EWS को आरक्षण देने का फैसला क्या बीजेपी के लिए 'गेम चेंजर' साबित होगा?
आरएसएस और बीजेपी पिछले कई सालों से आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के कमजोर लोगों को आरक्षण देने की वकालत करती रही है. सुप्रीम कोर्ट ने आज EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण देने को सही ठहराते हुए मोदी सरकार के उसी फैसले पर मुहर लगा दी है.
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला बंटा हुआ आया है क्योंकि पांच जजों वाली बेंचमें चीफ जस्टिस यू यू ललित समेत दो जजों ने सरकार के फैसले के ख़िलाफ़ अपनी राय जाहिर की है लेकिन तीन जजों ने एकमत होते हुए इसके पक्ष में फैसला सुनाया है.
लिहाज़ा, बहुमत के आधार पर आए इस फैसले के बाद सरकार के लिए इसे लागू करने का रास्ता साफ हो गया है. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों से ऐन पहले आये इस फैसले से मानो बीजेपी के मन की मुराद पूरी हो गई है.
वैसे बीजेपी के साथ ही कांग्रेस ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है क्योंकि दोनों ही सवर्ण गरीबों को अपना वोट बैंक मानती हैं लेकिन लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और दक्षिण भारत की डीएमके के लिए ये एक बड़ा झटका है क्योंकि वे शुरु से ही इसके ख़िलाफ़ थीं.
हालांकि सरकार के पास भी इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है कि फिलहाल देश में सामान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों की कितनी संख्या है. लेकिन मोटे तौर पर माना जाता है कि इनकी खासी तादाद है, जिन्हें नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में इस आरक्षण का फायदा मिलेगा.
सरकार द्वारा बनाये गए कानून के तहत EWS के जो मापदंड तय किये गए हैं, उस आधार पर लोग अब नए सिरे से EWS का प्रमाण-पत्र बनवा देंगे क्योंकि इसमें आय या मकान की जो सीमा तय की गई है, उसे शहरों में आर्थिक रूप से कमजोर नहीं बल्कि निम्न मध्यम वर्ग की श्रेणी माना जाता है. यानी, EWS का पैमाना ही पूरी तरह से बदल दिया गया है.
मसलन, EWS आरक्षण का फायदा लेने के लिए परिवार की वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम होनी चाहिए. इन स्रोतों में सिर्फ सैलरी ही नहीं, कृषि, व्यवसाय और अन्य पेशे से मिलने वाली आय भी शामिल हैं. यानी जिसकी मासिक आय 66 हजार रुपये है, वह अब EWS का हकदार हो गया.
इसके अलावा शहर में 200 वर्ग मीटर से अधिक का आवासीय फ्लैट नहीं होना चाहिए. महानगरों में जिनके पास इतना बड़ा मकान होता है, उनकी गिनती लखपतियों में होती है. अगर कोई परिवार गांव में रहता है, तो उसके पास 5 एकड़ से कम कृषि भूमि होनी जरूरी है. जाहिर है कि सरकार द्वारा तय किये गए इस पैमाने के बाद सामान्य वर्ग की बहुत बड़ी आबादी EWS के दायरे में आ जायेगी.
दरअसल, आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की असली बुनियाद तो मनमोहन सिंह सरकार ने ही रखी थी. तत्कालीन यूपीए सरकार ने मार्च 2005 में मेजर जनरल रिटायर्ड एस आर सिन्हो आयोग का गठन किया था जिसने साल 2010 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी.
इसी रिपोर्ट के आधार पर ईडब्ल्यूएस आरक्षण दिया गया है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सामान्य वर्ग के ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले सभी परिवारों और ऐसे परिवारों जिनकी सभी स्रोतों से सालाना आय आयकर की सीमा से कम होती है, उन्हें आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग माना जाए.
आयोग की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श के बाद 2014 में ही इससे संबंधित विधेयक तैयार कर लिया गया था. लेकिन मोदी सरकार ने बिल को पेश करने में ही पाँच साल का समय लिया. साल 2019 के लोकसभा चुनावों से ऐन पहले जनवरी महीने में सरकार 103वां संविधान संशोधन विधेयक लाई, जिसे आनन-फानन में संसद के दोनों सदनों से पास कराया गया था.
इसी संविधान संशोधन के तहत EWS कोटा लागू किया गया था लेकिन सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दर्जनों याचिकाएं दायर की गई थी. उसी पर सोमवार को शीर्ष अदालत ने बंटा हुआ फैसला सुनाया, जो कई दलों को रास नहीं आया है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सामाजिक न्याय के लिए सदियों से किए जा रहे संघर्ष को झटका है. उनकी पार्टी डीएमके ने संसद में इस बिल का विरोध किया था और तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी इस बिल के विरोध में अपनी दलील रखी थी.
दरअसल, इस फैसले का विरोध करने वालों की दलील है कि आरक्षण के प्रावधान का मक़सद सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करना है, न कि आर्थिक विषमता का समाधान करना है. उनका मानना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देने से सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को मिलने वाले लाभ में कमी आएगी क्योंकि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक ही सीमित रहेगी तो अन्य पिछड़ों, दलितों और जनजातीय समुदाय को मिलने वाला आरक्षण प्रभावित होगा. और अगर आरक्षण की सीमा 50 से बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाती है तो अनारक्षित वर्ग के लिए केवल 40 प्रतिशत हिस्सा ही बच पाएगा.
मोटे अनुमान के मुताबिक गुजरात में इस आरक्षण से करीब डेढ़ करोड़ लोगों को फायदा मिलेगा, जो कुल आबादी का लगभग 28 फीसदी हैं. ईडब्ल्यूएस कोटे से जिन जातियों को फायदा होगा, वे हैं राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ, बनिया और पाटीदार.
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