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चीफ जस्टिस के इस क्रांतिकारी फैसले से बदल जाएगी न्यायपालिका की तस्वीर !

देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ अपनी बेबाकी के लिए तो सुर्खियों में रहते ही हैं लेकिन अब उन्होंने एक ऐसा क्रांतिकारी फैसला लिया है, जिसकी तारीफ खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके भाषण को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए की है. देश के अंतिम व्यक्ति तक सस्ता व जल्द न्याय उपलब्ध कराने की कोशिश में जुटे चीफ जस्टिस ने ऐलान किया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की प्रति अब जल्द ही हिंदी सहित देश की अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध कराई जाएगी.

उच्च न्यायपालिका के इतिहास में इसे एक ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि अब तक शीर्ष कोर्ट के सारे फ़ैसले अंग्रेजी में ही होते हैं और जिन्हें उस भाषा का ज्ञान नहीं है, वे फ़ैसले की गंभीरता व उसकी बारीकी को समझने से वंचित रह जाते हैं.

यही वजह है कि चीफ जस्टिस को ये कहने पर मजबूर होना पड़ा कि देश की 99 फीसदी जनता तक हमारा काम ही नहीं पहुंच पाता. शनिवार को बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (बीसीएमजी) की ओर से मुंबई में हुए एक कार्यक्रम के दौरान यह घोषणा करते हुए उन्होंने कहा था कि जब तक हमारे देश के नागरिक को उस भाषा में अदालत के फैसले की जानकारी नहीं मिलेगी जिस भाषा को वह समझता है, तब तक न्याय व्यवस्था की सार्थकता साबित नहीं होगी. इसलिए उनके इस फैसले को न्यायिक इतिहास में एक नई इबारत लिखने से जोड़कर देखा जा रहा है लेकिन साथ ही ये सवाल भी उठ रहा है कि आजादी के इन 75 सालों में पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीशों के दिमाग में ऐसा विचार क्यों नहीं आया कि एक आम आदमी को उसकी भाषा में ही सर्वोच्च अदालत के फैसले की जानकारी मिल सके?

पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने चंद्रचूड़ को वैसे तो न्यायाधीश रहते हुए लंबे अरसे से ही ये अहसास था कि उच्च न्यायपालिका के कामकाज की सही जानकारी अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच रही है और इसकी मुख्य वजह भाषा की समस्या ही है लेकिन इसे दूर करने के लिए शायद वे सही वक्त का ही इंतज़ार कर रहे थे. यही वजह थी कि उन्होंने सही जानकारियां लोगों तक नहीं पहुंचने और लैंग्वेज बैरियर पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, ‘जब तक हम अपने नागरिकों से उस भाषा में बात नहीं करेंगे जो कि वह समझते हैं, तब तक हम जो कर रहे हैं, वह 99 प्रतिशत लोगों तक नहीं पहुंच पाएगा.’

न्यायालय में तकनीक की मदद से व्यापक बदलाव लाने पर जोर देते हुए उन्होंने बताया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से सुप्रीम कोर्ट के फैसले हर भाषा में उपलब्ध कराने की दिशा में जोरशोर से कार्य चल रहा है. किसी भी व्यवस्था को व्यक्ति के लिए बनाया गया है, इसलिए व्यवस्था व्यक्ति के ऊपर नहीं हो सकती है. 

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का एक और भी सपना है जिसे वे जल्द ही साकार होते हुए देखना चाहते हैं.संसद की कार्यवाही की तर्ज़ पर ही अदालत की कार्यवाही के सीधे प्रसारण का विषय भी उनके एजेंडे में शामिल है.इसीलिये उन्होंने कहा है कि मेरा मिशन है कि न्यायालय कागज रहित और तकनीक सुगम बने. हालांकि कई देशों में सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की व्यवस्था है, जो न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के साथ ही उसे जनता के प्रति जवाबदेह भी बनाती है.

अगर भारत में भी ऐसी व्यवस्था शुरू होती है, तो जाहिर है कि इससे न्यायपालिका के प्रति लोगों का भरोसा और ज्यादा मजबूत ही होगा. अक्सर कहा जाता है कि एक देश किस दिशा की तरफ आगे बढ़ रहा है, ये जानना हो, तो वहां की युवा पीढ़ी के विचारों को पहले समझना होगा कि तमाम अहम मसलों पर वे क्या सोच रहे हैं.

इस लिहाज से चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की तारीफ़ इसलिये करनी होगी कि उन्होंने न्यायपालिका में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने की सराहना करने के साथ ही युवा व नए वकीलों को ज्यादा अवसर देने पर जोर देते हुए कहा है कि मैं रोजाना आधे घंटे युवा वकीलों को सुनता हूं क्योंकि इससे देश की नब्ज की जानकारी मिलती है.

जजों की नियुक्ति करने को लेकर बने कॉलिजियम सिस्टम में बदलाव करने को लेकर पिछले दिनों सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव की नौबत बन गई थी लेकिन बड़ी बात ये है कि पीएम मोदी ने चीफ जस्टिस के इस ताजा निर्णय की खुलकर तारीफ की है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने सीजेआई के इस भाषण के वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है कि यह बहुत ही प्रशंसनीय विचार है. पीएम ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘हाल ही में एक कार्यक्रम में माननीय सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट्स को क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने की जरूरत है. उन्होंने इसके लिए तकनीक का इस्तेमाल करने की बात की है. यह बहुत ही प्रशंसनीय विचार है, इससे कई लोगों को मदद मिलेगी, खासतौर पर नौजवानों को.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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