नयी दिल्लीः देश की सर्वोच्च अदालत ने आज कानून बनाने वालों को कुम्भकर्णी नींद से जगाने का काम करते हुए लोगों को ये अहसास कराया है कि इंसाफ़ की चौखट सबके लिए समान है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि किसी दूसरे लोक से आये एलियंस नहीं हैं. आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के चुनावी राजनीति में बढ़ते हुए वर्चस्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो सख्ती दिखाई है, वो राजनीति में फैली गंदगी को तो साफ करेगी ही, साथ ही एक ऐसे युग की भी शुरुआत करेगी जहां साफ़-सुथरी छवि वाले व्यक्ति को ही अपना उम्मीदवार बनाना, अब हर पार्टी की मजबूरी बन जायेगी.
बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों का रिकॉर्ड जनता के सामने न रखने वाले कांग्रेस, बीजेपी समेत नौ प्रमुख राजनीतिक दलों को अवमानना का दोषी मानते हुए उन पर जुर्माना लगाने का फैसला देकर माननीय न्यायाधीशों ने ये भी जता दिया कि न्याय का सबसे बड़ा मंदिर कहलाने वाला सुप्रीम कोर्ट न किसी ताकत से डरता है और न ही किसी दबाव के आगे झुकता है. राजनीतिक दलों को छोड़ दें, तो देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने इस साहसिक फैसले का स्वागत न किया हो.
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये काम सरकार का होता है कि वो ऐसा कानून बनाये कि आपराधिक छवि वाला कोई व्यक्ति देश की संसद व राज्यों की विधानसभाओं में चुनकर ही न आ पाये लेकिन यहां तो बरसों से उल्टी गंगा बह रही है. शायद ही कोई ऐसी पार्टी होगी जिसने लोकसभा या विधानसभा चुनावों में ऐसे किसी एक भी शख्स को उम्मीदवार न बनाया हो, जिसका आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो. कई बार तो पार्टियां किसी चर्चित 'बाहुबली' को सिर्फ इसीलिये अपना उम्मीदवार बनाती हैं क्योंकि वे जानती हैं कि उस फलां सीट से सिर्फ वही जीत सकता है. सत्ता पाने की भूख ही राजनीति में अपराध को बढ़ावा देती है, जो किसी भी समाज के लिए आखिरकार खतरनाक ही साबित होती है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे बड़ा फायदा लोगों को यह होगा कि अब उन्हें अपने इलाके से चुनाव लड़ने वाले किसी भी पार्टी के उम्मीदवार की सारी काली-सफेद जानकारी आसानी से मिल जाएगी.
इसके लिये ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा क्योंकि कोर्ट ने निर्देश दिया है कि उम्मीदवार का चयन करने के 48 घंटे बाद ही उससे संबंधित जानकारी मीडिया में प्रकाशित करानी होगी. कोर्ट ने साफ लहजे में कहा है कि सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट के होम पेज पर सबसे ऊपर प्रमुख स्थान पर उम्मीदवारों के रिकॉर्ड की जानकारी देने वाला एक आइकॉन बनाएंगे, जिस पर क्लिक करते ही मतदाता के सामने सारी जानकारी आ जायेगी.
कोर्ट ने राजनीतिक दलों के साथ ही चुनाव आयोग को भी हिदायतें दी हैं. चुनाव आयोग को निर्देश दिया गया है कि वह एक ऐसा खास मोबाइल एप बनाये, जिसके जरिये जनता अपने उम्मीदवार के बारे में सही जानकारी हासिल कर सके. साथ ही आयोग एक ऐसा फण्ड भी बनाये जिसमें जुर्माने की रकम का उपयोग हो सके. चुनाव आयोग से ये भी कहा गया है कि इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए विशेष सेल बनाया जाये.
चुनावों के दौरान विपक्षी दल जिस तरह से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते रहे हैं और आयोग जिस तरह से अधकचरी दलीलें देकर अपना बचाव करता रहा है, उसका भी सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में पूरा ख्याल रखा है. कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई राजनीतिक दल आदेश का पालन नहीं कर रहा, तो चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी देगा. ये हिदायत देकर कोर्ट ने एक तरह से चुनाव आयोग पर शिकंजा कस दिया है, ताकि अब वो किसी खास राजनीतिक दल के साथ पक्षपात न कर सके. इसीलिये ये फैसला स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक नज़ीर साबित होगा.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)