सुप्रीम कोर्ट की फटकार से हुआ फर्जी डॉक्टर-इंजीनियर बनने का खुलासा!
हमारे देश में फर्जी डॉक्टर या इंजीनियर कैसे बनते हैं और बगैर किसी योग्यता के सरकारी अफसर भी कैसे बन जाते हैं, इसकी पोल खोलने वाले अब तक के सबसे बड़े घोटाले की जांच पूरी करने में देश की सबसे बड़ी एजेंसी को सात साल का वक़्त लग गया. मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले में सीबीआई ने अपनी शुरुआती चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी है, जिसमें राज्य के दो बड़े प्राइवेट मेडिकल कॉलेज के मालिकों औऱ कई वरिष्ठ सरकारीअफसरों समेत 160 लोगों को आरोपी बनाया गया है.
लेकिन ये जानकर हरेक को ताज्जुब होगा कि इसकी जांच करने में सीबीआई के भी हाथ-पैर फुल गए थे लेकिन डंडा सुप्रीम कोर्ट का था. लिहाज़ा, इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए उसे हर उपाय करना ही था, जो उसने किया भी.सीबीआई के इतिहास में घोटाले का संभवतः ये पहला ऐसा मामला था, जिसमे उसे 3 लाख लोगों की तस्वीरों की हक़ीक़त जानने के लिए 'इंटरपोल' की मदद लेनी पड़ी.अमूमन वह आतंकी गतिविधियों से जुड़े मामलों में ही कुछ मदद लेती है.
दरअसल ये घोटाला हमारे सिस्टम में फैले उस भ्रष्टाचार को उजागर करता है, जहां दौलत के बल पर सब कुछ खरीदा जा सकता है और इसमें संतरी से लेकर मंत्री तक भागीदार बने हुए थे.मोटे तौर पर इसे 2 हजार करोड़ रुपये का घोटाला बताया गया है , जिसमें सरकारी सिस्टम का हर आम से लेकर खास शामिल था.कमोबेश सिस्टम आज भी वही चल रहा है लेकिन अब उतनी दिलेरी के साथ नहीं बल्कि पर्दे के पीछे इतनी चतुराई के साथ उसे अंजाम दिया जाता है, ताकि न तो असली खिलाड़ी की पहचान होगी और न ही वो घोटाला उजागर हो पायेगा.
सब जानते हैं कि किसी भी घोटाले को सत्ता में बैठे किसी कारिंदे का वरदहस्त मिले अंजाम नहीं दिया जा सकता.साल 2013 में ये घोटाला उजागर होते ही मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल तो आया लेकिन तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार को कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा.सिवा इसके कि उनकी ही सरकार के शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को इस साजिश का मुख्य सूत्रधार मानते हुए गिरफ्तार किया गया, जिन्हें 18 महीने तक जेल में रहना पड़ा था.हालांकि पिछले साल 31 मई को कोरोना की चपेट में आने के बाद उनका देहांत हो गया, लेकिन यहां सियायत से बड़ा सवाल उन हजारों मेधावी छात्रों का है, जिन्हें ईमानदारी से अपना कैरियर बनाने का मौका मिला था लेकिन उसे भी इस बेईमान व भ्रष्ट सिस्टम ने छीन लिया.इतिहास के काले पन्ने पर इस घोटाले का नाम इसलिये भी दर्ज होगा कि अब तक ये देश का ऐसा इकलौता मामला है, जिसने करीब 45 लोगों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया. हालांकि इस घोटाले के उजागर होने के बाद अब तक आई न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से अधिकांश वे ही लोग थे, जो पुलिस या किसी और जांच एजेंसी की गिरफ्त से बचना चाहते थे.
बता दें कि व्यापमं का पूरा नाम व्यवसायिक परीक्षा मंडल है. सरकारी नियुक्तियों के लिये जिस तरह से हर राज्य में एक तरह के बोर्ड का गठन किया गया है, जिसे लोक सेवा आयोग या कर्मचारी चयन आयोग कहते हैं. ठीक उसी तरह से मध्यप्रदेश में सरकार की सेवा के लिये जिस कानूनी ईकाई की स्थापना की गयी, उनमें से एक है व्यवसायिक परीक्षा मंडल. संक्षिप्त रूप से इसे ही व्यापमं कहते हैं. यह ईकाई पेशेवर पाठ्यक्रमों जैसे मेडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिये परीक्षायें आयोजित कराने के अलावा राज्य सरकार के विभिन्न पदों पर नियुक्तियों के लिये भी परीक्षायें आयोजित कराता है
यूं तो व्यापमं द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में धांधली का मामला पहले से उठता रहा लेकिन साल 2008 से 2013 के बीच इसमें धांधली अपने चरम पर पहुंची और लोग इस भ्रष्ट सिस्टम के झांसे में फंसने लगे.लेकिन साल 2009 में इंदौर के रहने वाले डॉक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय को ये फर्जीवाड़ा समझ आया कि सरकार का ये सिस्टम डॉक्टर नहीं तैयार कर रहा, बल्कि ये तो भले-चंगे लोगों को भी मौत के मुंह में धकेल देगा.
कुछ ठोस सबूत हाथ लगने के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में इन घांधलियों का ज़िक्र करते हुए एक जनहित याचिका दायर की.उसके बाद जो हुआ, उसका नतीजा सामने आ गया. लेकिन इसने देश के आम इंसान को एक बड़ा भरोसा ये दिलाया है कि देश की न्यायपालिका अभी तक न तो बिकी है, न ही किसी सरकार के आगे झुकी है और वह निष्पक्ष है, इसलिये भी कि साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट अगर इस घोटाले की जांच करने का आदेश सीबीआई को नहीं देती, तो देश को पता भी नहीं चलता कि फर्जीवाड़ा कैसे होता है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)