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अब नहीं सुनाई देगी सामाजिक न्याय के योद्धा की वो बुलंद आवाज!

सामाजिक न्याय के योद्धा औऱ वंचितों के लिए अपनी बुलंद आवाज उठाने के उस्ताद माने जाने वाले शरद यादव के चले जाने से समाजवादी राजनीति के एक युग का भी अंत हो गया.वे बेबाक व बिंदास होने का ऐसा नायाब संगम थे कि मंत्रीपद पर रहते हुए कुछेक मौकों पर अपनी सरकार को भी नहीं बख्शते थे. 50 बरस के राजनीतिक जीवन में  जितनी शिद्दत से दोस्ती निभाते थे,तो रिश्तों में तल्ख़ी आने पर दुश्मनी करने में भी कोई परहेज नहीं रखते थे.जेपी आंदोलन से उभरकर ताउम्र कांग्रेस के विरोध की राजनीति करने वाले शरद यादव इकलौते ऐसे गैर कांग्रेसी नेता रहे,जो तमाम मतभेदों के बावजूद इंदिरा गांधी को सबसे संवेदनशील प्रधानमंत्री मानते थे और उनकी इस धारणा में आखिरी वक्त तक कोई बदलाव नहीं आया.

इतनी लंबी सियासी जिंदगी में ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि किसी नेता पर कोई दाग न लगे लेकिन जबलपुर की छात्र राजनीति से अपना सफर शुरु करने वाले शरद यादव कुछ अलग ही मिट्टी के बने हुए थे, जिन्होंने झूठा दाग लगने पर भी संसद की सदस्यता से इस्तीफा देने में जरा भी देर नहीं लगाई.जैन हवाला डायरी मामले में लालकृष्ण आडवाणी के साथ जब उनका नाम भी सामने आया, तो उन्होंने बगैर कोई बहाना बनाये ये कहते हुए लोकसभा से अपना इस्तीफा दे दिया था कि इस झूठ का फैसला अब अदालत ही करेगी.ऐसा ही हुआ और अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था.ये राजनीति में शुचिता कायम रखने की मिसाल थी.इससे पहले भी उन्होंने ऐसा ही उदाहरण देकर राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी.आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने जब लोकसभा का कार्यकाल पांच साल से बढ़ाकर छह साल करने का फैसला लिया था,तब उसके विरोध में सिर्फ दो ही सांसदों ने अपना इस्तीफा दिया था-एक मधु लिमये और दूसरे थे.

शरद यादव. तीन अलग राज्यों से सात बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले और तीन बार राज्यसभा के सांसद रह चुके शरद यादव अपने राजनीतिक विरोधियों से मुद्दों पर आधारित मतभेद तो रखते थे लेकिन मनभेद पर कभी यकीन नहीं करते थे. आपातकाल में जेल में रहकर ही चुनाव जीतने वाले शरद जी इंदिरा गाँधी के घोर विरोधी रहे लेकिन फिर भी उनकी तारीफ करने में अगर कोई कंजूसी नहीं बरतते थे, तो उसकी बड़ी वजह ये भी थी कि दलितों-पिछड़ों के अत्याचार से संबंधित जिन मुद्दों को वे सदन में उठाते थे,उसकी पूरी जानकारी स्वयं इंदिरा गाँधी उन्हें अपने कक्ष में बुलाकर लेती थीं.उस पर क्या कार्रवाई हुई,वह अगले दिन ही पीएमओ से शरद यादव को भेजी जाती थी.इसीलिये उन्होंने श्रीमति गांधी को सबसे संवेदनशील पीएम की उपाधि से नवाज़ा. शायद यही वजह है कि राहुल गांधी जब आज उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे,तो वे यह बताना नहीं भूले कि, "मैंने शरद यादव जी से राजनीति के बारे में बहुत कुछ सीखा है. आज उनके निधन ने मुझे दुखी कर दिया है. मेरी दादी के साथ उनकी काफी राजनीतिक लड़ाई हुई थी. मगर उनके  बीच सम्मान का रिश्ता था. उन्होंने मुझे जो बताया, वो रिश्ते की शुरुआत थी.उन्होंने राजनीति में अपनी इज्जत बनाएं रखी क्योंकि राजनीति में सम्मान खोना बहुत आसान होता है."

वैसे शरद यादव का आधुनिक राजनीति में एक बड़ा योगदान ये भी है कि उन्होंने राम विलास पासवान के साथ मिलकर वीपी सिंह से मंडल कमीशन लागू कराया जिसने कम से कम उत्तर भारत की राजनीति को एक हद तक बदल दिया.वीपी सिंह के जीवन पर काफ़ी शोध करके लिखी गई पुस्तक 'द डिसरप्टर' में देबाशीष मुखर्जी ने लिखा है, 'मंडल कमीशन को लागू कराने में जिन तीन लोगों का योगदान सबसे अहम था, उसमें पहला स्थान शरद यादव का था, तो दूसरा स्थान राम विलास पासवान का था.' इस पुस्तक में लेखक ने शरद यादव से बात की, शरद यादव ने कहा, "हम दोनों मंडल आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के पक्ष में थे. लेकिन वीपी सिंह उसे तत्काल लागू करने के पक्ष में नहीं थे. मैंने उनसे कहा कि अगर आप चाहते हैं कि लोकदल (बी) के सांसद आपके साथ रहें तो ये करना होगा नहीं तो सब देवीलाल के साथ जाएंगे."शरद यादव ये भी कहते हैं, "गर्दन पकड़ के करवाया उनसे. शरद यादव की तमाम दलों में स्वीकार्यता की झलक 2012 में तब देखने को मिली थी, जब प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति चुने जाने के बाद सबसे पहले धन्यवाद के लिए शरद यादव को ही फ़ोन किया था.

जनता दल यूनाइटेड से हटने के बाद साल 2017 में उनकी संगठन क्षमता का लोहा तब लोगों ने माना था जब उन्होंने नरेंद्र मोदी की सरकार और तब के बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की तमाम तिकड़मों के सामने कांग्रेस के अहमद पटेल को राज्यसभा का चुनाव जितवा दिया था.बताते हैं किअहमद पटेल जिस एक वोट से चुनाव जीते थे, वह इकलौता वोट गुजरात के विधायक छोटू वासवा का था, जो शरद यादव की पार्टी के साथ थे. तब दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में साझी विरासत के मंच से शरद यादव ने कहा था कि, "हमारे एक प्यादे ने दो-दो प्रधानमंत्रियों का शिकार कर दिखाया." लेकिन ये भी मानना होगा कि शरद यादव ने जितनी लंबी राजनीतिक पारी खेली,उतना ही उनका विवादो से भी नाता रहा.साल 2009 में यूपीए सरकार की ओर से लाये गए महिला आरक्षण बिल के विरोध में यादव ने कहा था कि इस बिल से सिर्फ ‘परकटी’ (छोटे बालों वाली) महिलाओं को ही फायदा होगा. उन्होंने इस बिल के पास होने पर आत्महत्या करने की धमकी भी दी थी. लिहाजा,सादगी और तालमेल के उस्ताद माने जाने वाली ऐसी बेजोड़ शख्सियत को विनम्र श्रद्धांजलि.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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