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शंकराचार्य स्वरूपानंद की अंतिम विदाई

श्योपुर में कूनो नेशनल पार्क के जंगल से चीतों के आने की तैयारियों की रिपोर्ट बनाकर बाहर नेटवर्क में आये ही थे कि अभिषेक का फोन बज उठा. सर आपका फोन नहीं लग रहा जबलपुर के अजय आपसे बात करना चाह रहे हैं. चलो बात करता हूं मगर इससे पहले कि किसी को फोन लगाएं अजय ही दूसरी तरफ फोन पर थे. उन्होंने कहा कि सर स्वरूपानंद जी के निधन की खबर आ रही है तकरीबन साढ़े तीन बजे उन्होंने देह त्याग दी है मगर चलाने से पहले अपनी तरफ से कंफर्म कर लें. सुन कर ही होश उड़ गये.

जंगल की इस खबर को खत्म नहीं कर पाए कि दूसरी बड़ी खबर आ धमकी. आनन फानन में कोटेश्वर आश्रम में अपने संपर्कों को फोन लगाया मगर शोक की घड़ी में भला कौन फोन उठाएगा. नरसिंहपुर में एसपी को फोन लगाया मगर उनका भी जवाब था कि खबर तो है हमने आश्रम भेजा है खबर पक्की करने आप पांच मिनिट रुक जाएं. मगर बेचैनी भरे दो मिनिट गुजरते ही अजय ने आश्रम के अंदर की तस्वीर भेज दी जिसमें स्वामी जी की पार्थिव देह पर फूल माला चढ़ाई गई थी. 

बस फिर क्या था अगले कुछ मिनिट के अंदर ही हमारे चैनल की स्क्रीन पर वो फोटो के साथ खबर चल रही थी हिंदू धर्म के सबसे बड़े धर्म गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का निधन. थोडी देर बाद ही हम फोनो पर इस दुखद खबर की जानकारी दे रहे थे. इस बीच में लगातार अपडेट भी आते जा रहे थे. शंकराचार्य जी की अंत्येष्टि अगले दिन यानी कि 12 तारीख को होनी थी आश्रम परिसर में ही.

हमने श्योपुर से निकल शिवपुरी होते हुए भोपाल का रास्ता पकड़ा ही था कि कह दिया गया जितनी जल्दी हो सके कल झोंतेश्वर पहुंचकर आपको ही स्वामी जी की कवरेज करनी है. टीवी के लिहाज से वहां सब कुछ था. देश के सबसे प्रतिष्ठित धर्म गुरु का निधन उसके बाद उनकी समाधि की प्रक्रिया, स्वामी जी के अंतिम दर्शन को आये हजारों श्रद्धालु, उसके बाद उनकी संपत्ति और उनके उत्तराधिकार की कहानी यानी कि कहने को बहुत कुछ. मन में ये सब उमड घुमड रहा था और जब भोपाल में घर पहुंचे तो रात के बारह बज रहे थे. घर में आते ही कल जाने की बात बता दी गयी. घर आने की खुशी तनाव में बदल गयी कि सुबह जल्दी उठकर जाना है.

अगली सुबह साढ़े नौ बजे हम तीन सौ किलोमीटर चलकर झोंतेश्वर के परमहंसी आश्रम परिसर में थे. स्वामी जी के निधन का शोक हर ओर पसरा था. लोग चुप चुप आश्रम में टहल रहे थे. नरसिंहपुर जिले का होने के कारण इस आश्रम में मेरा आना बचपन से था. अपने स्कूली दिनों से लेकर विश्वविद्यालय में पढने के दौरान भी यहां आया हूं.

पिछली बार यहां दो साल पहले आया था जब राम जन्मभूमि का फैसला आना था और स्वामी जी का लाइव कवरेज हमें करना था. ढेरो स्मृतियां आश्रम से जुडी थी. कल्पना करना मुश्किल हो रहा था कि जंगल में बने इस आश्रम की प्राणवायु स्वामी स्वरूपानंद अब नहीं रहे. मंदिर परिसर के पास ही श्रद्धेय स्वामी जी की देह को फूल माला से सजाकर बैठा दिया गया था. जहां श्रद्धालु कतार लगाकर उनके दर्शन कर रहे थे.

बद्रिकाश्रम और द्वारका पीठ के शंकराचार्य निन्यानवे वर्ष की आयु पूरी कर मृत्यु को प्राप्त हुए थे इसलिए उनकी इस भरी पूरी आयु कर देह त्यागने पर संतोष तो कर रहे थे मगर उनके ना रहने पर दुख भी जता रहे थे. नेताओं के आकर श्रद्धांजलि देने का सिलसिला जारी था. पुलिस प्रशासन का पूरा जोर भी वीआईपी के आने और उनके सुरक्षित वापसी में ही था.

पहले कमलनाथ, फिर शिवराज सिंह, फिर विवेक तन्खा और उनके बाद प्रहलाद पटेल आये. दिग्विजय सिंह के आने का कार्यक्रम जारी हुआ मगर वो आ ना सके. दोपहर दो बजे स्वामी जी की देह के सामने ही स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामी सदानंद का अभिषेक कर उनको स्वरूपानंद का उत्तराधिकारी घोषित कर. एक एक पीठ का प्रमुख बनाया गया. अविमुक्तेश्वरानंद को बद्रिकाश्रम तो सदानंद को द्वारका पीठ का शंकराचार्य बनाने की घोषणा स्वरूपानंद के सचिव स्वामी सुबुद्धानंद ने की.

इन तमाम अनुष्ठान और प्रक्रियाओं के बीच पानी रूक रूककर लगातार गिर ही रहा था. जिससे बचने श्रद्धालु छांह तलाशते और फिर पार्थिव शरीर के सामने आ खडे होते. करीब तीन बजे स्वामी जी की देह को पालकी पर बैठाकर राजराजेश्वरी मंदिर की परिक्रमा करायी गयी और उसके बाद मंदिर के बगल में ही पार्क में उनकी समाधि के लिये रात में ही खोद लिये गये फूलों से सजे गड्ढे के पास लाया गया. हर आदमी इस पार्क में प्रवेश चाह रहा था जिसे रोकने पुलिस को काफी मेहनत करनी पड रही थी. स्वामी जी की पार्थिव देह को पालकी से उतार कर नीचे बैठाया गया.

पवित्र जल और दूध से अभिषेक कर दंडी सन्यासी की पहचान स्वरूपानंद जी की डंडी तोड़ी गयी. कपाल क्रिया हुयी. इसके बाद उनकी देह को नमक से ढका कर उसके ऊपर मिट्टी की परत जमाई गयी और उसे स्वच्छ लाल वस्त्र से ढक कर उनके करीबी साधुओं ने परिक्रमा की. जब ये सारे अनुष्ठान चल रहे थे तो ऊपर से पानी बरस रहा था तो इस सारे अनुष्ठानों को करने वाले और देखने वालों की आंखों में भी धार बनके आंसू बरस रहे थे. 

फूल मालाओं से सजे समाधि स्थल पर खडे लोग भी उस वक्त अपने को धन्य मान रहे थे कि उन्होंने सनातन समाज के इस सबसे लंबी आयु वाले संत की समाधि क्रिया को करीब से देखा. हमने भी बरसते पानी में बिना अपने को बचाये लाइव कमेंट्री की और इस अविस्मरणीय क्षण को कैमरे और अपनी स्मृति में कैद कर लिया जो लंबे समय तक भुलाना मुश्किल होगा. ओम शांति

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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