किस्से कश्मीर के भाग दो: दर्जा कम कर कहते हैं आप कि खुश रहो
सुबह अख़बार खोला ही था कि कश्मीर की उस खबर पर नजर पडी जिसका शीर्षक था कि जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दोबारा मिल सकता है. इस खबर में सूत्रों के हवाले से बताया गया था कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में परिसीमन पूरा होने के बाद मतदाता सूची बनते ही राज्य में यदि चुनाव की हालत बनती है, तो फिलहाल केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा देकर चुनाव करवाने की सोच रही है. पढ़कर खुशी हुई और अपनी कश्मीर यात्रा के ड्राईवर नासिर हुसैन की वो बात याद कर बैठे जो उसने कश्मीर पर हो रही गर्मागर्म बहस के बीच कही थी. उसने अचानक रूककर पूछा- सर आप क्या करते हैं? जवाब मेरे मित्र ने दिया हम सब सहाफी हैं. मतलब पत्रकार. ओह तो यदि आप सहाफी हैं और आपसे कहा जाये कल से आप सहाफी नहीं दफतर में अखबार की कटिंग काटने का काम करिये और फिर कुछ दिनों बाद फिर आपसे कहें कि आप अब चाय बनाने का काम करिये तो कैसा लगेगा आपको? क्या आपके सम्मान को ठेस नहीं लगेगी बताइये. अब हमसे रहा नहीं गया. अरे इतनी लंबी भूमिका नहीं साफ बताओ कहना क्या चाह रहे हो.
अब नासिर ने अपने पत्ते खोले. सर देखिये हम पहले धारा 370 के तहत विशेष दर्जा पाने वाले राज्य थे. हमारा वजीरे आजम होता था. हमारा अलग झंडा और निशान और पहचान थी. फिर आपने हमसे ये सारे विशेष अधिकार धीरे से छीने और अपनी मर्जी का मुख्यमंत्री बनाने लगे हमने बर्दाश्त किया. फिर अचानक आपने हमें राज्य के दर्जे में भी कटौती की और धारा 370 तथा अनुच्छेद 35 ए को हटाकर कश्मीर को यूटी यानि की यूनियन टेरिटरी बना दिया. बताइये हमारी इज्जत तो आपने मटियामेट कर दी और अब हमसे मोहब्बत की उम्मीद करते हो आप।. हम कश्मीरी इज्जत के लिये जीते मरते हैं और वही इज्जत छीन रहे हो आप.
अब बोलने की बारी हमारी थी. हमने कहा कि ये बताओ दो साल पहले विशेष दर्जा देकर कश्मीर को बाकी राज्यों जैसा बना दिया तो इसमें बुरा क्या. कोई भी देश में एक राज्य बाकी राज्यों से अलग होगा तो सबकी आंखों में खटकेगा ही. अलग राज्य होकर क्या हासिल हुआ अलगाववाद और आतंकवाद. इसलिये बेहतर है अब देश के बाकी राज्यों जैसे रहो. क्या इसमें कोई तुमको शक है कि कश्मीर भारत का अंग है. यदि नहीं है तो फिर कोई बहस की बात नहीं है. तुममे और आतंकियों में फर्क ना होगा जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं. इस राज्य की अब तक की तरक्की में भारत के नागरिकों की मेहनत की कमाई है. यहां के अस्पताल स्कूल, पुल-पुलिये, बाजार सब भारतीय लोगों के टैक्स से बने हैं और बन रहे हैं जैसे दूसरे राज्यों में भी होते है.
इस बीच में काले कांच वाली एक गाड़ी आगे पीछे अनेक सुरक्षाकर्मियों से भरी गाड़ियों के साथ सायरन बजाते हुये निकल गयी. अब नासिर से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो भड़क उठा. सर हमारे कश्मीर का बेड़ा गर्क इन नेताओं और उनके रात दिन होने वाले ऐश कर दिये हैं. आपके दिल्ली में बैठे नेताओं ने हमारे ऊपर ऐसे-ऐसे नेता बैठाये हैं जिनकी रूचि कश्मीर अवाम की तरक्की में नहीं रही. इनके बच्चे विदेश में पढ़ते रहे, हमारे बच्चे पत्थरबाज बनते रहे. हम ऐसा राज्य चाहते हैं जो हमारे बच्च्चों के भविष्य की गारंटी दे. हमारे बच्चे आपके राज्यों में जाते हैं तो उनसे भेदभाव होता है. उनको शक की निगाह से आतंकवादी समझ कर देखा जाता है. मुझे कई बार दिल्ली के पहाड़गंज के होटलों में आधार कार्ड बताने के बाद भी कमरे नहीं मिले. ऐसे में हम कैसे अपने को भारत का बाशिंदा मानें. बताइये अब चुप रहने की बारी हमारी थी. बात को संभालने के लिये हमने कहा चलो अब बहस बंद करो और अच्छी चाय पिलवाओ. बहस से तो वो भी थक गया था कहा कि सर चाय नहीं अच्छा कहवा पिलायेंगे आपको. यहां चाय कम कहवा ज्यादा मिलता है. अब आप कश्मीर आये हो तो कश्मीरियत के मजे लीजिये.
सड़क किनारे बादाम मिक्स कहवा पीते पीते हमने वहां बैठै कुछ दूसरे लोगो से यूं ही पूछा भाईजान बताइये धारा 370 हटने के बाद क्या फर्क पड़ा है. जवाब था कि आतंकी घटनाएं कुछ कम हुयीं है. आतंकियों को आना जाना थमा हुआ है सुरक्षा बलों की तादाद बढ़ गयी है. साथ ही पत्थरबाजी तकरीबन खत्म ही हो गयी है. और आप जैसे पर्यटकों का आना तेजी से बढ़ा है. ये बशीर डार थे जिन्होंने आगे जोडा मगर ये सब तात्कालिक है कश्मीर में राजनीतिक हालात भी मौसम की तेजी से बदलते हैं. इससे पहले की बदलाव की गर्माहट कम हो सरकार यहां चुनाव कराकर यहां के नुमाइंदों को सरकार बनाकर दे दे तो हालत और तेजी से सामान्य होंगे. यहां के लोग रोज रोज के बंद, पत्थरबाजी और हिंसा से थक गये हैं. साथ ही ये कश्मीर फाइल्स जैसी आधा सच और आधा झूठ दिखाने वाली फिल्में दिखानी आपको बंद कर देना चाहिये. हम मुसलमानों ने भी अपने हिंदू पड़ोसियों के लिये कुर्बानी दी हैं, ऐसा फिल्म में नहीं दिखाया गया. कश्मीरी पंडितों को अलगाववादियों के डर ने भगाया. हम स्थानीय लोगों ने कभी उनसे जाने को नहीं कहा. ऐसी फिल्में कश्मीरियों के प्रति नफरत फैलाती है. हमारा इस्लाम सूफियों का इस्लाम रहा है इसलिये हम कभटटर नहीं शांति प्रिय लोग हैं. इस बात को मानिये और हमारी मां बहन बच्चों की इज्जत पर कोई डाका ना डाले, इसका ख्याल रखिये. हम भारत से मोहब्बत करते हैं और करते रहेंगे.
इस सकारात्मक बात के साथ हमने भी केसर की खुशबू और बादाम के स्वाद वाला कहवा जल्दी खत्म किया और बैठ गये गाडी में चारों तरफ कश्मीर की बेपनाह खूबसूरती निहारते हुये. ( भोपाल आये बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कहा है कि कश्मीर का केंद्र शासित का दर्जा अस्थायी है)
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)