एक हार के बाद सवालों का उठना लाजमी हैं. टीम इंडिया की करारी हार के बाद भी कई सवाल उठ रहे हैं. प्लेइंग-11 से लेकर मैदान मे लिए गए फैसलों तक. दरअसल, नतीजा सामने आने के बाद मैच का पोस्टमार्टम करना आसान भी है. मैच के बाद का आंकलन नतीजों की जानकारी के साथ होता है जबकि उसके पहले टीम के कप्तान या खिलाडियों की तरफ से लिया गया फैसला नतीजे से पहले का होता है.
इन तक्ष्यों को जानने और समझने के बाद भी एक सवाल है जो विराट कोहली के दिमाग में भी घूम रहा होगा. क्या टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का फैसला उन्हें मंहगा पड़ा? ये सच है कि भारतीय बैटिंग लाइन अप विश्व के सबसे मजबूत बैटिंग लाइन अप में है लेकिन दबाव में बड़ी बड़ी टीमें बिखर जाती हैं. बात को और आगे बढ़ाए इससे पहले अगर आप 2011 विश्व कप का उदाहरण देने की तैयारी कर रहे हैं तो भूलिएगा नहीं कि वहां टॉस श्रीलंका ने जीता था. भारत ने लक्ष्य का पीछा जरूर किया था लेकिन टॉस जीतकर खुद बाद में बल्लेबाजी करना और टॉस हार कर ऐसा करने के बीच बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक फर्क होता है. जो टीमों के कप्तान समझ सकते हैं.
रविवार को ऐसा लग रहा था जैसे 2003 विश्व कप के फाइनल का एक्शन रीप्ले देख रहे हों. फर्क सिर्फ इतना था कि 2003 में सामने ऑस्ट्रेलिया की टीम थी और 2017 में पाकिस्तान की टीम. 2003 की तरह ही 2017 में भी भारतीय टीम ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन फाइनल में टीम पूरी तरह बिखर गई.
2017 में विराट कोहली ने संभवत: वही गलती कर दी जो 2003 में सौरव गांगुली ने की थी. 2003 में सौरव गांगुली ने टॉस जीतकर ऑस्ट्रेलिया को पहले बल्लेबाजी का मौका दिया था. रिकी पॉन्टिंग के धुआंधार शतक की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने 359 रनों का बड़ा स्कोर खड़ा कर दिया था. फाइनल में जिस तरह की गलतियां जहीर खान ने की थीं वैसी ही गलतियां रविवार के फाइनल में जसप्रीत बुमराह से हुईं. कुल मिलाकर जब भारतीय टीम 2003 में 360 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी तो पहली गेंद से उसके ऊपर दबाव था.
भारतीय टीम का बैटिंग लाइनअप तब भी दुनिया के बेहतरीन बैटिंग ऑर्डर्स में से एक था लेकिन बल्लेबाज एक के बाद एक गलती करते चले गए औऱ भारतीय टीम 1983 का इतिहास दोहराने से चूक गई. ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 125 रनों के बड़े अंतर से हरा दिया.
18 जून 2017 को भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ. टॉस जीतकर विराट कोहली ने पहले पाकिस्तान को बल्लेबाजी के लिए बुलाया. पाकिस्तान ने 339 रनों का बड़ा लक्ष्य भारत के सामने रख दिया और भारतीय बल्लेबाज इस दबाव में बिखर गए. थोड़ा और इतिहास में जाएं तो 1996 विश्व कप का वो मैच भी इसी श्रेणी में आता है जब कोलकाता में दर्शकों ने जबरदस्त उत्पात किया था. अजरूद्दीन ने टॉस जीतकर श्रीलंका को पहले बल्लेबाजी का न्यौता दिया. इसके बाद 252 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम ने 120 रन पर 8 विकेट गंवा दिए थे. इसके बाद दर्शकों ने बवाल मचा दिया और मैच रेफरी ने मैच का नतीजा श्रीलंका के पक्ष में सुनाया.
इस मैच के काफी साल बाद तक इस बात पर बवाल होता रहा कि क्या वो मैच फिक्स था? इसका जवाब तो नहीं मिला लेकिन इतना सच है कि अपने घर में खेले गए उस मैच में भारतीय टीम की हार को क्रिकेट फैंस अब भी भूले नहीं हैं.
2008 के एशिया कप फाइनल में भी भारतीय टीम को 100 रनों की बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. तब श्रीलंका की टीम चैंपियन बनी थी. टॉस जीतकर बाद में बल्लेबाजी का फैसला तब धोनी ने लिया था और श्रीलंका ने भारत के सामने जीत के लिए 274 रनों का लक्ष्य रखा था. जयसूर्या ने उस मैच में शानदार शतक लगाया था. फाइनल में इस लक्ष्य का दबाव भारतीय टीम नहीं उठा पाई थी और जवाब में पूरी भारतीय टीम सिर्फ 173 रन ही बना पाई थी. इतिहास में और भी इस तरह के कई मैच दर्ज हैं जब भारतीय टीम ने बड़े मैचों में टॉस जीतकर लक्ष्य का पीछा करने का फैसला किया और वो फैसला उसे उलटा पड़ा.