भारत की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले क्रांतिकारियों में से एक थे सुखदेव थापर. उनकी तस्वीर अक्सर हम भगत सिंह और राजगुरु के साथ देखते हैं. अंग्रेजी हुकूमत ने तीनों को एक साथ फांसी दी थी. आजादी की लड़ाई में एक समय इन क्रांतिकारियों की लोकप्रियता कांग्रेस के बड़े दिग्गजों जैसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल के बराबर हो गयी थी. भारतीय इतिहास और आजादी की लड़ाई के ऐसे ही भुला दिए गए कई पन्नों में एक पर नाम लिखा है- क्रांतिकारी सुखदेव का. उनके जीवन के बारे में कई ऐसी बातें हैं, जिनसे हम सब अनजान है. आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के योगदान पर अनुसंधान करने वाले डॉ. शाह आलम...क्रांतिकारी सुखदेव की जयंती पर उनके जीवन के अनदेखे और अनजाने पहलुओं को हमारे सामने रख रहे हैं:
कौन थे सुखदेव थापर, क्या किया था उन्होंने?
भारत की आजादी में जो क्रांतिकारियों का स्थान है, जो गुमनाम नायकों का स्थान है, वह बहुत कम है. इसकी वजह है कि उनके बारे में जानने-बताने के बहुत प्रयास नहीं हुए. शायद जान-बूझकर ही नहीं हुए, क्योंकि जब उन नायकों की कहानियां सामने आती तो शायद कई खलनायक भी दिखते. क्रांतिकारियों का संगठन खुफिया भी था. जब तक उनके ऊपर मुकदमा नहीं चला या उनके साथियों ने कुछ नहीं बताया या फिर उनके बारे में इनवेस्टिगेशन नहीं हुआ है, दस्तावेजीकरण नहीं हुआ है, तो उनके बारे में बहुत पता नहीं चलता है. फिर, 1930 से 1947 का दौर ऐसा था कि ऐसे लोग सामने आकर कुछ बताते भी नहीं थे, उनका मानना था कि देश के लिए काम किया है, तो उसके प्रचार की बहुत जरूरत नहीं है. जैसे, एक सहजनवां ट्रेन डकैती थी. वह काकोरी से बड़ी थी और उसमें 12 हजार रुपये की लूट हुई थी. उसके नायक रहे बैजनाथ सिंह ने अपने इंटरव्यू में बहुत सहज भाव से बताया कि वह तो देश के लिए उनका दायित्व था. बाद में उस कांड का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ और वह छिपी रह गई बात.
सुखदेव के बारे में भी बहुत सामग्री नहीं मिलती, लेकिन शचीन्द्रनाथ सान्याल के भाई जितेंद्रनाथ सान्याल की किताब इस मामले में अच्छी है. वह किताब इनकी फांसी के तुरंत बाद उन्होंने लिखी थी. साथ ही, उनके मुकदमे की जो कार्रवाई है, वह भी उपलब्ध है. इसके अलावा कुछ पर्चे हैं, कुछ छिटपुट कागजात हैं. सुखदेव इस मायने में अनूठे थे कि अशफाक, बिस्मिल, लाहिड़ी और रोशन सिंह के बलिदान के बाद जब क्रांतिकारी अपनी पार्टी का पुनर्गठन करते हैं तो उसका पूरा दारोमदार उन पर ही था. HSRA यानी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी उनकी पार्टी थी और सुखदेव इसके पीछे का सारा कलपुर्जा थे.
क्रांतिकारियों आंदोलन के सही मायने में थे नेता
सुखदेव पार्टी के दिमाग थे, हालांकि वह किसी भी डायरेक्ट एक्शन में नहीं थे. उनकी पार्टी एचएसआरए ने दो प्रमुख कांड को अंजाम दिया है. एक तो, सांडर्स मर्डर था और दूसरा पार्लियामेंट में बम फेंका गया. हालांकि, सारा मुकदमा जो चला वह सुखदेव के नाम से ही था. इससे उनके कद का अंदाजा लगाया जा सकता है. वह दिमाग के भी बहुत तेज थे और एक बार पढ़ लें तो कुछ भी याद हो जाता था. समाजवादी चिंतन पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी. वह पार्टी का पूरा मस्तिष्क थे. इसकी वजह यह थी कि लाहौर में अपने कॉलेज के दिनों से ही सुखदेव इस दिशा में तैयारी कर रहे थे. वह अंधविश्वास, रूढ़ियों और पाखंड पर जमकर प्रहार करते थे. सुखदेव पूरे देश के नौजवानों को समझा बुझाकर कर पार्टी में भर्ती करते थे और उन लोगों को उनकी योग्यता के हिसाब से काम भी देते थे. यानी, कौन पढ़ाई-लिखाई करेगा, पर्चे छापेगा और कौन एक्शन में यानी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने जाएगा, ये भी सुखदेव ही तय करते थे. वह सही अर्थों में एक लीडर थे.
कहा, पत्नी से इजाजत लाओ, तब बन सकोगे क्रांतिकारी
एक क्रांतिकारी डॉक्टर गया प्रसाद थे. उनको भी सुखदेव ही पार्टी में लाए. जब सिखा-पढ़ा कर पक्का कर लिया, तो डॉक्टर ने कहा कि वह भी क्रांतिकारी बनेंगे. सुखदेव ने कहा कि उनकी शादी हो चुकी है, इसलिए पहले वह इजाजत लेकर आएं. अब भला बताइए कि किस मुंह से गया प्रसाद अपनी पत्नी को कहते कि सब कुछ छोड़-छाड़ कर वह गदर करने क्रांतिकारी पार्टी में जा रहे हैं . पत्नी रोने-धोने लगीं, कहा कि उनको बेदखल न करें. वह कोई दखल नहीं देंगी, पर साथ ही रहेंगी. आखिर, बड़ी जद्दोजहद के बाद डॉक्टर गया प्रसाद की भर्ती हुई. हालांकि, उसके बाद फिरोजपुर में सुखदेव ने जो ऑफिस खोला, वह डॉक्टर साहब के नाम पर ही लिया गया था. यह भी एक वजह थी कि गया प्रसाद जी को पार्टी में शामिल किया गया. उसके बाद वहीं से सांडर्स हत्या और असेंबली में बम फेंकने की योजना भी बनी.
भगत सिंह के मेकअप को फाइनल टच दिया था
जो पर्चा उनके मुकदमों में पेश हुआ है, वो पेन से लिखा हुआ है. चूंकि, उस समय प्रिंटिंग प्रेस इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं थे, तो सांडर्स वध के पहले इन लोगों ने दो दर्जन पर्चे खुद ही तैयार किए थे. फिरोजपुर में ही भगत सिंह को दाढ़ी-बाल काटकर अंग्रेज बनाया गया, जो हैट वाली तस्वीर आज सबसे प्रचलित है, वह वहीं की देन है और भगत सिंह के मेकअप को फाइनल टच सुखदेव ने ही दिया था. सुखदेव और भगतसिंह में बड़ी गहरी दोस्ती थी, लेकिन जब समय आया तो भगत सिंह को डांटने से भी नहीं चूके. कम लोगों को ही पता होगा कि असेंबली में बम फेंकने के लिए पहले भगत सिंह का नाम फाइनल नहीं था. उसमें बी के दत्त और विजय सिन्हा का नाम था. सुखदेव ने भगत सिंह को डांटा और प्रेरित किया कि क्रांतिकारियों का पक्ष उनसे बेहतर कोई नहीं रख सकता, इसलिए भगत सिंह ही बम फेंकने जाएं.
सुखदेव की सिर्फ़ एक ही फोटो है उपलब्ध
सुखदेव की एक ही तस्वीर आज उपलब्ध है, जिसमें वह माला पहने हुए हैं. जब मुकदमा चलने लगा और संसद में बम फेंकनेवाले क्रांतिकारियों की कवरेज होने लगी, तब भी तस्वीरें केवल भगत सिंह और बीके दत्त की ही छपी. फिर, सुखदेव के बचे साथियों शिव वर्मा आदि ने जेल में चुपके से कैमरा स्मगल करवाया ताकि सुखदेव वगैरह की भी फोटो खींची जा सके. लाहौर षडयंत्र केस के अभियुक्तों की फोटो तभी खींची गयी. सुखदेव ने तब खुद ही माला बनाई और पहन ली. उनका कहना था कि जब वह बलिदान देने जा रहे हैं, तो बलिदानी को माला पहन कर जाना चाहिए. सुखदेव के बारे में यह भी कहा गया कि उन्होंने अंग्रेज सरकार को सब कुछ बता दिया, लेकिन यह पार्टी की रणनीति थी. उतनी ही बातें बताई गईं, जितनी पहले से अंग्रेज जानते थे.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)