इतिहास में हुई गलतियों को सुधारने का समय, चीन हो या कोई और...अपनी एक इंच जमीन नहीं लेने देगा भारत
चीन का विस्तारवाद किसी से भी छिपा नहीं है. हाल में ही सीडीएस अनिल चौहान ने चीन को लेकर एक बयान दिया है. चीन को लेकर लगातार वो बयान देते रहे हैं. हाल में ही उन्होंने कहा था कि भारत को चीन और पाकिस्तान से सावधान रहने की जरूरत है. भारत के लिए दोनों ही समस्या है. बड़ी बात ये भी है कि दोनों आपस में दोस्त भी है. सीडीएस के बयान के बाद चीन के अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' में भी प्रतिक्रिया प्रकाशित हुई. भारत की चीन से तनातनी पहले से ही चल रही है. अभी हाल में ही चीन ने एक बयान दिया था कि अरुणाचल प्रदेश चीन का अभिन्न हिस्सा है. उसी बात को लेकर सीडीएस की ये प्रतिक्रिया हो सकती है. भारत ने इस वक्तव्य का पुरजोर से विरोध किया है.
चीन है हरेक पड़ोसी के लिए नासूर
चीन एक सम्राज्यवादी देश है. चीन का भारत के साथ ही नहीं बल्कि कुल 27 देशों के साथ सीमा विवाद है. चीन कहता है कि पड़ोसी देशों ने उसकी जमीन पर अवैध कब्जा कर के रखा है. इतिहास में जाने पर पता चलता है कि चीन पहले एक छोटा सा मुल्क हुआ करता था, लेकिन अब चीन का विस्तार होने के बाद बहुत सारे मुल्कों पर कब्जा कर के रखा है. तिब्बत पर भी चीन का कब्जा है और चीन तिब्बत के लोगों की पारंपरिक और सांस्कृतिक धरोहर को, उनके तरीकों को धीरे-धीरे बर्बाद करते जा रहा है. वहां पर मानवाधिकार का हनन भी हो रहा है. उससे ही जोड़कर चीन अरुणाचल प्रदेश को भी देखता है. चीन कहता है कि अरुणाचल प्रदेश दरअसल साउथ तिब्बत है, लेकिन अरुणाचल प्रदेश कई दशकों से भारत का अभिन्न हिस्सा है. वो तिब्बत का हिस्सा नहीं है. भारत ने हर बार चीन के इस तरह के बयान का विरोध किया है. दरअसल चीन की बौखलाहट के कई कारण है, उसमें प्रधानमंत्री के द्वारा किए गए सेला टनल का उद्धाटन भी है. जो विश्व का सबसे ऊंचाई पर बना बाई-लेन टनल है जो गुवाहाटी को अरुणाचल प्रदेश के तवांग से जोड़ता है. इस टनल के माध्यम से आम लोग और सैनिक तथा अन्य गतिविधि आराम से हो रही है. इसके लिए पिछले कई सालों से काम चल रहा था, लेकिन अब उसका उद्घाटन होने के बाद आवाजाही शुरू हो चुकी है.
भारत की सीमाएं हुईं मजबूत
भारत ने बीते कुछ सालों में अपने बॉर्डर को मजबूत किया है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी बहुत सारा भारत ने काम किया है. इसलिए भी चीन बौखलाया हुआ है. चीन का जो मोटिव था, पड़ोसी देश पर कब्जा करने का, अब भारत इस मुद्दे पर मुंहतोड़ जवाब दे रहा है. भारत चीन की आंख में आंख डालकर उसको जवाब दे रहा है. पूरे विश्व ने देखा कि गलवान घाटी में चीन ने किस प्रकार की हरकत की, उसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया और चीन के 65 सैनिक मारे गए. भारत की जवाबी कार्यवाही के कारण चीन तिलमिलाया हुआ है और उसके बाद इस तरह की बेहूदा बयानबाजी कर रहा है. सीडीएस ने सीमा विवाद का जिक्र करते हुए कहा कि ये ऐतिहासिक बैगेज है जो अंग्रेजों के जाने के बाद भारत को मिला है और भारत को इसे दुरूस्त करने की जरूरत है. इतिहास में कुछ गलतियां हुई हैं. पिछली सरकारों ने भी उन गलतियों को होने दिया. उन गलतियों के कारण ही वर्तमान में भारत इन दिनों जूझ रहा है. जिस प्रकार पीएम नेहरू ने जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान का अतिक्रमण होने दिया. वर्तमान सरकार ने काफी जद्दोजहद के बाद वहां से अनुच्छेद 370 में संशोधन कर कश्मीर की स्वायत्तता खत्म की, ताकि जो कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है उनको फिर से एक किया जाए.
संसद में भी गृहमंत्री अमित शाह ने बोला है कि गिलगित-बाल्टिस्तान भारत का है, इसके अलावा अक्साईचीन भी भारत का है, जिसको 1962 के युद्ध में चीन ने अपने कब्जे में ले लिया था. इतिहास में कई भूलें हुई हैं, क्योंकि उस समय ब्रिटिश का सरकार था. उन्होंने जानबुझकर ऐसे बंंटवारे होने दिए कि भारत इन सभी चीजों से जूझता रहे. इसी को लेकर सीमा विवाद होता रहता है. भारत और पाकिस्तान और भारत और चीन के बीच आज तक सीमा विवाद को इतिहास की भूलों की वजह से ही अभी तक नहीं सुधारा जा सका. पिछली सरकारों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी कमी थी. अभी की सरकार इन सारे मुद्दों को लेकर काफी सजग है. उनकी नीयत है कि जितना जल्दी हो सके इन मामलों को सुलझा दिया जाए.
भारत नहीं लेने देगा किसी को एक इंच जमीन
चीन की बात करें तो पिछले कई सालों से कुछ इलाकों पर दावा करता है. बार-बार वो विवादित मानचित्र को प्रकाशित करता है. चीन ने कई बार बोला है कि अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर के लोग को आने के लिए कोई वीजा की जरूरत नहीं है. चीन वीजा पर भी भारत के कई क्षेत्रों की तस्वीर प्रिंट कर के अपना दिखाता है. भारत हर बार इसका विरोध करता है. जहां तक लद्दाख में शून्य से कम डिग्री में भी पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक सोनम वांग्चुक के भूख हड़ताल पर बैठने की बात है तो उनकी कई सारी मांगें हैं. उस पर भारत सरकार विचार कर रही है. गलवान घाटी विवाद के बाद भारत और चीन के बीच कई राउंड बातचीत हो चुकी है. अभी भारत का मुख्य लक्ष्य है कि विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से ही हल किया जाना चाहिए. इतने चक्र की वार्ता के बाद भी कोई भी रास्ता अभी तक नहीं निकल सका है तो इसका कारण यही है कि भारत अपनी एक इंच जमीन भी छोड़ने को तैयार नहीं है, जो पिछली सरकारों ने नजरअंदाज किया.
सीमा विवाद सुलझे, इसके लिए भारत को अपनी जमीन हर जगह से लेनी पड़ेगी. भारत ने अपने बाॅर्डर के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने का काम किया है. बाॅर्डर पर सैनिकों और शस्त्रास्त्रों की भी संख्या बढ़ा दी गई है. अगर बातचीत से कोई निर्णय नहीं निकला तो भारत की सेना फिर अपने तरीके से अपने जमीन को वापस लेने के लिए तैयार खड़ी है. कोशिश है कि बिना किसी युद्ध और बिना किसी विवाद के शांतिपूर्ण तरीके से इस पर कोई निर्णय निकाला जाए. भारत शांति का देश है, और शांति से ही कोई भी विवाद सुलझाया है. अगर शांति से कोई निर्णय नहीं निकला तो फिर भारत की सेना एक भी इंच जमीन किसी को लेने नहीं देगी.
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