होगा और विविधता को सम्मान देना होगा. फ्रांस की फ़ुटबॉल टीम को देखिए. फ्रांस ने फाइनल तक के अपने सफ़र में अर्जेंटीना, उरूग्वे और बेल्जियम जैसे टीमों को मात दी. इसके अलावा फ्रांस की टीम में 23 में से 14 खिलाड़ी अफ़्रीकी मूल के थे. वो भी तब जबकि फ्रांस की आबादी का कुल सिर्फ़ सात फ़ीसदी लोग ही अफ़्रीकी मूल के हैं. ये विविधता का सम्मान है. अफ़्रीकी आबादी फ्रांस में अल्पसंख्यक है, लेकिन इतने बड़े राष्ट्र को कुछ अफ्रीकी मूल के खिलाड़ियों ने मिल कर खुशी और गर्व का इतना बड़ा मौका दिया. इस ख़ुशी का आलम ये था कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैकुएल मैकरन भी झूम रहे थे. फाइनल में हार के बाद भी क्रोएशिया की टीम की जमकर तारीफ़ हुई.
अव्वल तो फ्रांस के ख़िलाफ़ फाइनल में क्रोएशिया का प्रदर्शन ज़बरदस्त रहा. दूसरे सिर्फ़ चालीस लाख की आबादी वाले देश के इतने बड़े टूर्नामेंट के फाइनल में पहुँचने पर हर किसी ने तालियाँ बजाईं. कुछ ऐसी ही कहानी लंदन के विंबलडन कोर्ट पर भी देखने को मिली. पिछले कुछ सालों में नोवाक जोकोविच की कामयाबी ने भी सर्बिया की पहचान बदल दी वरना कुछ बरस पहले तक सर्बिया को कौन जानता था? कुल क़रीब सत्तर लाख की आबादी वाला देश है सर्बिया. फाइनल के दौरान नोवाक जोकोविच का खेल देखने आए कई लोग ऐसे भी रहे होंगे जिनकी दिलचस्पी खेल के सिवाय शायद ही किसी और चीज़ में हो. जोकोविच ने सेमीफ़ाइनल में रफाएल नडाल के ख़िलाफ़ जो मैच खेला उसे विंबलडन के इतिहास में याद रखा जाएगा. पाँच घंटे और 15 मिनट तक खेला गया वो मैच विंबलडन के इतिहास का दूसरा सबसे लंबा सेमीफ़ाइनल था.
इसी तरह 2018 फ़ुटबॉल विश्व कप को लेकर कुछ और ख़ास बातें हमेशा याद रखी जाएँगी. अव्वल तो जर्मनी, ब्राज़ील, अर्जेंटीना जैसी दिग्गज टीमों का शुरूआती दौर में ही बाहर होना. फ्रांस का अपने युवा खिलाड़ियों पर भरोसा करना. फ्रांस की टीम के खिलाड़ियों की औसत उम्र पच्चीस साल से कुछ ही ज्यादा थी. फ्रांस ने पूरे टूर्नामेंट में हर मैच तय समय में ही जीता यानि उनके खिलाड़ियों की रणनीति थी कि मैच को 90 मिनट में जीतना है. 19 साल के एम्बापे का जलवा रहा. उन्हें इमर्जिंग प्लेयर ऑफ़ द ईयर का अवॉर्ड भी मिला. इस विश्व कप के बीतते ही क्लब फ़ुटबॉल में उनकी क़ीमत और डिमांड बढ़ जाएगी. फ्रांस के कोच ने बतौर कप्तान और बतौर कोच विश्व कप जीतकर भी कीर्तिमान बनाया.