एक्सप्लोरर

सोशल मीडिया का राजनीतिक दंगल बनाम महिला नेता

ऐसी हिम्मत ब्रिटेन के आम चुनावों में नहीं देखी गई थी. पिछले साल ऑनलाइन एब्यूस की शिकार बहुत सी महिला सांसदों ने दोबारा चुनाव न लड़ने का फैसला किया था. कइयों ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था. ऐसे करने वाली महिला सांसद भी थीं, पुरुष सांसद भी.

दिल्ली के चुनाव साबित करते हैं कि महिला नेता ऑनलाइन ट्रोल्स से भी दो-दो हाथ करने को तैयार हैं. हमारे पास दो खबरे हैं- एक अच्छी, दूसरी बुरी. अच्छी खबर यह है कि दिल्ली विधानसभा के चुनावों में इस बार 24 महिला नेताओं को उम्मीदवार बनाया गया है. इनमें आम आदमी पार्टी की 9, कांग्रेस की 10 और भाजपा की 5 उम्मीदवार हैं. 2015 में महिला उम्मीदवारों की संख्या 19 थी. तो, महिलाएं आगे की तरफ बढ़ रही हैं. बुरी खबर यह है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि महिला नेताओं को ऑनलाइन ट्रोल्स का ज्यादा शिकार होना पड़ता है. पिछले साल आम चुनावों में लगभग 100 महिला नेताओं को सोशल मीडिया पर अपशब्द झेलने पड़े थे- इनमें रेप और हत्या की धमकियां भी शामिल हैं. 2019 में मार्च से मई महीने के बीच 95 महिला नेताओं का उल्लेख करने वाले करीब 10 लाख ट्विट्स नफरत से भरे थे. हर पांच में से एक में सेक्सिएस्ट और महिलाओं के प्रति द्वेष से भरी भावनाएं थीं. ऐसा नहीं है कि 2020 में यह नफरत रफूचक्कर हो गई है. अभी भी महिला नेता लगातार ऐसी टिप्पणियों का सामना करती हैं. यह उनकी हिम्मत है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में वे पहले से बड़ी संख्या में अपनी उम्मीदवारी जता रही हैं.

ऐसी हिम्मत ब्रिटेन के आम चुनावों में नहीं देखी गई थी. पिछले साल ऑनलाइन एब्यूस की शिकार बहुत सी महिला सांसदों ने दोबारा चुनाव न लड़ने का फैसला किया था. कइयों ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था. ऐसे करने वाली महिला सांसद भी थीं, पुरुष सांसद भी. पर दोनों में फर्क यह था कि इस्तीफा देने वाली महिला सांसदों की उम्र पुरुष सांसदों के मुकाबले 10 साल कम थी और उन्होंने संसद में पुरुष सांसदों के मुकाबले कम समय बिताया था. मतलब उनका अनुभव पुरुष सांसदों की तुलना में कम था. इस्तीफा देने वाले पुरुष सांसदों की संख्या 41 थी और महिला सांसदों की 18. वैसे संसद में महिलाओं के अनुपात को देखते हुए यह काफी बड़ी संख्या थी. ये लोग दोबारा इसीलिए चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे क्योंकि ऑनलाइन अपशब्दों से वे परेशान हो गए थे. कई महिला संगठनों में राजनीति से महिलाओं के पलायन पर चिंता भी जताई थी.

सोशल मीडिया कई प्रकार से मौखिक युद्धों को आमंत्रित करता है. फिलहाल वह लिंग आधारित हिंसा का गढ़ बन रहा है. वर्ल्ड वाइट वेब फाउंडेशन का कहना है कि विकसित और विकासशील, दोनों देशों में लिंग आधारित ऑनलाइन हिंसा बढ़ रही है. अधिक से अधिक लोग ऑनलाइन हो रहे हैं- ऐसे में महिलाओं और पुरुषों के बीच डिजिटल विभाजन बढ़ रहा है.

महिलाओं का पहले ही शीर्ष पदों पर पहुंचना मुश्किल होता है. राजनीति उनके लिए ऐसी लक्ष्मणरेखा साबित होती है जिसे पार करने से पहले उन्होंने हजार बार सोचना पड़ता है. एक बार लांघी तो कितने ही लांछन लगाए जा सकते हैं. पिछले आम चुनावों में आप की आतिशी मार्लेना का चरित्र हनन करने वाले पर्चे खूब बंटे. आतिशी आंसू-आंसू हो गईं. यह भी काफी हैरान करने वाली बात है कि 2019 के आम चुनावों में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम में पहली बार दो महिला उम्मीदवारों- लालथलामौनी और जरजुम इटे ने चुनाव लड़ा. दोनों की हालत जो हुई, सो हुई. पर यह कोशिश आजादी के सत्तर सालों बाद की गई. राजनीति में उतरने वाली महिलाओं को अक्सर अपने सहकर्मियों के तानों से भी जूझना पड़ता है. पिछले साल एक न्यूज चैनल की राजनीतिक बहस में एक पार्टी प्रवक्ता ने दूसरे पार्टी प्रवक्ता को पेटीकोट और चूड़ियां पहनने की सलाह दी थी. इसी से समझा जा सकता है कि महिलाओं के प्रति उनकी क्या सोच है. महिला नेताओं के लिए राजनीति की डगर कितनी पथरीली हो सकती है.

यह डगर पथरीली इसलिए भी होती है क्योंकि महिला नेताओं को लेकर जनता एक अलग दिशा में सोचती है. ऑनलाइन एब्यूस इसी का परिणाम हैं. ब्रिटेन की घटना बताती है कि यह प्रवृत्ति सर्वव्यापी है. 2018 में द गार्डियन नामक अखबार ने इसी पर एक आर्टिकल छापा था. इसे लिखने वाली थीं- ब्रिटिश पत्रकार विव ग्रॉसकोप. उनकी किताब हाउ टू ओन द रूम, महिलाओं और वक्तृत्व यानी आर्ट ऑफ स्पीकिंग पर केंद्रित थी. इस आर्टिकल में विव ने बताया था कि आम लोग लाउड विमेन, यानी वाचाल औरतों को पसंद नहीं करते. नेताओं में वक्तृत्व का गुण होना चाहिए, और चूंकि इस गुण से भरपूर औरतें पसंद नहीं की जातीं, इसलिए राजनीति में औरतों के लिए टिकना मुश्किल होता है. विव ने ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री थेरेसा मे और जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल का उदाहरण दिया था. थेरेसा हमेशा कम बोलने वाली रहीं. मार्केल ने अपने 30 साल के करियर में जहां तक हो सका, नाकाबिले गौर बना रहना पसंद किया.

यूं हर दौर में महिला नेताओं को बुरा सहना ही पड़ा है. 1872 में अमेरिका राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाली विक्टोरिया वुडहल को श्रीमती पिशाच (मिसेज साटन) कहा गया था. 1964 में 66 साल की सीनेटर मार्ग्रेट चेस स्मिथ को अपनी उम्र के लिहाज से काफी आकर्षक बताया गया था. हिलेरी क्लिंटन को 2008 में कैलकुलेटिव और पावर हंगरी का तमगा मिला था. यह काफी उत्साहजनक बात है कि 2020 के अमेरिकी चुनाव में छह औरतें राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हैं.

इसीलिए हम अच्छी और बुरी खबरों को मिलाकर देख सकते हैं- इसके निष्कर्ष के तौर पर हमें महिला नेताओं की हिम्मत की दाद देनी होगी. तमाम उत्पीड़नों के बावजूद वे अपने विरोधियों से लोहा लेने को तैयार हैं. चुनाव लड़ रही हैं क्योंकि लोगों को बताना चाहती हैं कि वे किसी से नहीं घबरातीं. सत्तर के दशक में हार्वर्ड की बिजनेस प्रोफेसर रोजाबेथ कैंटर ने ग्रुप डायनामिक्स- ‘क्रिटिकल मास’ की अवधारणा दी थी. हालांकि वह कॉरपोरेट सेल्स से संबंधित थी, पर राजनीति पर भी लागू होती थी. कैंटर ने कहा था कि अगर किसी समूह में महिलाएं 35 से 40 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं तो वे अपने टोकन स्टेटस से ऊपर उठ जाती हैं. लोग भी उन्हें व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं. इसीलिए ज्यादा से ज्यादा औरतें अगर चुनावों में उम्मीदवार बनाई जाएंगी तो लोग उन्हें महत्व देने लगेंगे.

वैसे एक अच्छी खबर यह भी है कि इस समय ब्रिटिश संसद में लेबर पार्टी की महिला सांसदों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है. यह अनुपात 104 बनाम 98 का है. इंतजार है, यह प्रवृत्ति भारत में भी किसी पार्टी में दिखाई दे. तब तक महिला राजनेताओं को गुडलक!!

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

'मोहन भागवत से पूछें वे कुंभ क्यों नहीं गए?', उद्धव ठाकरे की आलोचना पर भड़के संजय राउत
'मोहन भागवत से पूछें वे कुंभ क्यों नहीं गए?', उद्धव ठाकरे की आलोचना पर भड़के संजय राउत
मध्य प्रदेश के किसानों को महज 5 रुपये में बिजली का कनेक्शन, CM मोहन यादव का बड़ा ऐलान
मध्य प्रदेश के किसानों को महज 5 रुपये में बिजली का कनेक्शन, CM मोहन यादव का बड़ा ऐलान
IND vs NZ: न्यूजीलैंड की साजिश, मोहम्मद शमी को जानबूझकर मारी गेंद? दर्द से कराह उठा भारतीय गेंदबाज
न्यूजीलैंड की साजिश, मोहम्मद शमी को जानबूझकर मारी गेंद? दर्द से कराह उठा भारतीय गेंदबाज
Sonakshi Sinha ने एक साल पहले की थी मुस्लिम बॉयफ्रेंड से शादी, बताई शादी की सरल परिभाषा
सोनाक्षी सिन्हा ने एक साल पहले की थी मुस्लिम बॉयफ्रेंड से शादी, अब समझ आया शादी का मतलब!
ABP Premium

वीडियोज

Hina Khan के Cancer पर भड़कीं Rozlyn Khan! हिना कर रहीं Cancer Treatment को Exaggerate?Elvish Yadav और Fukra Insaan को Thugesh ने किया Raost ?SEBI की पूर्व प्रमुख पर नियमों का पालन ना करने के आरोप में चलेगा केस | Breaking News | ABP NewsTop News: दिन की बड़ी खबरें| Mayawati BSP | Bihar Politics | Himani Narwal | Madhabi Buch | ABP News

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
'मोहन भागवत से पूछें वे कुंभ क्यों नहीं गए?', उद्धव ठाकरे की आलोचना पर भड़के संजय राउत
'मोहन भागवत से पूछें वे कुंभ क्यों नहीं गए?', उद्धव ठाकरे की आलोचना पर भड़के संजय राउत
मध्य प्रदेश के किसानों को महज 5 रुपये में बिजली का कनेक्शन, CM मोहन यादव का बड़ा ऐलान
मध्य प्रदेश के किसानों को महज 5 रुपये में बिजली का कनेक्शन, CM मोहन यादव का बड़ा ऐलान
IND vs NZ: न्यूजीलैंड की साजिश, मोहम्मद शमी को जानबूझकर मारी गेंद? दर्द से कराह उठा भारतीय गेंदबाज
न्यूजीलैंड की साजिश, मोहम्मद शमी को जानबूझकर मारी गेंद? दर्द से कराह उठा भारतीय गेंदबाज
Sonakshi Sinha ने एक साल पहले की थी मुस्लिम बॉयफ्रेंड से शादी, बताई शादी की सरल परिभाषा
सोनाक्षी सिन्हा ने एक साल पहले की थी मुस्लिम बॉयफ्रेंड से शादी, अब समझ आया शादी का मतलब!
मकड़ी कैसे बुन लेती है इतना सारा जाला, कहां से आता है इतना तार?
मकड़ी कैसे बुन लेती है इतना सारा जाला, कहां से आता है इतना तार?
बार-बार क्रेडिट कार्ड का मिनिमम ड्यू अमाउंट पे करके चला लेते हैं काम? जानें इसका नफा-नुकसान
बार-बार क्रेडिट कार्ड का मिनिमम ड्यू अमाउंट पे करके चला लेते हैं काम? जानें इसका नफा-नुकसान
कार में बाहर से लगवा रहे हैं सीएनजी किट? जान लीजिए ये जरूरी बातें नहीं तो होगी दिक्कत 
कार में बाहर से लगवा रहे हैं सीएनजी किट? जान लीजिए ये जरूरी बातें नहीं तो होगी दिक्कत 
77 के समुद्र में छिपा खो गया 71? चील सी नजरे हैं तो 7 सेकंड में दीजिए जवाब
77 के समुद्र में छिपा खो गया 71? चील सी नजरे हैं तो 7 सेकंड में दीजिए जवाब
Embed widget