सीधी की घटना सीधी नहीं है, राजनीति-समाज सबके कपड़े उतरे हैं
![सीधी की घटना सीधी नहीं है, राजनीति-समाज सबके कपड़े उतरे हैं Sidhi Urination Incident Blog Praveen Shukla Urinates On Victim Dashmat Rawat Of Tribal Community सीधी की घटना सीधी नहीं है, राजनीति-समाज सबके कपड़े उतरे हैं](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/07/10/1d36d012731ddcacbef39cf50947444f1688979620859120_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
कोई भी घटना सीधी नहीं होती. ये सीधी के कुबरी गांव की एक घटना का सबक हैं. फिर चाहे आप उसे पांव पखार कर माथे से लगा लें, अपने हाथों से खाना खिला लें या फिर गंगा जल से उसे पवित्र कर दें. सोशल मीडिया के इस दौर में जो होना था उसमें आपका बस नहीं था और अब आगे जो होना है उसमें भी आप कुछ नहीं कर सकते. सोशल मीडिया जो वीडियो लेकर उड़ता है तो वो अलग-अलग हैश टैग के साथ जाने कहां-कहां जाकर नई-नई इबारत और नरेशन गढ़ता है.
अब सीधी के कुबरी गांव की घटना को ही देख लीजिए. वीडियो कितना पुराना है कोई बता नहीं पा रहा. मगर ये साफ है कि उस वीडियो के आधार पर विधायक प्रतिनिधी प्रवेश शुक्ला को ब्लेकमेल किया जा रहा था. तभी उसने पीड़ित से अपने पक्ष में शपथ पत्र बनवाकर रखा था कि वक्त बेवक्त काम आए. शराब के नशे में धुत्त प्रवेश ने गरीब आदिवासी पर जाने क्या सोच कर पेशाब की मगर सत्ता, समाज और शराब का नशा जब उतरा तो होश फाख्ता हो गए.
माना कि वो गांव का गरीब आदिवासी था और अपनी शान बघारने में शुक्ला ने उसके आत्म सम्मान को मूत्र में बहा दिया मगर देश के कानून में सब बराबर है. इसलिये जब वीडियो किसी भी बहाने सामने आया तो बवाल तो होना ही था. वीडियो का बवाल ऐसा होगा किसी ने सोचा भी नहीं होगा. अगर आम दिन होते तो थोड़े बहुत हो हल्ले के बाद प्रवेश पर केस दर्ज होता, कुछ दिनों की फरारी के बाद वो गिरफ्तार होता और एससी-एसटी एक्ट के उल्लंघन में जेल जाता.
थोड़ी बहुत मदद गरीब दशमत को सरकार से मिल जाती, बात खत्म हो जाती. मगर अब ऐसा नहीं है. वीडियो वायरल होने के चार महीने बाद प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं, जिनमें आदिवासी वोटरों की कीमत सबसे ज्यादा है. प्रदेश की करीब 21 फीसदी आबादी आदिवासी है जिसमें से 47 सीटें उनके लिए सुरक्षित है और करीब इतनी ही सीटों पर आदिवासी किसी को भी हराने का दम खम रखते हैं.
पिछली बार इनमें से 35 सीटों पर कांग्रेस जीती थी, इसलिए बीजेपी सत्ता से बेदखल कर दी गई थी. इस बार इन सीटों को बीजेपी अपने पाले में करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. पिछले कई महीनों से आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट के क्रियान्वयन का पाठ बड़ी-बड़ी सभाओं में मुख्यमंत्री शिवराज मंच से माइक लेकर पढ़ाते थे. झारखंड के बिरसा मुंडा की जयंती पर मध्य प्रदेश में छुट्टी देने का ऐलान हुआ. भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम अटल बिहारी वाजपेयी की जगह अचानक आदिवासी रानी कमलापति के नाम पर किया गया. हाल के दिनों में प्रधानमंत्री शहडोल आए और आदिवासियों के साथ खाट पर बैठकर बातें की और कोदो कुटकी का भोजन किया.
अब जब आदिवासियों की हितैषी बनने में बीजेपी की शिवराज सरकार जी जान से जुटी हो ऐसे में बीजेपी विधायक केदार शुक्ला के प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला का आदिवासी पर मूत्र विसर्जन सब किए धरे पर पानी फेरने के लिये पर्याप्त था. इसलिए सरकार शिवराज और उनके प्रशासन ने जो कुछ हो सकता था सब कर लिया. आरोपी की पकड़-धकड़, उसके घर पर बुलडोजर चलवाना, एनएसए लगाकर जेल भेजा और जो बाकी रह गया तो भोपाल में सीएम शिवराज सिंह के नए दफ्तर समत्व में कैमरों के सामने पीड़ित आदिवासी का पैर प्रक्षालन और शाल श्रीफल के साथ कृष्ण सुदामा सा दृश्य रचा गया. कैमरे पर ये दृश्य टीवी चैनलों पर तुरंत चला तो सीएम हाउस के बाहर मीडिया कर्मियों की लाइन लग गई पीड़ित से बात करने के लिए मगर ये क्या... उसे तो छिपाकर गांव पहुंचा दिया गया था.
नई सुबह करोंदी गांव में फिर नई पीपली लाइव रची गई. उसके घर पर नत्था के घर जैसा नजारा था. घर पर पुलिस का ऐहतियातन पहरा और थोड़ी-थोड़ी देर में उसके घर आने वाले पक्ष-विपक्ष के नेता अफसर और मीडिया का जमावड़ा. कोई उसे जबरन गले लगा रहा तो कोई उससे बिना पूछे उसे गंगाजल से पवित्र कर रहा. प्रशासन सरकारी आवास की स्वीकृति और पांच लाख की राशि का चेक लेकर खड़ा. उधर वो पीड़ित बिना किसी भाव के जो हो रहा उसे देखे जा रहा और जब उसने कैमरे के सामने मुंह खोला तो उसी भोलेपन से वही बोला जो आदिवासी सदियों से बोल रहे है. प्रवेश शुक्ला जी हमारे गांव के पंडित है, इसलिये हम ज्यादा नहीं कह रहे, सरकार उनको छोड़ दे.
हमारी सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मण और आदिवासियों के बीच बहुत बड़ा अंतर है जो इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया. सीधी की घटना सीधी नहीं है. आदिवासी के इस महिमा मंडन से इलाके के ब्राह्मण खुश तो नहीं ही होंगे. प्रवेश शुक्ला के घर पर चले बुलडोजर की आलोचना और उसके परिवार के समर्थन में पैसे से मदद की अपील सोशल मीडिया पर होने लगी है. आदिवासी वोटरों में संदेश देने के लिए की गई सरकार की अति सक्रिय पहल से रीवा के ब्राह्मण नाराज न हो जाएं, अब ये भी बीजेपी के नेताओं के लिए चिंता का विषय बन गया है. इसलिए लिखा है सीधी की घटना सीधी नहीं है.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
![](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2025/02/16/5295b5c58ebc7d04f3e4ac31e045fb101739698520998702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=470)
![डॉ ख्याति पुरोहित](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/16fa62bb77829d4f0c19a54b63b7d50e.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)