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BLOG: महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की अग्निपरीक्षा

चौथे चरण के लिए राज्य की 17 सीटों- नंदूरबार, धुले, डिंडोरी, नासिक, पालघर, भिवंडी, कल्याण, ठाणे, मुंबई उत्तर, मुंबई उत्तर-पश्चिम, मुंबई उत्तर-पूर्व, मुंबई उत्तर-मध्य, मुंबई दक्षिण-मध्य, मुंबई दक्षिण, मावल, शिरूर, शिर्डी पर मतदान होने जा रहा है.

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के लिए तीन चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है और 29 अप्रैल को चौथे चरण का मतदान होने वाला है. चुनावी पंडित पूरे चुनाव के लिए पहले ही राय दे चुके हैं कि इस बार राज्य में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन 2014 वाला प्रदर्शन किसी सूरत में नहीं दोहरा सकता. बात सच भी है, उस दौर में प्रचंड मोदी लहर के बूते पर इस गठबंधन को महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 41 सीटें मिली थीं (+1 अन्य सीट) और कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस जैसे प्रमुख दल अन्य वाले कॉलम में चले गए थे.

अब जबकि चौथे चरण के लिए राज्य की 17 सीटों- नंदूरबार, धुले, डिंडोरी, नासिक, पालघर, भिवंडी, कल्याण, ठाणे, मुंबई उत्तर, मुंबई उत्तर-पश्चिम, मुंबई उत्तर-पूर्व, मुंबई उत्तर-मध्य, मुंबई दक्षिण-मध्य, मुंबई दक्षिण, मावल, शिरूर, शिर्डी पर मतदान होने जा रहा है, तो सबकी सांसें अटकी हुई हैं कि आखिर ऊंट किस करवट बैठेगा! क्योंकि चौथा चरण संपन्न होने के बाद महाराष्ट्र की सभी सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका होगा. इस आखिरी चरण में पिछले हर चरण के मुकाबले सबसे ज्यादा सीटों पर (पहले चरण में 7, दूसरे चरण में 10, तीसरे चरण में 14, चौथे चरण में 17) मतदान होना है. यानी सभी राजनीतिक दलों ने पिछले चरणों के मतदान का फीडबैक मिलने के बाद आखिरी चरण में अपना-अपना स्कोर बढ़ाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.

बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि इस बार राज्य में मोदी लहर सिरे से नदारद है. अब केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के पांच साल लगभग पूरे हो चुके हैं और 2014 की तरह महाराष्ट्र की जनता के सामने उनका आकर्षक, लुभावना किंतु गैर-आजमाया गुजरात मॉडल नहीं, बल्कि उनके कार्यकाल की पूरी तस्वीर है, जिसमें सीमा पर शाहदत, नोटबंदी, जीएसटी, केंद्र की महत्वाकांक्षी योजनाएं, किसानों की लगातार बढ़ती आत्महत्या, शिक्षा केंद्रों पर हमले, बुद्धिजीवियों की हत्या, मॉब लिंचिंग, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतें और समाज में तेजी से बढ़ा उन्माद जैसे अनेक रंग शामिल हैं.

दूसरी बड़ी मुसीबत यह है कि 2014 में जो लोग नरेंद्र मोदी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे, वे अब कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन से हाथ मिला चुके हैं. राज ठाकरे की मनसे, राजू शेट्टी की स्वाभिमानी शेतकरी संगठन पार्टी, नारायण राणे का स्वाभिमानी संगठन और रवि राणा का युवा स्वाभिमानी संगठन आदि ऐसी पार्टियां हैं, जो अब भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ खुल कर खड़ी हैं. राज ठाकरे की मनसे इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रही है, लेकिन स्वयं राज ठाकरे पूरे महाराष्ट्र में अपनी रैलियों में बाकायदा मोदी के पिछले भाषण दिखाकर तब और अब वाली स्टाइल में मोदी-शाह की जोड़ी को उखाड़ फेंकने का आवाहन कर रहे हैं!

आखिरी चरण से ठीक पहले साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का शहीद हेमंत करकरे के अपमान वाला बयान बीजेपी-शिवसेना के लिए सबसे बड़ा सरदर्द बनकर उभरा है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस राज्य में इसकी प्रतिक्रिया का नुकसान समझते हैं, इसीलिए उन्हें बयान देना पड़ा कि प्रज्ञा ठाकुर को संयम बरतना चाहिए क्योंकि हेमंत करकरे एक ईमानदार और बहादुर अधिकारी थे और महाराष्ट्र पुलिस सेवा में उनका योगदान सराहनीय था. लेकिन चौथे चरण के मतदान से पहले उनके पानी डालने से शहीदों के अपमान की आग कितनी ठंडी होगी, अभी कहा नहीं जा सकता. चौथे चरण में मुंबई महानगर और ठाणे जिले की कुल मिलाकर दस सीटें हैं, जहां प्रज्ञा ठाकुर के बयान को लेकर लोगों में बीजेपी के खिलाफ माहौल बन रहा है. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने 2014 के चुनाव में ये सभी सीटें जीत ली थीं. ये सब महानगरीय माहौल की सीटें हैं, जहां मतदाता सोशल मीडिया से बड़े पैमाने पर जुड़ा हुआ है. प्रज्ञा ठाकुर और हेमंत करकरे को लेकर जो सोशल मीडिया पर चला, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि जनता प्रज्ञा ठाकुर के बयान से नाराज है. यह नाराजगी अगर मतों में बदल गई, तो बीजेपी को लेने के देने पड़ सकते हैं.

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इसी चरण में उस धुले सीट पर भी मतदान होना है, जिसके अंतर्गत बम धमाकों के केंद्र में रहा कस्बा मालेगांव आता है. मुसलिम बहुल मालेगांव सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र में साध्वी प्रज्ञा का बयान प्रमुख मुद्दा बन गया है और दूसरे तमाम चुनावी मुद्दे दब गए हैं. साल 2009 और 2014 में लगातार जीत का परचम लहराकर बीजेपी ने धुले की सीट को अपना गढ़ बना लिया था, लेकिन इस बार यहां मुकाबला फिफ्टी-फिफ्टी हो गया है. बीजेपी के दिग्गज नेता एकनाथ खड़से पर घोटाले के आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उनसे धुले की कमान छीन ली थी. मौजूदा सांसद डॉक्टर सुभाष भामरे को कांग्रेस के कुणाल रोहिदास पाटिल से इस बार कड़ी टक्कर मिल रही है.

इस लोकसभा चुनाव के लिए महाराष्ट्र में एक और सोशल इंजीनियरिंग की कोशिश हुई है और नए समीकरण के तहत संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर और आल इंडीया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदउद्दीन ओवैसी का बहुजन वंचित आघाड़ी नामक गठबंधन बना है. महाराष्ट्र में मुसलिम आबादी 11% और दलित लगभग 6.6% हैं. यदि ये दोनों मिल जाएं, तो वाकई सत्ता का समीकरण बदल कर रख दें. कयास लगाया जा रहा था कि यह गठबंधन कांग्रेस-राकांपा के वोट काटेगा, लेकिन अब तक के मतदान में यह बेअसर ही दिखा है. इसकी वजह यह है कि इसके घोषणा पत्र के वादे लोकसभा चुनाव के स्तर के नहीं, किसी म्युनिसिपल्टी के चुनाव की तर्ज पर हैं, दूसरे ओवैसी की ख्याति बीजेपी की बी टीम के रूप में फैल चुकी है. एक संयोग यह भी है कि अभी-अभी आंबेडकर जयंती मनाई गई है, जिसमें हफ्तों तक चलने वाले कार्यक्रमों में शोषक जातियों के खिलाफ माहौल को काफी चार्ज किया जाता है.

वैसे भी पैटर्न देखें, तो महाराष्ट्र में अगर 2014 को छोड़ दिया जाए तो कभी एकतरफा मतदान नहीं होता. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि यहां भी चुनावी मुद्दा ‘अच्छे दिन आएंगे’ से शुरू होकर पुलवामा हमले और साध्वी प्रज्ञा तक पहुंच गया. जानकार बताते हैं कि महाराष्ट्र में इस साल का सूखा 1972 के सूखे से भी विकराल है. प्रदेश के 26 जिलों की 151 तहसीलों के करीब 27 हजार गांव भयंकर सूखे की चपेट में हैं. अप्रैल माह में ही पेयजल की आपूर्ति सप्ताह में एक दिन तक सीमित हो चुकी है. मराठवाड़ा, विदर्भ, उत्तर और पश्चिम महाराष्ट्र की सड़कों पर दिन-रात दौड़ने वाले पानी के टैंकर देख कर हालात की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. आज से दो साल पहले 900 रुपए में मिलने वाला पानी का टैंकर आज 1800 रुपए में मिल रहा है. विदर्भ, मराठवाड़ा, उत्तर महाराष्ट्र, सोलापुर जैसे इलाकों में में सूखा दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है. लेकिन यह किसी दल के लिए चुनावी मुद्दा नहीं है. विपक्षी दल भी एयर स्ट्राइक और पुलवामा और साध्वी प्रज्ञा में उलझ कर रह गए हैं?

महाराष्ट्र में चुनाव खत्म होने को हैं लेकिन किसानों की आत्महत्या भी प्रमुख मुद्दा नहीं बन पाई. जबकि आंकड़े बताते हैं कि मराठवाड़ा में 4 साल पहले जितनी किसान आत्महत्याएं होती थीं, आज उनकी संख्या लगभग दोगुनी हो गई है. साल 2014 में मराठवाड़ा का आंकड़ा 438 था, जो आज 900 के करीब है. इसके बावजूद आखिरी चरण की 17 सीटों में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को तगड़ा झटका लग सकता है. तीसरे चरण में जलगांव, रावेर, जालना, औरंगाबाद, रायगढ़, पुणे, बारामती, अहमदनगर, माधा, सांगली, सतारा, रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग, कोल्हापुर और हातकणंगले में मतदान हुआ था और अनुमान है कि पवार, मोहिते पाटील और राणे जैसे प्रमुख राजनीतिक घरानों के चुनाव मैदान में होने से कांग्रेस-राकांपा गठबंधन का पलड़ा भारी रहेगा.

चुनावी नतीजे तो 23 मई को आएंगे, लेकिन इतना तय है कि उत्तर प्रदेश के बाद देश के सबसे ज्यादा सीटों वाले महाराष्ट्र का लोकसभा चुनाव केंद्र और राज्य की सत्ता पर काबिज बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए इस बार किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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