India-China News: करीब सवा दो साल तक भारत से पंगा लेने की अपनी जिद पर अड़ा चीन आखिरकार झुकने को तैयार हो गया है और उसने पूर्वी लद्दाख के विवादित क्षेत्र से अपनी सेना को पीछे हटाना शुरू कर दिया है. दोनों देशों के कमांडरों के बीच गुरुवार यानी आज हुई वार्ता के बाद ये सहमति बनी कि भारत और चीन दोनों ही अपने सैनिकों को गोगरा-हॉट स्प्रिंग पेट्रोलिंग पाइंट 15 (PP-15) के क्षेत्र से पीछे हटाएंगे और इसकी प्रक्रिया आज से शुरू भी हो गई.


दरअसल, भारत और चीन की सेना के बीच मई 2020 से ही पूर्वी लद्दाख में सीमा पर तनावपूर्ण संबंध बने हुए हैं. भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी गतिरोध को सुलझाने के लिए अब तक कई दौर की सैन्य और राजनयिक बातचीत हो चुकी हैं, लेकिन आज 16वें दौर की बातचीत के बाद चीन को समझाने में भारत को कामयाबी मिली है. 


एलएसी पर हजारों सैनिकों की तैनाती 


बता दें कि जून 2020 में गलवान घाटी क्षेत्र में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद खो गए थे, जबकि चीन के 40 सैनिक ये तो मारे गए या फिर जख्मी हुए थे. इसके बाद से ही भारत लगातार चीन पर ये दबाव डालता आया है कि एलएसी पर अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति को ही फिर से बरकरार रखा जाए, लेकिन चीन ये मानने को तैयार नहीं था. इसलिए दोनों देशों के बीच लंबे समय तक गतिरोध बना रहा. मोटे अनुमान के मुताबिक एलएसी पर दोनों देशों के 60 करीब हजार सैनिकों की तैनाती है.


हालांकि दोनों देशों की सेनाओं को पीछे हटाने पर सहमति बनने की एक वजह ये भी बताई जा रही है कि अगले हफ्ते उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का वार्षिक शिखर सम्मेलन होना है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शामिल होंगे. कहा जा रहा है कि दोनों शीर्ष नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक भी हो सकती है.


चीनी सेना कर रही सीमा उल्लंघन 


पिछले करीब ढाई साल में चीनी सेना ने एलएसी पर कई क्षेत्रों में सीमा का उल्लंघन किया है. हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि भारत और चीन के बीच संबंध बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं. उन्होंने गलवान घाटी गतिरोध और चीन द्वारा सीमा समझौतों के अवहेलना का जिक्र किया था. विदेश नीति के विश्लेषक मानते हैं कि सीमा पर गतिरोध के फलस्वरुप भारत द्वारा चीनी वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगाने से चीन को काफी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है. अब चीन को लगता है कि भारत से संबंध मधुर किए बगैर वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता, इसीलिए लद्दाख के विवादित क्षेत्र से अपनी सेना पीछे हटाने के लिए राजी होना भी उसकी कूटनीति का ही एक हिस्सा है. यही कारण है कि सीमा पर तनाव के बावजूद चीन लगातार भारत के साथ काम करने की इच्छा जताता रहा है. चीनी विदेश मंत्रालय ने चंद दिनों पहले ही भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के उस बयान का समर्थन किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन और भारत के एक साथ आने पर ही एशिया की सदी आएगी.


एक होकर विशाल बनेंगे भारत-चीन 


पिछले महीने 26 अगस्त को थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में हुए एक कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा था कि 21वीं सदी एशिया की तभी हो पाएगी, जब एशिया के दोनों बड़े देश चीन और भारत एक साथ आएंगे. विदेश मंत्री ने कहा था कि एशिया की दोनों शक्तियां मिलकर 21वीं सदी को एशिया की सदी के तौर पर स्थापित कर सकेंगी. दुनिया का कोई भी देश सबकुछ बदल सकता है लेकिन, अपना पड़ोसी बदल नहीं सकता. यही स्थिति भारत और चीन की भी है. चीन में जिस बौद्ध धर्म को मानने वाले सबसे ज्यादा लोग हैं, उस बौद्ध धर्म की जन्मभूमि भारत है.


उन्होंने यह भी कहा था कि चीन आज दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि भारत पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था है. कुछ सालों में उसे दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की भविष्यवाणी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी कर रही हैं. इसके अलावा दुनिया की सबसे ज्यादा जनसंख्या भी इन्हीं दोनों देशों के पास है, यानी सबसे ज्यादा कार्यबल भी है. इसके बावजूद दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट बरकरार है. 


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