आइए समझते हैं ‘बर्थडे बॉय’ राहुल द्रविड़ की शख्सियत
साल 2012 में मार्च का महीना. बैंगलोर के चिन्नास्वामी स्टेडियम का हॉल. भारतीय क्रिकेट में ‘दी वॉल’, ‘मिस्टर डिपेंडबल’, ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ को अपने संन्यास का एलान करना था. हॉल के भीतर देश के अलग-अलग शहरों से आए मीडिया के करीब सौ लोग थे. इतने ही लोग स्टेडियम के बाहर थे, जिनके हाथ में ‘वी मिस यू’ ‘वी लव यू’ जैसे स्लोगन के पोस्टर थे. स्टेडियम के बाहर लोगों की तादाद चौंकाने वाली थी, इतने बड़े खिलाड़ी के लिए कुल जमा सिर्फ सौ लोग. जिस खिलाड़ी ने बैंगलोर शहर की क्रिकेट परंपरा को इतनी बुलंदियों तक पहुंचाया उसके लिए सिर्फ सौ लोग. एक असाधारण खिलाड़ी की इस साधारण विदाई के पीछे का सवाल मुझे कचोटता रहा, लेकिन बाद में समझ आया कि राहुल द्रविड़ का क्रिकेट, उनकी शख्सियत दरअसल ऐसी ही थी. क्रिकेट से जुड़े ग्लैमर की मुख्यधारा से अलग एक ‘प्योरिस्ट’ की छवि. उनकी यही छवि उन्हें आज भी तमाम खिलाड़ियों से अलग करती है. उनके जन्मदिन पर आइए उनकी शख्सियत के उस पहलू को समझने की कोशिश करते हैं जिसने उन्हें हमेशा ‘लाइमलाइट’ से दूर रखा.
कोच बने लेकिन मुख्यधारा में नहीं आए संन्यास के करीब साढ़े तीन साल बाद राहुल द्रविड़ ने एक और जिम्मेदारी संभाली थी. वो अंडर-19 और इंडिया ए के कोच बने. लोकेश राहुल और करूण नायर जैसे खिलाड़ी राहुल द्रविड़ की देन हैं. हाल ही में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में इन दोनों खिलाड़ियों की काबिलियत पूरे देश ने देखी. यहां तक कि सुनील गावस्कर को इन दोनों खिलाड़ियों की बल्लेबाजी इतनी जबरदस्त लगी थी कि उन्होंने कहा था कि लोकेश राहुल और करूण नायर की बल्लेबाजी में उन्हें राहुल द्रविड़ का अनुशासन और जज्बा जबकि गुंडप्पा विश्वनाथ की सूझबूझ और स्ट्रोक दिखाई दिए. ये तुलना ही राहुल द्रविड़ के लिए कितनी बड़ी तारीफ है ये क्रिकेट प्रेमी समझ सकते हैं. राहुल द्रविड़ अब भी मुख्यधारा से अलग हैं. ठीक वैसे ही जैसे एक खिलाड़ी के तौर पर अपने 16 साल के करियर में भी उन्होंने हमेशा एक ‘शीट एंकर’ की तरह या तो टीम की जीत के लिए बुनियाद बनाई या फिर क्रीज पर डेरा डालकर टीम को हार से बचाते रहे.
Happy Birthday Rahul Bhai. Thank you for your encouragement & for being a great role model for all the budding cricketers out there 😇
— Virat Kohli (@imVkohli) January 11, 2017
आज जिन खिलाड़ियों को वो तैयार कर रहे हैं वो जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाएगे तो उसके साथ नेशनल टीम के कोच का नाम जुड़ेगा और लोग भूल जाएंगे कि उसकी नींव तैयार करने वाले खिलाड़ी का नाम राहुल द्रविड़ है. ठीक वैसे ही जैसे कई टेस्ट मैचों में जीत के बाद क्रिकेट फैंस को ‘मैन ऑफ द मैच’ तो याद रह गया लेकिन लोग ये भूल गए कि उस जीत की बुनियाद राहुल द्रविड़ के बल्ले से निकली थी.
2001 में इडेन गार्डन्स में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फॉलोऑन के बाद भारत की एतिहासिक जीत में राहुल द्रविड़ के बल्ले से निकले 180 रनों को छोड़ दिया जाए तो बहुत कम ही टेस्ट मैच ऐसे हैं, जिनका जिक्र आते ही तुरंत राहुल द्रविड़ के ‘हीरोइज्म’ की तारीफ होती हो. राहुल द्रविड़ ने उस मैच के अलावा भी दर्जनों टेस्ट मैच में टीम को जीत दिलाई है, कई मैचों में टीम को हार से बचाया है, लेकिन बदकिस्मती से क्रिकेट के आंकड़ेबाज़ों को छोड़कर आम क्रिकेट फैंस को उनकी एतिहासिक पारियां कम ही याद रहती हैं.
ग्लैमरस क्यों नहीं हैं राहुल द्रविड़?
ये जानने की जरूरत है कि ऐसा क्यों है? आखिर क्यों राहुल द्रविड़ इतने महान खिलाड़ी होने के बाद भी उतने ग्लैमरस कभी नहीं हो पाए? आखिर क्यों राहुल द्रविड़ को वो स्टारडम नहीं मिला, जो सचिन तेंडुलकर और सौरव गांगुली को मिला? आखिर ये बात क्यों कही जाती है कि अपने पूरे करियर में राहुल द्रविड़, सचिन तेंडुलकर और सौरव गांगुली की छाया में ही रहे? दरअसल, अव्वल तो राहुल द्रविड़ अपने पूरे करियर में ग्लैमर की मुख्यधारा से दूर ही रहे. दूसरा उनकी बदकिस्मती ये भी रही कि जिस मैच में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया, उसी मैच में किसी और खिलाड़ी ने भी शानदार बल्लेबाजी कर दी. यहां तक कि जिस कोलकाता टेस्ट में उन्होंने 180 रनों की एतिहासिक पारी खेली, उसमें भी वीवीएस लक्ष्मण ने 281 रनों की एतिहासिक पारी खेली थी और वो मैन ऑफ द मैच रहे थे.
Happy birthday to the 'Wall of Indian Cricket', #RahulDravid! pic.twitter.com/oKw4Dggm50 — sachin tendulkar (@sachin_rt) January 11, 2017
इसके अलावा क्रिकेट को लेकर जिस तरह की दीवानगी सचिन तेंडुलकर की मुंबई या सौरव गांगुली के कोलकाता में थी उस तरह की दीवानगी राहुल द्रविड़ के शहर बैंगलोर ने कभी नहीं दिखाई. राहुल द्रविड़ के शतक पर ना तो कभी बैंगलोर में उस तरह का जश्न मनाया गया और ना ही उन्हें टीम से बाहर किए जाने पर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुआ. जबकि सचिन के शतक का मुंबई में जश्न या सौरव के टीम से बाहर होने पर कोलकाता में विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें हर किसी को याद रहेंगी.
ये बहस ही बताती है द्रविड़ का कद इस बात से भी लोग वाकिफ हैं कि पिछले दो दशक में राहुल द्रविड़ को तकनीकी तौर पर देश का सबसे बेहतरीन बल्लेबाज माना गया. दुनिया के तमाम दिग्गज खिलाड़ियों ने उन्हें सचिन तेंडुलकर से बेहतर तकनीक वाला बल्लेबाज कहा. ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज पूर्व गेंदबाज ग्लैन मैग्रा समेत कुछ दिग्गज खिलाड़ियों के ऐसे बयान भी आए कि अगर जिंदगी और मौत की लड़ाई के लिए बल्लेबाजी करवानी हो तो वो लारा और तेंडुलकर के मुकाबले राहुल द्रविड़ को चुनेंगे. इसके बावजूद मैदान के बाहर राहुल द्रविड़ को लेकर कभी भी उस तरह की दीवानगी देखने को नहीं मिली. सचिन को भगवान का दर्जा मिल गया लेकिन ये बहस तब भी खत्म नहीं हुई कि तकनीकी तौर पर सचिन बेहतर हैं या राहुल द्रविड़? शायद ये बहस कभी खत्म होगी भी नहीं.
He played in the V. But was the biggest C. Commitment, Class,Consistency,Care. Proud to have played together. Happy Birthday #RahulDravid . pic.twitter.com/eflnb49V6v
— Virender Sehwag (@virendersehwag) January 11, 2017