'हेट स्पीच' पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता को गंभीरता से क्यों नहीं लेती हमारी सरकारें?
हेट स्पीच यानी नफरत फैलाने वाले भाषणों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है और इस पर लगाम न कसने के लिए सरकार को फटकार भी लगाई है. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली खंडपीठ की जताई इस चिंता से केंद्र समेत राज्यों की सरकारें कितना सबक लेंगी, ये कह नहीं सकते लेकिन ये एक ऐसा नाजुक मुद्दा है, जिस पर देश की जनता को गंभीर होते हुए ऐसे भाषण देने वाले लोगों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई का दबाव बनाने के लिए एक मुहिम छेड़नी होगी. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाले मीडिया की इसमें अहम भूमिका है, लिहाजा उसका फर्ज बनता है कि नफरत फैलाने वाले ऐसे भाषणवीरों को बेनकाब करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिये संबंधित सरकार को मजबूर करे. हैरानी की बात ये है कि बीते सोमवार (10 अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट जब इस मामले से जुड़ी याचिका की सुनवाई कर रहा था, उससे एक दिन पहले ही राजधानी दिल्ली में पश्चिमी दिल्ली से बीजेपी के सांसद प्रवेश वर्मा ने लोगों से खुलेआम ऐलान किया था कि वे मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार करें. यानी उनकी दुकानों/रेहड़ियों से कोई सामान न खरीदें और न ही किसी मुस्लिम कारीगर को मजदूरी पर रखें.
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक बीजेपी सांसद का ये बयान स्पष्ट तौर पर हेट स्पीच के दायरे में आता है, जिस पर उनके खिलाफ तुरंत मुकदमा दर्ज होना चाहिए. ताज्जुब ये है कि दिल्ली पुलिस ने मुकदमा दर्ज करना तो दूर,अब तक तक इस पर कोई संज्ञान लेते हुए उन्हें नोटिस तक भेजना जरूरी नहीं समझा है. शायद यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट को सरकार की तरफ से हेट स्पीच पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत पर कोई कार्रवाई नहीं किये जाने को लेकर अपनी गहरी चिंता जाहिर करनी पड़ी है. चीफ जस्टिस की बेंच को ये कहने पर मजबूर होना पड़ा कि हेट स्पीच के चलते देश में माहौल खराब हो रहा है, लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इस पर लगाम लगाने की जरूरत है. दरअसल हरप्रीत मनसुखानी नाम की वकील ने सुप्रीम कोर्ट में हेट स्पीच पर रोक लगाने की मांग वाली यह याचिका दायर की है. उन्होंने याचिका में कहा है. "बहुसंख्यक हिंदुओं के वोट हासिल करने, ताकतवर पदों तक पहुंचने, नरसंहार के लिए भड़काने और 2024 के आम चुनावों से पहले भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरती बयान दिए जा रहे हैं."
अपनी याचिका पर जिरह करते हुए उन्होंने अदालत में कहा कि आजकल अभद्र भाषा का इस्तेमाल फायदा पाने के लिए एक कारोबार बन गया है. याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलों में फिल्म 'कश्मीर फाइल्स' को टैक्स फ्री किए जाने का जिक्र करते हुए बीजेपी नेताओं के उन बयानों का भी हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक मारे गए. याचिका के मुताबिक इन बयानों की वजह से दूसरे कई तरह के अपराध देखने को मिलते हैं. याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शायद आपके पास यह कहने के लिए उचित आधार है कि इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है. लेकिन न्यायालय ने साथ ही ये भी स्पष्ट कर दिया कि किसी मामले का संज्ञान लेने के लिए एक तथ्यात्मक आधार होना चाहिए. हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता एक या दो मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है. CJI यूयू ललित ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस तरह के मामलों में सामान्य आपराधिक कार्यवाही करने की आवश्यकता है. इसके लिए हमें देखना होगा कि इसमें कौन शामिल है और कौन नहीं.
वहीं याचिकाकर्ता ने कहा कि नफरती भाषण देना एक तरह की साजिशों का हिस्सा है, इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट से कुछ दिशा-निर्देशों की जरूरत है. वकील हरप्रीत मनसुखानी ने कहा कि हेट स्पीच एक तीर की तरह से है, जो एक बार कमान से छूटने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता है. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “ऐसे मामलों में संज्ञान लेने के लिए अदालत को तथ्यात्मक पृष्ठभूमि की जरूरत है. हमें कुछ उदाहरण चाहिए नहीं तो यह एक रैंडम याचिका जैसा है.” इस पर याचिकाकर्ता ने अदालत को आश्वस्त किया कि उनकी तरफ से नफरत भरे भाषणों के उदाहरणों का हवाला देने वाला एक हलफनामा अलग से दाखिल किया जाएगा, जिसमें आपराधिक मामले नहीं दर्ज किए गये थे. इस मामले की अगली सुनवाई एक नवंबर को होगी. हालांकि एक अलग केस में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ही उत्तराखंड और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि पिछले साल राज्य और राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित धर्म संसद में नफरत भरा भाषण देने वालों के खिलाफ पुलिस ने अब तक क्या कार्रवाई की है?
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