आदिवासी इलाकों में पिछले कई सालों से स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन होता आया है लेकिन अब इसमें लालच और धोखे के साथ ही दबाव की घटनाएं भी बढ़ गई हैं, इसीलिए ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. जबरन धर्म परिवर्तन की ऐसी घटनाओं पर गहरी चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे देश की सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बताया है. दरअसल जबरन धर्मांतरण के खिलाफ देश के 8 राज्यों ने तो कानून बना रखा है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इससे निपटने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं है. इसलिए शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा है कि इस बारे में उसका रुख क्या है और वह कानून बनाने को लेकर क्या कर रही है, ये 22 नवंबर तक कोर्ट को बताए.


दरअसल, धर्म परिवर्तन के सबसे ज्यादा मामले छत्तीसगढ़,ओडिसा और झारखंड में देखने को मिलते हैं, जहां पिछले कुछ दशक में ईसाई मिशनरियों ने भोले-भाले आदिवासी समुदाय के लोगों को लालच देकर या फिर अंधविश्वास फैलाकर उन्हें ईसाई बनने के लिए मजबूर किया है. जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भी साल 1991 के बाद से छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्र में ईसाई आबादी बढ़ी है. जाहिर है कि ये धर्मांतरण का ही नतीजा है. जबकि इन तीनों ही राज्यों में धर्मांतरण के खिलाफ कानून बना हुआ है लेकिन इस कानून की पेचीदगी ये है कि स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन पर ये लागू नहीं होता है. जब तक ये शिकायत नहीं मिलती कि किसी लालच, धोखे या दबाव से धर्मांतरण कराया गया है, उस व्यक्ति या संगठन में खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकती.


झारखंड और ओडिसा की सीमा से सटा छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला सबसे बड़ी आदिवासी बेल्ट है, जिसे धर्मांतरण का गढ़ भी माना जाता है. यहां बहुत बड़ी संख्या में आदिवासियों ने किसी लालच के चलते या फिर अंधविश्वास में आकर ईसाई धर्म अपनाया हुआ है. यही वजह है कि इस पूरे क्षेत्र में पिछले कई सालों से लोगों को हिन्दू धर्म में वापस लाने का एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है, जिसे 'घर वापसी' का नाम दिया गया है. इस अभियान में आर्य समाज, बीजेपी, आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और संघ परिवार के कई दूसरे संगठन शामिल हैं. इस क्षेत्र में घर वापसी अभियान का नेतृत्व बीजेपी के जाने-माने नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव के हाथ में है जिनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव ने ये काम 1986 में शुरू किया था. अपने पिता की मृत्यु के बाद प्रबल प्रताप सिंह ने साल 2013 में खुद इसका जिम्मा संभाल लिया. उन्होंने बताया, "मैंने अब तक 15 हजार से ज्यादा लोगों की 'घर वापसी' कराई है. जशपुर में बहुत धर्मांतरण हो रहे हैं और ये धर्मांतरण का एक बड़ा गढ़ बन चुका है. चूंकि यह ट्राइबल एरिया होने के साथ ही पिछड़ा एरिया भी है, इसलिये यहां ज्यादा षड्यंत्रकारी शक्तियां काम करती हैं. बाकी बॉर्डर पर झारखंड है. वहां भी बहुत धर्म परिवर्तन हुए हैं. काफ़ी हिन्दू कन्वर्ट हुए हैं."
              
गौर करने वाली बात ये है कि ईसाई धर्म को अपनाने वालों और इसके प्रचार करने वालों पर अत्याचार की खबरें भी पिछले कुछ साल में यह ही से सबसे अधिक आई हैं लेकिन ये अकेला ऐसा क्षेत्र नहीं है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी ईसाई कहते हैं कि हिन्दू संगठन उनकी प्रार्थना सभाओं को हिंसा के बल पर रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन इसके बावजूद पुलिस ईसाइयों को ही गिरफ़्तार करती है. पिछले कुछ सालों की घटनाओं पर गौर करें तो ईसाई प्रार्थना सभाओं में हमले इतने बढ़ गए हैं कि अब ये सभाएं खुले में या गिरजाघरों में कम और अधिकतर घरों के अंदर ही होती हैं.


ईसाई मिशनरियों का आरोप है कि हिंदू संगठन स्वेच्छा से धर्मपरिवर्तन को भी जबरन धर्मपरिवर्तन का इल्जाम लगाते हुए उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दायर करवा देते हैं. छत्तीसगढ़ क्रिस्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल कहते हैं, "पुलिस झूठे इलज़ाम लगाती है और जेल भेज देती है. सबसे अधिक अत्याचार के मामले यहीं के हैं. हमारी चिंता सरकारी मशीनरी की नाकामी को लेकर है." गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में पिछले चार साल से कांग्रेस की सरकार है लेकिन ईसाइयों के उत्पीड़न के मामले में वह भी बीजेपी शासित राज्यों से पीछे नहीं है. यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम ईसाई समाज और इसके पूजा स्थलों पर हुए हमलों का डेटा रखने के अलावा पीड़ितों के लिए एक हेल्पलाइन भी चलाता है. बीते फरवरी महीने में इसने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके  मुताबिक साल 2021 में देश भर में ईसाईयों और उनके गिरजाघरों पर 486 हिंसात्मक घटनाएं हुई थीं जो कि साल 2020 की तुलना में 74 प्रतिशत अधिक हैं.


लिहाजा,अवैध धर्मांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिंता अपनी जगह बिल्कुल वाजिब है लेकिन सवाल है कि स्वेच्छा से होने वाले धर्म परिवर्तन को भी जब जबरन धर्मांतरण बता दिया जाएगा तो जाहिर है कि इस कानून का नाजायज इस्तेमाल अभी कुछ राज्यों में हो रहा है. फिर पूरे देश में होने लगेगा. लिहाजा,कानून ऐसा हो जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए भी पर्याप्त सेफ गार्ड हो.


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