कटक में इंग्लैंड के खिलाफ दूसरे वनडे में जीत के बाद ‘ओल्ड इज गोल्ड’, ‘नया नौ दिन पुराना सौ दिन’, ‘वेटरन प्लेयर विंटेज विन’ जैसी तमाम कहावतें और जुमले सुनने को मिले. जो सच भी हैं. लेकिन क्या ये जीत सिर्फ दो अनुभवी-धुरंधर खिलाड़ियों की धमाकेदार वापसी भर है या उससे कहीं ज्यादा. मेरे ख्याल से ये जीत इन कहावतों और जुमलों से कहीं ज्यादा अहम है. अहम इस लिहाज से क्योंकि वनडे क्रिकेट में भारतीय टीम का और कप्तान विराट कोहली का भविष्य इस जीत से होकर आगे निकलता दिखाई दे रहा है.


महेंद्र सिंह धोनी या युवराज सिंह के शानदार शतक के बदौलत मिली जीत से कहीं ज्यादा बड़ा सवाल ये है कि अगर ये दोनों खिलाड़ी कल के मैच में ‘फेल’ हो गए होते तो क्या होता? निश्चित तौर पर इस सीरीज के खत्म होने के बाद टीम में इन दोनों खिलाड़ियों की जगह पर सवाल उठने शुरू हो जाते. एक बड़ा वर्ग कुछ जबरदस्त आंकड़ों के साथ ये दलील देता कि युवराज और धोनी अब गुजरे जमाने की बात हो गए हैं. अपने पूर्ववर्ती कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की तर्ज पर टीम को यंगिस्तान बनाए रखने वाले विराट कोहली को भी शायद अपने उस फैसले पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता जिसके तहत वो युवी को टीम में वापस लेकर आए. धोनी तो अब कप्तानी छोड़ ही चुके हैं इसलिए उन्हें भी कटघरे में खड़ा करते देर नहीं लगती. अब कटक में युवराज सिंह के 150 और धोनी के 134 रनों की पारी के बाद वो बड़े आत्मविश्वास से ये पूछ सकते हैं कि ‘मैं तेरे काबिल हूं या तेरे काबिल नहीं’

धोनी और युवी की जरूरत क्यों है:
महेंद्र सिंह धोनी और युवराज सिंह दोनों करीब 35 साल के हैं. दोनों के पास करीब 300 वनडे मैचों का तजुर्बा है. दोनों ही खिलाड़ी नौ हजार के करीब रन बना चुके हैं. दोनों को ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का लंबा तजुर्बा है. अभी भारत को चैंपियंस ट्रॉफी में उतरना है. करीब 5 महीने बाद इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी खेली जानी है. ऐसे में अगर इन दोनों खिलाड़ियों की फॉर्म बरकरार रहती है तो ये दोनों क्या कमाल कर सकते हैं वो बीती रात पूरी दुनिया ने देखा है. इन दोनों खिलाड़ियों के साथ एक और ‘क्रिकेटिंग एंगल’ है. धोनी टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह चुके हैं और युवराज को टेस्ट टीम में जगह नहीं मिल पाती है. कुल मिलाकर दोनों ही खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट से दूर हैं. ऐसे में इनके लिए अपने करियर को लंबा खींचना ज्यादा मुश्किल नहीं है. विराट कोहली ने इन दोनों खिलाड़ियों को दर्जनों बार देश को जीत दिलाते देखा है. इन दोनों खिलाड़ियों की छत्र छाया में विराट बड़े हुए हैं. विराट की खूबी ये है कि वो प्लेइंग 11 चुनते वक्त बिल्कुल ‘कैलकुलेटिव’ रहते हैं. किसी से ना तो दोस्ती निभाते हैं ना ही नाराजगी. ऐसे में इन दोनों खिलाड़ियों का साथ अगर 2019 विश्व कप तक चला जाए तो चौंकने की बात कहीं से नहीं है. इन दोनों खिलाड़ियों को छोड़ दिया जाए तो बाकि लगभग सभी खिलाड़ी ‘यंग’ हैं. धोनी और युवी की ‘गाइडेंस’ उनके लिए भी बहुत काम की होगी.

फिटनेस की कसौटी पर धोनी और युवी:
मैच में भारत की पारी खत्म होने के बाद जब युवराज सिंह कैमरे के सामने आए तो उन्होंने 2011 विश्व कप में अपने पिछले शतक को याद किया. उनकी बातों से जाहिर हुआ कि वो मैदान को और अपनी धमाकेदार पारियों को कितना ‘मिस’ कर रहे थे. उन्होंने अपनी फिटनेस पर भी बात की. भूलना नहीं चाहिए कि ये वही युवराज सिंह हैं जो 2011 वर्ल्ड कप के बाद कैंसर का इलाज कराने गए थे. ये वही युवराज सिंह हैं जिन्होंने कैंसर के तकलीफदेह इलाज का हिम्मत से सामना करने के बाद उसे मात दी है. उनकी ‘इच्छाशक्ति’ में कहीं से कमी नहीं है. वो टीम के बेहतरीन फील्डर रहे हैं. बस उसी ‘लेवल’ पर पहुंचने की जरूरत है. धोनी की फिटनेस तो कमाल की है. उन्होंने पिछले कुछ समय में फिटनेस पर काफी मेहनत की है. उनकी मेहनत मैदान में दिखाई भी देती है. विकेट के पीछे उनकी फुर्ती और ‘रनिंग बिटवीन द विकेट’ में आप धोनी को परखिए उनकी फिटनेस का अंदाजा खुद ब खुद लग जाएगा. युवराज सिंह ने अपने इंटरव्यू में धोनी की बल्लेबाजी की जिस तरह तारीफ की वो भी इस बात की तस्दीक करता है कि कप्तानी के दबाव से निकलने के बाद धोनी किस दर्जे की पारियां खेल सकते हैं.