अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने काबुल एयरपोर्ट पर दोबारा हमले की जो चेतावनी दी थी. रविवार को वैसा ही हमला हो भी गया. इसलिये सवाल उठ रहे हैं कि अगर अमेरिका के पास ऐसे हमले की खुफिया जानकारी पहले से ही थी, तो उसने इसे रोकने के लिए अपनी सैन्य ताकत का इस्तेमाल आखिर क्यों नहीं किया?
जबकि 26 अगस्त को हुए हमले में उसके 13 मरीन कमांडो मारे गए थे. उसका बदला लेने के लिए अमेरिका ने ISIS -k गुट के ठिकाने पर ड्रोन हमला करके महज एक आतंकी सरगना को मारने का जो दावा किया है. उस पर भी अमेरिकी मीडिया सवाल पूछ रहा है कि क्या एक ताकतवर मुल्क के लिए आतंकियों से बदला लेने की परिभाषा यही है?
सवाल तो ये भी उठ रहे हैं अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की निकासी करने में अमेरिका ने जो जल्दबाजी दिखाई उसके कारण ही आतंकी गुट ऐसे हमलों के जरिये खुद को पहले से भी ज्यादा ताकतवर होने का अहसास कराते हुए अमेरिका के मुंह पर तमाचा जड़ रहे हैं. गुरुवार को हुए हमलों के बाद बाइडेन ने अमेरिका समेत दुनिया को भरोसा दिलाया था कि इसका जवाब देने के लिए अगर जरुरत हुई तो वो अपने और सैनिक अफगानिस्तान भेजने से पीछे नहीं हटेगा.
लिहाज़ा अंतराष्ट्रीय रक्षा व सामरिक विशेषज्ञ इसे एक भयंकर चूक मानते हुए कह रहे हैं कि यदि अमेरिका ने सिलसिलेवार हमलों के अगले दिन यानी शुक्रवार को ही अपने और सैनिकों को काबुल भेज दिया होता तो शायद आगे होने वाले या आज हुए हमलों को टाला जा सकता था. खासकर तब जबकि अमेरिका के पास ऐसे और हमले होने की पुख्ता सूचना थी. उनक तर्क है कि अमेरिका को 31 अगस्त की डेडलाइन की परवाह न करते हुए वहां अपनी और सैन्य ताकत को बढ़ाते हुए फिलहाल डटे रहना था. आतंकी समूहों पर इसका गहरा मनोवैज्ञानिक असर ये होता कि वे अमेरिकी सेना के खौफ से किसी बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने के बारे में नहीं सोचते.
इस बीच पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सेना के पहले ही देश छोड़ देने के बाइडेन सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि लोगों के निकलने और अपने साज़ो सामान को लाने से पहले ही सेना को जाने देने की अनुमति दे देना,एक ख़राब फ़ैसला था.
पूर्व राष्ट्रपति ने बताया कि सेना के हथियार व अन्य सामान ही 83 अरब डॉलर का था जो अफगान में छोड़ दिया गया है. उन्होंने कहा कि उन अत्याधुनिक हथियारों इस्तेमाल करने की समझ होना इतना आसान नहीं है लेकिन फिर भी वो एक बड़ा खतरा तो हैं ही. उनके मुताबिक हज़ारों गाड़ियों को ऐसे ही छोड़ दिया गया जिनका इस्तेमाल अब तालिबान के अलावा आतंकी समूह भी करेंगे.
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप ने एक रेडियो कार्यक्रम में ये पुष्टि की है कि उनकी पिछले साल 'तालिबान के प्रमुख' से बात हुई थी. यह प्रमुख कौन था, इसके बारे में वो साफ़-साफ़ तो नहीं बता सके लेकिन जब रेडियो शो के होस्ट ने उनसे पूछा कि क्या वो मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर की बात कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि 'हाँ मैंने उनसे बात की थी.'
रेडियो कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने बरादर से क्या कहा था? तो इस सवाल पर ट्रंप ने कहा कि उन्होंने मुल्ला बरादर को साफ़ और कड़े लफ़्ज़ों में कहा था कि अगर उन्हें (अमेरिका) नुक़सान पहुंचाया गया तो वो 'तालिबान को ऐसी चोट देंगे, जो घटना आज तक विश्व इतिहास में कभी नहीं हुई होगी.'
उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि, "मैंने कहा था कि सुनिए हम एक लंबी बातचीत शुरू करने जा रहे हैं और मैं एक बात कहना चाहता हूँ और मैं इसे आपके आगे फिर नहीं दोहराऊंगा. मैं यह कह रहा हूं कि अगर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कुछ भी बुरा हुआ. अगर आपने हमारे नागरिकों या किसी भी अमेरिकी नागरिक के साथ कुछ भी बुरा किया, या अगर आपने कुछ भी असामान्य किया तो आप जान लीजिए कि मैं आपको ऐसी चोट दूंगा कि विश्व इतिहास में कभी किसी ने किसी को नहीं मारा होगा. आपको ऐसी मार पड़ेगी कि कभी किसी देश ने और कभी किसी शख़्स ने विश्व इतिहास में किसी को ऐसे नहीं मारा होगा."
इस बातचीत में ट्रम्प ने राष्ट्रपति बाइडेन पर सीधे-सीधे आरोप लगाया है कि वो तालिबान के साथ सौदेबाजी कर रहे थे,जिसका नतीजा आज पूरे अमेरिका को भुगतना पड़ रहा है.ट्रम्प ने कहा कि, "हमने उन्हें अच्छे से पकड़ रखा था. वे काबुल में नहीं थे. आप देखिए कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान पर कहां से क़ब्ज़ा करना शुरू किया था, जहां पर मैंने उन्हें छोड़ा था. जैसे ही मैं गया ,वे खूंखार होना शुरू हो गए क्योंकि वे दूसरे राष्ट्रपति से सौदा कर रहे थे."
इसके पीछे की सियासी वजह चाहे जो हो लेकिन सच तो ये है कि अमेरिका के एक गलत फैसले ने भारत समेत दुनिया के कई मुल्कों पर आतंकवाद के घने बादलों का साया ला दिया है.
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