अब से कुछ ही देर बाद अयोध्या की श्री राम जन्मभूमि पर बने मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हो जाएगी. 22 जनवरी का यह दिन ऐतिहासिक तौर पर भारत की तवारीख में दर्ज हो जाएगा. हालांकि, इसको लेकर विरोध के भी कुछ स्वर हैं औऱ इसे राजनीतिक बनाने के भी आरोप लग रहे हैं, लेकिन यह जानना आवश्यक है कि राम किस तरह पूरे भारत को एक सूत्र में बांधते हैं और किस तरह हरेक भाषा और बोली में उनकी गाथा इतिहास ने दर्ज की हुई है.
राम के मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की कथा
दशरथ के पुत्र राम, राजकुमार थे. वह ज्यादा से ज्यादा राजा राम हो सकते थे, लेकिन वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम तब बनकर आते है जब वह लोक में घूमकर आते है, जब वो निषादराज के पास जाते हैं, जब वह शबरी के पास जाते है, जब वह कोल और भील के पास जाते है, जब वह वनवासियों के पास जाते हैं और जब राम वहां से लौटकर आते हैं तब वह राजा राम की जगह मर्यादा पुरुषोत्तम राम हो जाते हैं. गोस्वामी तुलसीदास ने कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को उनके अवतार, उनके दिव्य अवतार, उनके ईश्वर होने के भाव को किनारे करके लोगों की गोद में बैठा दिया. रामकथा अब जन-जन में व्याप्त है. अवधी में गोसाईं जी ने रामचरितमानस लिखा और राम को लोकरंजन बना दिया. अब जरा देखिए मिथिला में राम कैसे पूजनीय हैं? किसी को ये लगे कि राम केवल अवध के राम हैं, तुलसी के रूप में केवल अवध के राम गेय हैं या फिर मिथिला जनकनंदिनी के केवल मिथिला वाले राम हैं, मगही के राम हैं, भोजपुरी के राम हैं तो ऐसा नहीं है. वह तो जन-जन के, पूरे भारत के राम हैं.
जन-जन के हैं राम
छत्तीसगढ़ के लोकगीत में सीता हरण का उल्लेख मिलता है. उसको जरा देखिएः
"कहां के मृगा, कहां चली आए, सीता ला रावण हरणे, लंका के मृगा रामगढ़ चली आए, सीता ला रावण लरीणैय". यहां राम छत्तीसगढ़ की लोक बोली के राम हो गए. वहीं मिथिला की औरतें किस तरह से राजा राम को दूल्हे की तरह देखती हैं और राम को प्रेम से गारी भी देती हैं, इसे भी देखिए। श्याम वर्णी रामलला की भव्य मूर्ति स्थापित की जा रही है, उसे लेकर कई प्रकार के प्रश्न उठ रहे हैं. विद्वानों से लेकर कई तरह के एक्सपर्ट भी सवाल उठा रहे हैं, लेकिन ये सारे सवाल लोक ने कभी नहीं उठाए. लोक का फंडा तो बिल्कुल अलग है। लोक के लोग अपने गीतों में बताते हैं, मिथिला की महिलाएं मिथिला में राम और लक्ष्मण से पूछती हैं-
"बता द बबुआ लोगवा देत काहें गारी, एक भाई गोर काहें, एक भाई कारी, बता द बबूआ लोगवा देत काहें गारी".
वहां की महिलाएं सीधे तौर पर यह कह रही हैं कि हे मर्यादा पूरुषोत्तम भगवान राम, आप तो इतने काले है और आपके भाई लखन इतने गोरे हैं, ये कैसै, सो जरा बताइए? वो यहीं तक नहीं रुकती हैं, वो राजा दशरथ को भी लपेट लेती हैं और तब कहती हैं, "राजा दशरथ कईले होशियारी, एक राजा के तीन-तीन गो नारी, बता द बबूआ लोगवा देत काहें गारी". अब इसका मतलब देखिए कि महिलाएं तो राम को छोड़िए, उनके पिता तक को नहीं छोड़ती हैं.
लोक के गीतों में रमते हैं राम
राम जिस तरह से लोक गीतों में समाहित हो जाते हैं, यह सिर्फ अवध तक नहीं है, ये सिर्फ भोजपुरी, मिथिला तक नहीं है. ब्रज तो तथाकथित तौर पर कृष्ण की धरती कही जाती है, लेकिन आप वहां के लोकगीतों में देखेंगे तो माता कौशल्या की पीड़ा ब्रजवासियों ने अपने लोकगीत में व्यक्त की है, वे कहती हैं- "लाग्यो री पूस सो मास रैन भई जैसे खाड़े की धार, कुश आसन जैसे पूछें, राम कैसे करें वन में विश्राम, मोह जनन जननी के पुठैय तन जरी बैरन बनी बालक राम मेरे". कृष्ण की धरती पर ब्रज की बोली में राम का ये कैसा समुच्चय है. इसलिए राम जन जन में हैं और इसलिए राम सबके हैं. जहां तक राजनीति का सवाल है और 'जय श्री राम' को राजनीतिक नारा बताने का मामला है, तो वह थोड़े अज्ञान का मामला है. 'जय श्रीराम' में भी 'राम' के आगे लगे 'श्री' का अर्थ जानकी ही हैं. 'श्री' के रूप में माता जानकी हैं. 'जय सियाराम' भी 'श्री राम' ही है, 'जय जय सिया राम' भी 'श्री राम' ही है. 'जय श्री राम' का अर्थ क्या है...'श्री देवी जानकी' ही तो है.
राम करते हैं अभय
राम या उनके जयकारे किसी आतंक, किसी भय का विषयवस्तु हो सकते है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है. जो लोग कल्पना कर रहे हैं वह समाज के लिए ऐसी कल्पना करने वाले भय और आंतक की विषयवस्तु हैं. राम कहां नहीं है, राम किसके नहीं है? राम कभी भय के वस्तु नहीं हो सकते हैं. अगर कोई राम को भय, आंतक का वस्तु बना रहा है तो हमें डरने की आवश्यकता ऐसी मानसिकताओं से है क्योंकि राम लोगों के हैं, हर दूल्हा राम है, हर छोटा बच्चा राम है. कृष्ण की धरती, ब्रज की बोलियों में राम हैं, छत्तीसगढ़ में राम हैं, दक्षिण में राम हैं, श्रीनगर के चौक पर राम हैं, यूके की पार्लियामेंट में राम हैं, सोशल मीडिया में राम हैं, हर दिल में राम हैं. राम डर नहीं हैं. हो सकते नहीं हैं.
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